मणिपुर में बीते तीन मई से जारी हिंसा और आगजनी की शुरुआत भले मैतेई तबके की ओर से अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग से हुई हो, इसके पीछे असली वजह अलग कुकीलैंड की दशकों पुरानी मांग है. यही वजह है कि ज्यादातर कुकी संगठन आधुनिकतम हथियारों के साथ मैदान में उतर गये हैं. इस हिंसा ने राज्य में अस्सी के दशक की यादें ताजा कर दी हैं. तब कुकीलैंड की मांग के साथ उग्रवादी आंदोलन की शुरुआत हुई थी. अब यह भी साफ हो गया है कि हथियारबंद कुकी उग्रवादियों के शामिल होने के कारण ही हिंसा की आग इतनी भड़क चुकी है कि इस पर काबू पाना मुश्किल नजर आ रहा है. राज्य में कुकी उग्रवाद का इतिहास बहुत पुराना है. आजादी से कुछ दिनों पहले मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने इस भरोसे पर भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था कि राज्य की आंतरिक स्वायत्तता बहाल रहेगी. सितंबर, 1949 में केंद्र सरकार ने मणिपुर महाराज को भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने पर सहमत कर लिया.
बोधचंद्र सिंह ने तब राज्य विधानसभा से इस मुद्दे पर सलाह-मशविरा नहीं किया था. यूनाइटेड कुकीलैंड की स्थापना शुरू से ही कुकी उग्रवादी आंदोलन की मूल मांग रही थी. तब ऐसे संगठन म्यांमार, मणिपुर, असम और मिजोरम के कुकी बहुल इलाकों को लेकर इसके गठन की मांग कर रहे थे. पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में उग्रवादी आंदोलन की शुरुआत भारत में कथित जबरन विलय के विरोध में हुई थी. लेकिन, मणिपुर में आजादी के बाद शुरू होने वाले उग्रवादी आंदोलन की जड़ें जातीय पहचान पर उभरे द्वंद्व में छिपी थीं. वर्ष 1980 में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के तहत पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित किये जाने के बाद समस्या और बढ़ गयी. उसके तुरंत बाद ही राज्य में कुकी उग्रवाद में तेजी आयी और कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (केएनओ) और कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) जैसे उग्रवादी संगठनों का गठन किया गया. उसी दौरान कुकी कमांडो फोर्स और कुकी इंडिपेंडेंट आर्मी जैसे संगठनों की भी स्थापना हुई.
वर्ष 2005 में कुकी उग्रवादी संगठनों ने सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन, यानी अभियान स्थगित रखने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. तीन साल बाद वर्ष 2008 में उन्होंने अपनी गतिविधियां रोक कर समस्या के समाधान के लिए राजनीतिक विचार-विमर्श की खातिर केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार और मणिपुर सरकार के साथ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया. इसके तहत विभिन्न कुकी संगठनों के काडरों को सरकार की ओर से खोले गये शिविरों में रखा जाना था. साथ ही, उनके हथियार सुरक्षित रख कर उनकी गतिविधियों को शिविरों तक ही सीमित करने का प्रावधान था. लेकिन उसके बावजूद अक्सर कुकी उग्रवादी हथियारों के साथ शिविरों की सीमा से बाहर घूमते देखे जाते थे. अब कुकी उग्रवादी संगठनों ने अलग कुकीलैंड की मांग छोड़ दी है. अब वे संविधान के छठे अनुच्छेद के तहत असम के बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल की तर्ज पर कुकीलैंड टेरीटोरियल काउंसिल की स्थापना की मांग कर रहे हैं. हाल के कुछ वर्षों के दौरान मणिपुर की स्थिति काफी हद तक शांत हो गयी थी. लेकिन इस साल 10 मार्च को बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) के साथ अभियान स्थगित रखने के समझौते को खत्म कर दिया. सरकार का आरोप था कि दोनों संगठन जंगल की जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों को आंदोलन के लिए उकसा रहे हैं.
वर्ष 2012 में तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा मिलने का रास्ता साफ होने के बाद कुकी स्टेट डिमांड कमेटी (केएसडीसी) ने कुकीलैंड की मांग को लेकर नये सिरे से आंदोलन का एलान किया. संगठन ने कई बार मणिपुर में हड़ताल और राज्य को देश के बाहरी हिस्से से जोड़ने वाले नेशनल हाइवे की नाकेबंदी की ताकि जरूरी वस्तुएं मणिपुर में नहीं पहुंच सकें. बीते एक दशक में मणिपुर ने नाकेबंदी के कई लंबे दौर झेले हैं. केएसडीसी का कहना है कि वह नागा संगठनों की तरह अलग देश नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के तहत अलग राज्य की मांग कर रहा है. केएसडीसी के आंदोलन का असर भी हुआ. ओकराम ईबोबी सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने यूनाइटेड नगा काउंसिल के कड़े विरोध के बावजूद कुकी बहुल सदर हिल्स को अलग जिले का दर्जा दे दिया. पहले यह नगा-बहुल सेनापति जिले के हिस्सा था. वर्ष 2018 में छपी एक किताब में केएनओ के अध्यक्ष पीएस हाओकिप ने मणिपुर के चूड़ाचांदपुर और चंदेल जैसे कुकी-बहुल पहाड़ी जिलों का जिक्र करते हुए लिखा था कि मैतेई तबके के दबदबे वाली सरकार इन जिलों की भारी उपेक्षा कर रही है. हाओकिप ने यह भी लिखा था कि नगा विद्रोही समूह दशकों से कुकी की जमीन हड़पने का प्रयास कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मैतेई और कुकी जनजाति के उस पुराने झगड़े ने भी मौजूदा आंदोलन में आग में घी डालने का काम किया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)