इस वर्ष समूची दुनिया के शेयर बाजारों में तेजी देखी गयी है. वित्तीय विशेषज्ञ कह रहे हैं कि शेयर बाजारों के लिहाज से यह बहुत अच्छा साल रहा है. साल के आखिरी महीनों में अमेरिका में वॉल स्ट्रीट में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. गंभीर आर्थिक चुनौतियों के बावजूद यूरोपीय शेयर बाजारों का प्रदर्शन भी बढ़िया रहा है. यह बड़े अचरज की बात है कि जापानी शेयर बाजार, जो कई वर्षों से अच्छा नहीं कर रहा था, में इस साल बड़ी उछाल देखी गयी. साल 1989-90 के बाद जापान का शेयर बाजार अपने उच्चतम स्तर पर है. भारतीय स्टॉक मार्केट भी ऐतिहासिक ऊंचाई पर है तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसइ) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसइ) ऐतिहासिक स्तर पर हैं. शेयर बाजारों के मामले में इस साल का सबसे बड़ा अपवाद चीन रहा है. हाल के समय में दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में वृद्धि कम हुई है और उससे उबरने के प्रयास सफल नहीं हुए हैं. चीन के प्रॉपर्टी बाजार (रियल एस्टेट सेक्टर) में उतार-चढ़ाव को लेकर व्यापक रूप से अंदेशा जताया जा रहा है. इसके परिणामस्वरूप, हांगकांग स्टॉक मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उसके बाजार मूल्य में कमी आयी है. उल्लेखनीय है कि मूल्य की दृष्टि से भारतीय स्टॉक मार्केट ने हांगकांग को पीछे छोड़ दिया है. भारतीय शेयर बाजार अभी दुनिया का सातवां सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट बन गया है.
दुनियाभर के बाजारों में तेजी का संबंध निकट भविष्य को लेकर सकारात्मक अपेक्षाओं से है. अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति में गिरावट आयी है. आम तौर पर यह माना जा रहा है कि अगले वर्ष मुद्रास्फीति में और भी कमी आयेगी. उल्लेखनीय है कि वैश्विक मुद्रास्फीति को बढ़ाने में कोरोना महामारी तथा रूस-यूक्रेन युद्ध की बड़ी भूमिका रही है. मुद्रास्फीति के नियंत्रण में आने से उम्मीद की जा रही है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक या तो ब्याज दरों में कमी करेंगे या कम से कम उनमें बढ़ोतरी नहीं करेंगे. इससे यह अपेक्षा बनी है कि बाजार में पूंजी की उपलब्धता में वृद्धि होगी. यह जो अतिरिक्त पैसा आयेगा, वह विश्व के बड़े हिस्से में आर्थिक वृद्धि को भी गति देगा, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था पर दबाव में कमी आयेगी.
विशेष रूप भारतीय शेयर बाजार में इस साल लगातार रिकॉर्ड बढ़त होती रही है. इस कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह निवेशकों की पहली पसंद बन गया है. बीएसइ के सेंसेक्स और निफ्टी सूचकांक लगातार अपना रिकॉर्ड तोड़ते रहे हैं. कुल मिला कर, इस साल अब तक भारतीय स्टॉक मार्केट में 15 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. नवंबर के अंत तक नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की कुल बाजार पूंजी 3.989 ट्रिलियन डॉलर हो चुकी थी. भारतीय शेयर बाजार में इस शानदार उछाल के कुछ मुख्य कारण हैं. निकट भविष्य में आर्थिक वृद्धि से संबंधित उम्मीदें इन कारणों में एक है. वर्तमान वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आरंभिक आकलनों में आर्थिक वृद्धि 7.6 प्रतिशत रही, जो पूर्ववर्ती अनुमानों से अधिक है. मार्च 2024 में समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर के 6.4 प्रतिशत के आसपास रहने की आशा है. अगर इस दर को हासिल कर लिया जाता है, तो यह छह प्रतिशत के पूर्ववर्ती अनुमान से अधिक होगा. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि को लेकर बनी मौजूदा उम्मीदें भारत के वित्तीय बाजारों को एक वांछनीय गंतव्य बना रही हैं. एचएसबीसी के पूर्वानुमानों के अनुसार, अगले वर्ष भारतीय शेयर बाजारों में कमाई में बढ़ोतरी 17.8 प्रतिशत के आसपास रहेगी. यह एशिया में सबसे अधिक दरों में एक है. बेहतर कमाई की यह संभावना बाजार में पैसा भी ला रही है. माना जा रहा है कि बैंक, स्वास्थ्य सेवा और ऊर्जा ऐसे कुछ क्षेत्र हैं, जो अगले साल स्टॉक मार्केट में अच्छा प्रदर्शन करेंगे.
हाल के समय में भारतीय शेयर बाजार में घरेलू भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. छोटे या खुदरा निवेशक बड़ी संख्या में बाजार से जुड़े हैं और यह प्रक्रिया जारी है. ऐसा देखा गया है कि जहां आम तौर पर विदेशी निवेशक बड़ी पूंजी वाले शेयरों में सक्रिय रहते हैं, वहीं स्थानीय खुदरा निवेशक माध्यम और छोटी पूंजी वाले शेयरों में अपना पैसा निवेशित कर रहे हैं. इससे हाल में इस श्रेणी में शेयरों के शानदार प्रदर्शन को कुछ हद तक समझा जा सकता है. ऐसा लगता है कि बाजार में आ रही पूंजी के मुख्य स्रोत वे घरेलू म्युचुअल फंड हैं, जिनकी नीति में छोटे और मध्यम पूंजी वाले शेयरों में निवेश का प्रावधान है. अगले साल भी इस रुझान के जारी रहने की उम्मीद स्टॉक मार्केट में उछाल का एक बड़ा स्रोत हो सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ समय से अपने मुख्य ब्याज दर में वृद्धि के सिलसिले को रोका हुआ है. हालांकि भारत के केंद्रीय बैंक को मुद्रास्फीति को लेकर आशंकाएं अब भी बनी हुई हैं. मुद्रास्फीति की दर अब भी निर्धारित लक्ष्य से अधिक है, क्योंकि मूल्यों पर दबाव डालने वाले कारक अब भी मौजूद हैं, लेकिन शेयर बाजार के खिलाड़ी संभवत: अगले साल ब्याज दरों में कटौती की आस लगाये हुए हैं. उनकी आशा है कि यह कटौती सौ बेसिस प्वाइंट के दायरे में हो सकती है. ब्याज दरों का स्तर कम होने से नगदी की उपलब्धता बढ़ती है और इससे स्टॉक मार्केट में पैसा लगाने के जोखिम को उत्साह भी मिलता है. विधानसभा चुनावों में भाजपा की हालिया जीत से भी इस उम्मीद को बल मिला है कि वित्तीय बाजार से संबंध में नीतिगत निरंतरता बनी रहेगी. अगले साल भी राजनीतिक स्थिरता और नीतियों में निरंतरता बरकरार रहने की आशा भी बाजार को है.
फिर भी भारतीय और वैश्विक आर्थिक वृद्धि के समक्ष चुनौतियां और जोखिम बनी हुई हैं. भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक कारकों में हलचल से कीमतों में वृद्धि हो सकती है, खासकर अंतरराष्ट्रीय वस्तु बाजारों में. मसलन, यूरोपीय अर्थव्यवस्था और आर्थिक मंदी के बीच आंख-मिचौली चल रही है तथा कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि बढ़ी हुई ब्याज दरों के कारण अगले साल भी यही स्थिति रहेगी. अभी यह भरोसे से नहीं कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में आपूर्ति शृंखला में बाधा नहीं आयेगी. साथ ही, भारत और दुनिया के शेयर बाजारों का अनिश्चित स्वभाव भी एक वास्तविकता है. इसलिए निवेशकों, खासकर खुदरा निवेशकों, का कोई भी बेमतलब अति उत्साह संपत्ति खोने और अर्थव्यवस्था की हानि का कारण बन सकता है. इसलिए शेयरों में निवेश करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)