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चीन की शरारत

भारत ने स्पष्ट कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और ऐसे काल्पनिक नामकरण से इस वास्तविकता में परिवर्तन नहीं होगा.

अपनी विस्तारवादी मंशा का एक बार फिर इजहार करते हुए चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 11 स्थानों के नामों में बदलाव किया है. पहले भी उसने ऐसी हरकतें की है. इस शरारत पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने स्पष्ट कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और इस तरह के काल्पनिक नामकरण से इस वास्तविकता में परिवर्तन नहीं होगा. चीन अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए अलग तरह का वीजा देकर भी कई बार विवाद खड़ा कर चुका है.

हाल में अरुणाचल प्रदेश में हुए जी-20 की एक बैठक में चीन ने हिस्सा लेने से मना कर दिया था. शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक से पहले जगहों के नाम बदलने के पैंतरे ने फिर साबित किया है कि चीन इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए गंभीर नहीं है. हाल के वर्षों में दोकलाम और लद्दाख में दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां आमने-सामने आ चुकी हैं. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसने बड़ी तादाद में सैनिकों को तैनात किया हुआ है तथा सीमा के नजदीक कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं.

इन हरकतों के जवाब में भारत ने भी सैनिकों को मोर्चे पर खड़ा कर दिया है तथा सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए कई परियोजनाएं चलायी जा रही हैं. हालांकि नियंत्रण रेखा पर अभी शांति है, पर दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की कई चरण की बातचीत के बाद भी चीन ने अपने सैनिकों को पीछे नहीं हटाया है. भारत की मांग है कि सीमा विवाद पर किसी भी तरह की ठोस बातचीत शुरू करने से पहले नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल होनी चाहिए. हालांकि चीन ने कई बार आश्वासन दिया है कि वह अपनी टुकड़ियों को पीछे कर लेगा, पर ऐसा हुआ नहीं.

विभिन्न बहुपक्षीय मंचों और परस्पर वार्ताओं में चीन शांति और सहयोग की आकांक्षा तो व्यक्त करता है, लेकिन वास्तव में वह अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहता है. भारतीय क्षेत्रों पर चीन के आक्रामक दावों को तो छोड़ दें, नियंत्रण रेखा की यथास्थिति में एकतरफा बदलाव लाने के किसी कोशिश को भी भारत स्वीकार नहीं कर सकता है.

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर इस संबंध में स्पष्ट बयान दे चुके हैं. जानकारों का कहना है कि चीन एशिया में अपना एकाधिकार स्थापित करना चाहता है, लेकिन भारत की बढ़ती शक्ति एवं क्षमता के कारण ऐसा होना संभव नहीं है. भारत सामूहिक सहयोग और विकास का पक्षधर है. भारतीय क्षेत्रों के नाम बदलने की जगह चीन को अपनी आक्रामकता को लेकर आत्ममंथन करना चाहिए.

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