पद्मश्री अशोक भगत, सचिव, विकास भारती
vikasbharti1983@gmail.com
भारत में जनसंख्या का एक विशाल भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है. ये लोग आजीविका के लिए कृषि कार्यों पर आश्रित हैं. आजादी के बाद से ही राजनीतिक सत्ता केंद्रों की यह धारणा रही है कि ग्रामीण भारत का विकास केवल समाज कल्याण की योजनाओं में अनुदान देकर ही किया जा सकता है. इसे विकास का असल मानदंड नहीं माना जा सकता. ग्रामीण भारत की योजनाएं विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में तब तक सक्षम नहीं हो सकती, जब तक योजनाओं में समुदाय को शामिल नहीं किया जाता.
विगत 70 वर्षों में पहली बार ग्रामीण भारत के विकास पर बल दिया जा रहा है. सरकार ने कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान ग्रामीण भारत के महत्व को समझा है. महामारी ने शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्र में पलायन के लिए बाध्य किया. इससे राजनीतिक सत्ता केंद्र को ग्रामीण भारत के विकास का एक नया दृष्टिकोण मिला. भारतीय गांव आत्मनिर्भर थे. विकास की नयी नीतियों ने एक भय के माहौल का सृजन किया है. गांधी दार्शनिक धर्मपाल ने इसे विस्तार से व्याख्यापित किया है.
आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से, भारत सरकार ने रोजगार के लिए वर्ष 2005 में ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत नरेगा नामक एक योजना लांच की. वर्ष 2009 में इसका नाम मनरेगा कर दिया गया. इस योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के बुनियादी ढांचा को खड़ा करने की योजना थी. लगभग 5,17,50,950 आधारभूत संरचनाएं पूरे देश में विकसित की जा चुकी हैं. झारखंड के संदर्भ में यह संख्या 20,61,693 है.
मनरेगा की प्रासंगिकता को लेकर नीति-निर्माताओं और बुद्धिजीवियों के बीच लंबी बहस चली. लेकिन, कोविड-19 महामारी के दौरान इस योजना ने अपनी उपयोगिता दी और ग्रामीण जनता का सहयोग किया. इसने आर्थिक रूप से पिछड़े झारखंड को लंबे समय तक सहयोग प्रदान किया. भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य में मनरेगा की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि यह जाति, पंथ, लिंग के भेद के बजाय सभी के लिए समावेशी है.
आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस योजना में व्यापक सुधार लाने की आवश्यकता है. सुधार किसी भी नीति के प्रमुख अंग होते हैं. मनरेगा योजना बड़ी संख्या तक पहुंच गयी है और पूरेे देश में लोगों के लिए 2,81,33,19,916 रोजगार दिवस का सृजन हुआ है. झारखंड के संदर्भ में यह संख्या 9,30,92,530 है. इन सुधारों का जमीनी स्तर पर अनुभव किया गया है.
इस योजना को आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में प्रमुख सहयोगी बनाने के लिए कुछ और सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है. प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कार्य दिवसों की संख्या 100 से बढ़ा कर 150 की जानी चाहिए. इससे प्रत्येक कामगार के लिए औसतन 3.4 कार्य दिवस होंगे. राज्यों के स्तर पर मजदूरी में समरूपता होनी चाहिए. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के जिले के लिए विशेष प्रावधान किया जाना चाहिए.
मनरेगा ने इसकी नीति आपूर्ति संचालित की जगह मांग संचालित के रूप में परिवर्तित कर दिया है. आदिवासी क्षेत्रों में मांग बढ़ायी जानी चाहिए और उनके उत्थान के लिए दीर्घकालिक ई-संपतियों को सृजित किया जाना चाहिए. सामुदायिक हस्तक्षेप से उनकी सहभागिता बढ़ायी जानी चाहिए. ‘जन मनरेगा’ एप को प्रयोक्ता मैत्रीपूर्ण बनाना चाहिए और इसमें स्थानीय भाषाओं को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि योजना की विस्तृत एवं छिपी हुई विशेषताएं वंचित समुदाय अथवा मनरेगा के लाभुकों तक आसानी से पहुंच सकें.
उनके काम और मजदूरी से संबंधित रोजगार की सूचनाएं एप/मैसेज के द्वारा लाभुकों तक उपलब्ध करायी जा सकें. मूल्यांकन-अध्ययन जागरूकता एक चुनौती बन गयी है. ई-सक्षम, भुवन और सेकुरा जैसे पोर्टल के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लाभुकों के क्षमता निर्माण में नागर समाज की भूमिका बढ़ायी जानी चाहिए. वंचित क्षेत्रों में कार्यरत जमीनी स्तर की संस्थाओं को मजदूरी/रोजगार के विषय में जागरूकता बढ़ाने एवं तकनीकों का उपयोग करने हेतु शासनादेश दिया जाना चाहिए. ‘शिकायत निवारण’ को इन पोर्टलों से जोड़ा जाना चाहिए और आर्थिक दंड के लिए जबावदेही तय की जानी चाहिए.
मनरेगा के लाभुकों के यौन उत्पीड़न को रोकने और इसकी चुनौतियों से संबंधित शासनादेश में अनुच्छेद जोड़ा जाना चाहिए तथा कार्य स्थल पर संस्थागत व्यवस्थाएं की जानी चाहिए. यौन उत्पीड़न से संबंधित कानूनों और शासनादेशों के विषय में मनरेगा के कार्य स्थलों पर लोगों को जागरूक एवं संवेदनशील बनाया जाना चाहिए. राज्य सरकारों को जिला और राज्य स्तर पर इसके लिए मनरेगा कार्यालयों में केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए. कार्य की गुणवत्ता हेतु बहुदलीय मूल्यांकन का प्रावधान हो.
सरकार को फेलोशिप कार्यक्रम अथवा स्वैच्छिक योजनाओं को शामिल करना चाहिए, ताकि देश स्तर पर प्रोफेशनल्स को इस योजना से जोड़ा जा सके, जो अग्रपंक्ति के कार्यकर्ताओं के क्षमता निर्माण में सहयोग कर सकें. ग्राम पंचायतों एवं स्थानीय प्रशासन की क्षमता को, समुदाय की उचित मांग को समझने के लिए बढ़ाया जाना चाहिए ताकि लोगों और समुदाय को भविष्य में संपत्तियों को खड़ा करने में लाभ पहुंचाया जा सके.
कार्य के लिए सरकार को ऑनलाइन पोर्टल को शामिल करना चाहिए जो पक्षपातपूर्ण पहल के अवसरों को कम कर सके. पूर्ण रूप से मनरेगा में ग्रामीण भारत को बदलने और आत्मनिर्भर बनाने की क्षमता है. ग्राम पंचायतों को सशक्त करने और समावेशी विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है, बावजूद इसके सुधार लाने एवं आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)