भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कुछ दिन पहले घोषित मौद्रिक नीति में नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है, जो अप्रैल 2023 से चली आ रही दर है. ऐसे समय में जब दर में कटौती के लिए तर्क दिया जा सकता है कि रिजर्व बैंक ने खुद कहा है कि मुद्रास्फीति को वापस स्थिर स्थिति में ला दिया गया है, तब यह रेपो दर क्षितिज पर कुछ अनिश्चितताओं को देखते हुए सतर्क दृष्टिकोण का संकेत देती है. इनमें मध्य-पूर्व में बढ़ता संकट एक बड़ा कारक है, जिससे भू-राजनीतिक अस्थिरता तथा ऊर्जा और खाद्य कीमतों के बारे में चिंताएं बढ़ी हैं. गवर्नर शक्तिकांत दास की टिप्पणियों और बयान से जो तस्वीर सामने आती है, उसमें एक तरफ आशावाद और दूसरी तरफ सावधानी है. यह असंगत मिश्रण हमें बताता है कि आरबीआइ की नजर मुद्रास्फीति पर विशेष रूप से केंद्रित है, हालांकि कुल मिलाकर मुद्रास्फीति की स्थिति संतोषजनक है. कई मायनों में, मुद्रास्फीति पर यह नजर उस ढांचे का उत्सव है, जिसे ‘एफआइटी’ के संक्षिप्त नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण है. इसके तहत रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के माध्यम से मौद्रिक नीति का संचालन करता है, जिसको निर्देश है कि विकास को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत अंक ऊपर या नीचे के दायरे में चार प्रतिशत पर बनाये रखना चाहिए.
हालिया नीतिगत निर्णय एक ऐसी समिति की ओर से आया है, जिसमें नये बाहरी सदस्य हैं क्योंकि अपने संक्षिप्त इतिहास में तीसरी बार समिति ने कार्यकाल पूरा होने के बाद सदस्यों को बदल दिया है. यह एमपीसी प्रणाली की बढ़ती परिपक्वता को दर्शाता है. आरबीआइ अधिनियम, 1934 की धारा 45 जेडबी के तहत 27 जून 2016 को गठित होने के बाद से यह एमपीसी की 51वीं बैठक भी थी. रेपो दर को अपरिवर्तित रखने का निर्णय सर्वसम्मत नहीं था. यह बहुमत से हुआ, जिसमें छह सदस्यों में से एक ने दर में कटौती की मांग की. पर एमपीसी ने सर्वसम्मति से मौद्रिक नीति के रुख को ‘समायोजन की वापसी’ (जून 2022 से लागू) से ‘तटस्थ’ रुख में स्थानांतरित करने के लिए मतदान किया. तकनीकी रूप से, ‘तटस्थ’ रुख न तो विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक उदार रुख को दर्शाता है और न ही मूल्य स्थिरता बनाये रखने के लिए एक सख्त रुख को इंगित करता है. जैसा कि आरबीआइ ने कहा है, तटस्थ रुख मूल्य स्थिरता प्राप्त करने की दृष्टि से उभरती व्यापक वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थिति को संबोधित करने के लिए ‘अधिक लचीलापन और विकल्प’ प्रदान करता है. संक्षेप में, गवर्नर के बयान के साथ देखने पर एमपीसी संकल्प स्पष्ट रूप से निकट अवधि में वृद्धि के साथ सौम्य मुद्रास्फीति दृष्टिकोण के साथ एक मजबूत विकास दृष्टि को सामने लाता है. ग्रामीण मांग (बेहतर कृषि स्थिति से प्रोत्साहित) और शहरी मांग (सेवाओं की बढ़त पर आधारित) बढ़ने के साथ-साथ गैर-खाद्य बैंक ऋण में वृद्धि, बेहतर क्षमता उपयोग, इंफ्रास्ट्रक्चर में उच्च सरकारी निवेश आदि से विकास की गति को बढ़ाने में मदद मिलेगी.
इन आधारों पर 2024-25 में वास्तविक आर्थिक वृद्धि (मुद्रास्फीति को नहीं जोड़ते हुए) 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इसके अलावा, 2025-26 की पहली तिमाही में अनुमानित वृद्धि 7.3 प्रतिशत होगी. भले ही मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान 2024-25 के लिए 4.5 प्रतिशत और 2025-26 की पहली तिमाही के लिए 4.3 प्रतिशत पर बना हुआ है, लेकिन अप्रत्याशित मौसम की स्थिति, बिगड़ते भू-राजनीतिक माहौल और वैश्विक वस्तु कीमतों में संभावित वृद्धि के संदर्भ में कुछ जोखिम हैं. यहां कुछ प्रासंगिक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. पहला, क्या आर्थिक विकास को सरकारी निवेश द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए, जिससे राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा बढ़े? सरकार को उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए और निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी आनी चाहिए. इसके लिए ऋण लेना और क्षमता उपयोग में वृद्धि आवश्यक शर्तें हैं, लेकिन औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से स्पष्ट है कि बुनियादी ढांचे में निजी निवेश कम रहा है. उल्लेखनीय है कि बाह्य वाणिज्यिक उधारी में नरमी के संकेत हैं- यह अप्रैल-अगस्त 2024 में 3.6 अरब डॉलर रहा, जो एक वर्ष पहले 4.3 अरब डॉलर था. प्रतीत होता है कि निजी क्षेत्र में पूंजीगत व्यय के लिए पर्याप्त उत्साह नहीं है.
दूसरा, अगस्त की बैठक के बाद से अनेक देशों ने दर में कटौती की है. भारत में उच्च ब्याज दर विदेशों से पूंजी आकर्षित करेगी, जिससे आरबीआइ के मौद्रिक प्रबंधन पर दबाव बढ़ेगा. तीसरा, एमपीसी की ओर से ‘तटस्थ’ रुख अपनाने के माध्यम से एक स्पष्ट संदेश स्वागतयोग्य है. विकास के अनुमान अच्छे हैं और मुद्रास्फीति को लेकर भी संतोषजनक दृष्टिकोण है. गवर्नर दास ने जोर दिया कि मुद्रास्फीति दर में कमी पर आगे भी नजर रखने की जरूरत है. नीतिगत दर में कटौती के संदर्भ में कुछ अग्रिम मार्गदर्शन की भी जरूरत है. यदि मुद्रास्फीति में अपेक्षित उछाल अस्थायी ही रहता है, तो दिसंबर की एमपीसी बैठक में संभवत: नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की कटौती हो सकती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)