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ऐतिहासिक है नारी शक्ति वंदन अधिनियम

यह सही है कि महिलाओं को आरक्षण देने के प्रस्ताव पहले भी संसद में आये हैं, लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि उनमें से कोई भी कानून नहीं बन सका. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस बारे में कभी नीयत साफ नहीं रही, तो कभी तैयारी पूरी नहीं रही, तो कभी इसे पारित करवाने के लिए आंकड़े पक्ष में नहीं थे.

‘घर में, रण में, कार्यक्षेत्र में

हर जगह दिया है योगदान

है गढ़ा मनुज को, ज्ञान दिया

कई बार किया है गरलपान

संघर्ष से पाया हक अपना

ऊंचा रखा है स्वाभिमान

आभारी हैं मोदी जी के हम

नारी को दिया उचित सम्मान.’

नारी शक्ति को सम्मान और अधिकार देने की जो प्रतिबद्धता आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी में है, उसे प्रमाणित करने के लिए मुझे कहीं और जाने की जरूरत नहीं. मैं खुद प्रमाण हूं. झारखंड के कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के देवतुल्य मतदाताओं ने वर्ष 2019 में भारी अंतर से विजयी बनाकर मुझे पहली बार देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजा, और माननीय प्रधानमंत्री जी ने मुझे अपने मंत्रिपरिषद का हिस्सा बनाया. प्रधानमंत्री जी ने 11 महिलाओं को अपने मंत्रिपरिषद में स्थान दिया है. क्या यह नारी सम्मान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण नहीं है?

मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि लगभग पूरा सदन इस विधेयक का समर्थन कर रहा है, और इस बात की लगभग गारंटी हो गयी है कि यह बिल सर्वसम्मति से पारित हो जायेगा. मैं इस परिस्थिति को देश में महिला आकांक्षाओं के चरमोत्कर्ष का प्रतिबिंब मानती हूं. तो क्या आज हमें इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि महिला आकांक्षाओं को चरमोत्कर्ष के स्तर तक लानेवाले कारक कौन से हैं? इस विषय का ईमानदारी से विश्लेषण हो, तो इसका श्रेय भी आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को ही दिया जायेगा.

आज हमारी बच्चियां सैनिक स्कूलों में प्रवेश पाकर देश के रक्षा तंत्र का हिस्सा बनने की तैयारी कर रही हैं. महिलाएं फाइटर जेट उड़ा रही हैं, सैन्य अधिकारी बन रही हैं. खदानों और उद्योगों में उन जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं, जो कुछ साल पहले तक महिलाओं के लिए वर्जित मानी जाती थीं. खेल का मैदान हो या मनोरंजन की दुनिया, तकनीक का क्षेत्र हो या अनुसंधान जगत, आज हर जगह महिलाओं ने अंगद की तरह मजबूती से अपने पांव जमा लिये हैं. आज हमारी मुस्लिम बहनें तीन तलाक के अभिशाप से मुक्त होकर लगातार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रही हैं. ये सारे सकारात्मक बदलाव प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी, और हमारी सरकार की दूरदर्शी नीतियों के कारण, महिला आकांक्षाओं के पंखों को उन्मुक्त परवाज का मौका दिये जाने के कारण आये हैं.

इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद कांग्रेस सहित विपक्ष के कई दल कई प्रकार की आपत्तियां भी जता रहे हैं. इसमें उनका दोष नहीं. दरअसल हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी संवेदना के जिस स्तर पर जाकर महिलाओं को सम्मान और अधिकार देने की सोच रहे हैं, वहां तक इन दलों की संकुचित दृष्टि जा ही नहीं पाती. इनकी सोच लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व तक सीमित है, जबकि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी महिलाओं के नेतृत्व में नये, विकसित और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की परिकल्पना करते हैं. मोदी जी ने नारी आकांक्षाओं को कितना ज्यादा महत्व दिया है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि नये संसद भवन के ऐतिहासिक अनावरण के बाद महिला आरक्षण जैसे अति महत्वपूर्ण विधेयक को वहां की पहली संसदीय कार्यवाही के रूप में चुना गया. यह सही है कि महिलाओं को आरक्षण देने के प्रस्ताव पहले भी संसद में आये हैं, लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि उनमें से कोई भी कानून नहीं बन सका. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस बारे में कभी नीयत साफ नहीं रही, तो कभी तैयारी पूरी नहीं रही, तो कभी इसे पारित करवाने के लिए आंकड़े पक्ष में नहीं थे. लेकिन मोदी जी इस विधेयक को नारी शक्ति के प्रति पूरी श्रद्धा रखते हुए, पूरी तैयारी के साथ लेकर आये हैं और इसलिए अब महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण का हक लेने से कोई रोक नहीं सकता.

कांग्रेस कहती है कि उन्होंने राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित कराया, और इसलिए उसे आज प्रधानमंत्री की इस युगांतरकारी पहल का श्रेय मिलना चाहिए. केवल श्रेय लेंगे? फिर राज्यसभा में पारित वह विधेयक वर्ष 2010 से 2014 तक लोकसभा में पड़ा रहा, वह पारित नहीं हुआ, और लोकसभा के भंग होने के साथ ही रद्द भी हो गया. तो फिर उसकी जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए. आधी आबादी के साथ किये गये इस सबसे बड़े धोखे के लिए माफी भी मांगनी चाहिए. हम इतने बड़े विषय पर संकुचित नजरिये से नहीं सोचते. हम स्वीकार करते हैं कि ग्रामीण और शहरी निकायों में कांग्रेस की सरकार ने महिला आरक्षण का प्रावधान किया. लेकिन ऐसे आरक्षण की क्या उपयोगिता जो लंबे समय तक अमल में आ ही न सका.

झारखंड में अविभाजित बिहार के समय से ही, करीब ढाई दशक तक स्थानीय निकायों के चुनाव हुए ही नहीं. झारखंड में भाजपा की सरकार ने आरक्षण के प्रावधान के बाद पहली बार स्थानीय निकायों के चुनाव कराये, तब कहीं जाकर स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण का प्रावधान जमीन पर उतरा. कांग्रेस और उनके कुछ सहयोगी दल अचानक ओबीसी समुदाय के हितैषी बन गये हैं, इन्हें आरक्षण के कोटे के भीतर आरक्षण चाहिए. कांग्रेस के नेता बतायेंगे कि स्थानीय निकायों में जो महिला आरक्षण का प्रावधान है, और जिसका ये बढ़-चढ़कर श्रेय ले रहे हैं, उसमें भी क्या आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था है? या महिला आरक्षण का जो विधेयक आपने राज्यसभा से पास कराया था, उसमें कोटा के भीतर कोटा था क्या?

इन्हें अचानक राज्यसभा और विधान परिषदों में भी आरक्षण की चिंता हो गयी, लेकिन क्या ये बतायेंगे कि इन्होंने जो विधेयक राज्यसभा से पारित कराया था, उसमें राज्यसभा और विधान परिषदों में आरक्षण की व्यवस्था क्यों नहीं थी? मेरा मानना है कि ये राजनीतिक दल महिलाओं को सम्मान और अधिकार सुनिश्चित करनेवाले इस विधेयक का विरोध कर नहीं सकते, क्योंकि उसके परिणाम का इन्हें भली-भांति अंदाजा है. लेकिन हमारी शादियों में नाराज फूफा की तरह कुछ न कुछ मीन-मेख निकालना इनकी मजबूरी है. सदन इनकी मजबूरी समझे, इन्हें माफ करे और इस ऐतिहासिक विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर भारतीय संसदीय इतिहास के स्वर्णिम अध्याय की रचना करे, यही मेरी अभिलाषा है. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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