Indian Navy : ऋग्वेद के मंत्र ‘शं नो वरुणः’ को सूत्रवाक्य बना सागर के देवता वरुण के आशीर्वाद की कामना करने वाली भारतीय नौसेना ही नहीं, बल्कि पूरा देश चार दिसंबर को नौसेना दिवस के रूप में मनाता है. इसके पीछे एक गौरवशाली इतिहास है. स्वतंत्र भारत की नौसेना को उसकी सबसे बड़ी कामयाबी 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसी दिन हासिल हुई थी. इसी दिन पाकिस्तानी नौसेना के बड़े हिस्से को हमारी नौसेना ने कराची बदंरगाह पर ‘ऑपरेशन त्रिशूल’ के जरिये एक हमले में नेस्तनाबूद कर दिया था. पाकिस्तान की पनडुब्बी गाजी को बंगाल की खाड़ी में डुबा देना भी उस युद्ध में हमारी नौसेना की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी. परंतु आज की वैश्विक परिस्थितियों में हमारी नौसेना के पास अतीत की उपलब्धियों से संतुष्ट होकर बैठ जाने का विकल्प नहीं है.
दक्षिण चीन सागर में चीन की महत्वाकांक्षी सक्रियता
दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक के विस्तृत क्षेत्र में महत्वाकांक्षी चीन लगातार सक्रियता बनाये हुए है. चीन भारत को एक उभरती शक्ति के रूप में नहीं स्वीकारना चाहता है. तभी उसने मालदीव और श्रीलंका से लेकर ईरान की खाड़ी तक के क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए सामरिक शक्ति के विस्तार और प्रदर्शन से लेकर कूटनीति, छल-छद्म तक कुछ भी उठा नहीं रखा है. हमारी नौसेना पर आज देश की तटीय सीमाओं से कहीं आगे बढ़ कर बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह से लेकर अरब सागर, पूरे हिंद महासागर में चीन की बढ़ती हुई महत्वाकांक्षा से टक्कर लेने का भारी दायित्व है. जिसे निभाने में नौसेना ने अपनी तरफ से कुछ उठा नहीं रखा है.
नौसेना के पास हैं 150 से अधिक पोत
भारत सरकार भी नौसेना को अत्याधुनिक युद्धपोतों, प्रक्षेपास्त्रों, विमानवाहक पोतों, इन पोतों के लिए राफेल जैसे सशक्त लड़ाकू विमान और पारंपरिक डीजल पनडुब्बियों से लेकर आणविक पनडुब्बियों तक हर तरह के शस्त्रास्त्र मुहैया कराने के लिए कटिबद्ध है. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय नौसेना के हिस्से में हर तरह के पोत मिलाकर कुल 33 जहाज और 9,600 नौसैनिकों और अफसरों का मानव संसाधन था. आज की नौसेना डेढ़ सौ से भी अधिक पोतों और 67,000 से अधिक मानव संसाधन से सुसज्जित है. परंतु नौसेना की सामर्थ्य बढ़ाने में असली योगदान केवल संख्या का नहीं, बल्कि गुणवत्ता का होना चाहिए, इस तथ्य से देश का राजनीतिक नेतृत्व और नौसेना के उच्चतम स्तरीय अधिकारी खूब परिचित हैं. इस दिशा में रक्षा अनुसंधान विभाग सदा से महत्वपूर्ण किरदार निभाता रहा है, परंतु आत्मनिर्भरता व मेक इन इंडिया की दूरगामी सोच आज निजी क्षेत्र से भी सहयोग लेने में हिचक नहीं रही है.
निजी संस्था भी भारतीय नौसेना को सशक्त बनाने में जुटे
भारत युद्धपोतों, पनडुब्बियों और विमानवाहक पोतों के निर्माण में विदेशी सहायता पर इस हद तक निर्भर हो गया था कि आज से केवल दस-पंद्रह वर्ष पहले सोचना भी संभव नहीं था कि नौसेना के काम आने वाले अत्याधुनिक तकनीकी के शस्त्रास्त्र कभी भारत में बन पायेंगे. परंतु आज नौसेना के लिए मजगांव डॉक्स डिस्ट्रॉयर तथा शिवालिक श्रेणी के गुपचुप विध्वंसक (स्टेल्थ फ्रिगेट) बना रहा है. गार्डेन रीच वर्कशॉप जल-थल वाहक (एंफीबियस पोत) और त्वरित हमला करने वाली नौकाएं बना रहा है, तो कोचीन शिपयार्ड हमारे कुल दो विमान वाहक पोतों (विक्रांत और विक्रमादित्य) की संख्या में वृद्धि के इरादे से भारत में ही विमान वाहक पोत बनाने की दिशा में में सक्रिय है. नौसेना के लिए पोतों के निर्माण कार्य से अब तक निजी क्षेत्र को अलग-थलग रखा गया था. आज पिपराव और एबीजी शिपयार्ड जैसी निजी संस्था भी भारतीय नौसेना को सशक्त बनाने में जुट गयी हैं.
भारतीय नौसेना की लंबी दूरी तक प्रहार करने की क्षमता आज कहां तक जा पहुंची है, इसका उत्तर है हमारी आणविक शक्ति चालित पनडुब्बियों द्वारा मध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्र से मार करने की क्षमता. इस संदर्भ में आणविक पनडुब्बी अरिघात द्वारा अंतर-महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों द्वारा जल की सतह से नीचे से प्रहार करने के सफल परीक्षण का जिक्र करना अपरिहार्य है. आज बंगाल की खाड़ी में जल की सतह के नीचे से हमारी आणविक पनडुब्बियां साढ़े तीन हजार किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने में समर्थ हो चुकी हैं.
नौसेना की मारक क्षमता चीन-पाकिस्तान तक
पाकिस्तान से लेकर चीन के बड़े भूभाग तक हमारी नौसेना की मारक क्षमता के अंदर आ चुके हैं. वर्ष 2024 में भारतीय नौसेना ने अरब सागर और खाड़ी के देशों में दस युद्धपोतों को भेज अपनी लगातार बढ़ती शक्ति और मारक दूरी का परिचय दिया है. नौसेना की अन्य महत्वपूर्ण नयी उपलब्धियों में पहली बार किसी महिला अधिकारी को युद्धपोत की कमान सौंपने और अग्निवीर योजना में महिलाओं को सम्मिलित करना भी है. इसमें संदेह नहीं कि आने वाले वर्षों में नौसेना के बढ़ते कदम भारत को एक शक्तिशाली नौसैनिक देश के रूप में दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर मध्य-पूर्व एशियाई देशों तक में प्रतिष्ठित कर सकेंगे. यह निर्णायक कदम उठेगा हमारी आणविक पनडुब्बी द्वारा सागर तल के नीचे से ‘के 5’ आइसीबीएम द्वारा पांच हजार किलोमीटर दूर तक प्रहार करने की क्षमता हासिल कर लेने के साथ. भारतीय नौसेना यह क्षमता शीघ्रातिशीघ्र हासिल कर ले, इससे बेहतर शुभकामना उसे नौसेना दिवस पर नहीं दी जा सकती. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)