इस्राइल और हमास के बीच छिड़ी लड़ाई के दौरान भारत एक कूटनीतिक चुनौती का सामना कर रहा है. वह इस्राइल का भी करीबी है और फिलीस्तीनियों के अधिकारों का भी हिमायती रहा है. भारत सात अक्तूबर को हमास के हमले के बाद इस्राइल के साथ एकजुटता दिखाने वाले सबसे पहले देशों में शामिल रहा है. फिर 27 अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र में अरब देश जब एक प्रस्ताव लेकर आये तो भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इससे ऐसा लगा जैसे भारत अरब देशों के साथ नहीं खड़ा होना चाहता और वह इस्राइल के साथ है. भारत में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इसे लेकर मोदी सरकार को घेरने की भी कोशिश की. लेकिन भारत की स्थिति को लेकर जारी असमंजस को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दूर करने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा है कि आतंकवाद को लेकर भारत का रुख हमेशा से कड़ा रहा है, क्योंकि भारत के लोग आतंकवाद के बड़े पीड़ित हैं. विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद को लेकर भारत की स्थिति एक ही रहनी चाहिए. विदेश मंत्री ने जो बात कही है वह मौजूदा संघर्ष के दौरान बहस का एक बड़ा विषय बन चुका है. भारत मानता है कि हमास ने इस्राइल पर हमला कर जिस तरह से आम लोगों की जान ली और बंधक बनाया वह एक आतंकवादी कृत्य है. इस आधार पर भारत इस्राइल को एक आतंकवाद पीड़ित देश मान रहा है. दूसरी ओर, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में 22 अरब देशों के प्रस्ताव का इस आधार पर समर्थन नहीं किया क्योंंकि इसमें संकट के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था, और केवल मानवता के नाम पर लड़ाई रोकने की बात की गयी थी.
लेकिन कनाडा ने जब इस प्रस्ताव में सुधार प्रस्तावित किया तो भारत ने 87 देशों के साथ इसका समर्थन किया क्योंकि इसमें संकट के लिए हमास को जिम्मेदार ठहराने का प्रस्ताव सुझाया गया था. हालांकि पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने से यह पारित नहीं हो सका. देखा जाए तो भारत की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है. उसके लिए अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का विरोध पहली प्राथमिकता है. साथ ही, उसने दो-राष्ट्र के फॉर्मूले के तहत फिलीस्तीनियों के अलग राष्ट्र बनाने के सुझाए समाधान का भी समर्थन नहीं छोड़ा है. भारत से साथ ही दोनों पक्षों से लड़ाई रोक शांति वार्ता के लिए माहौल बनाने का भी आह्वान किया है. भारत के सामने रूस-यूक्रेन संकट के दौरान भी ऐसी ही कूटनीतिक चुनौती आयी थी, और उसने तब भी ऐसा ही संतुलित रवैया अपनाया था.