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कर निर्धारण की नयी प्रणाली

फेसलेस एसेसमेंट को अगर साधारण भाषा में समझें, तो यह टेक्नोलाॅजी के माध्यम से करदाता द्वारा जमा किये गये कर का मूल्यांकन है. इससे भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता मिलेगी.

प्रो अरविंद मोहन, अर्थशास्त्री

mohanarvind@hotmail.com

फेसलेस एसेसमेंट भी टैक्स एसेसमेंट की एक सामान्य-सी प्रक्रिया है, जहां ऑनलाइन आपका मूल्यांकन होता है और आपको यह भी पता नहीं चलता कि कौन-सा अधिकारी आपका मूल्यांकन कर रहा है. उस अधिकारी को भी आपके बारे में कुछ पता नहीं होता कि आप कौन हैं? वह केवल वित्तीय लेन-देन का ऑनलाइन मूल्यांकन करता है. फेसलेस एसेसमेंट को अगर साधारण भाषा में समझें, तो यह टेक्नोलाॅजी के माध्यम से करदाता द्वारा जमा किये गये कर का मूल्यांकन है. यह प्रक्रिया तो शुरू भी हो चुकी है. फेसलेस होने का सबसे बड़ा लाभ है कि इससे पारदर्शिता आयेगी और भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता मिलेगी. चूंकि इस प्रक्रिया के तहत करदाता और आयकर अधिकारी का एक-दूसरे से आमना-सामना नहीं होगा, ऐसे में तमाम तरह के कदाचार पर लगाम लगेगी.

आयकर मूल्यांकन तो कुछ समय से फेसलेस होने लग गया है, लेकिन अपील अब भी फेसलेस नहीं है. इसमें करदाता और अधिकारी का आमना-सामना होता है. एक करदाता को अपील के लिए आयकर अधिकारी के पास जाना ही पड़ता है, लेकिन अब जिस प्रक्रिया को लाने की बात हो रही है, उसमें अपील भी फेसलेस होगी.

मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की आय का मूल्यांकन किया गया और उस पर कर लगा दिया गया, लेकिन उस व्यक्ति को लगता है कि उसका मूल्यांकन गलत हुआ है, तो वह इसके लिए अपील करेगा. अभी तक अपील करने के लिए आयकर अधिकारी या कमिश्नर के पास जाना पड़ता था. अब एक नयी प्रक्रिया की शुरुआत की जा रही है, जहां अपील भी ऑनलाइन होगी और आपकी अपील किसी अधिकारी को सौंप दी जायेगी, लेकिन आप जान नहीं पायेंगे कि किस अधिकारी को आपकी अपील सौंपी गयी है. यही फेसलेस अपील है.

चार्टर की यदि बात करें, तो इसका अर्थ होता है पारदर्शी तरीके से सभी चीजें विभाग द्वारा घोषित कर देना कि वे किसी तरीके से काम करेंगे, किस तरीके से आपका मूल्यांकन करेंगे आदि. चूंकि अब कर से जुड़ी बहुत-सी प्रक्रियाएं फेसलेस हो जायेंगी, तो सब चीज ऑनलाइन ही होंगी. आप विभाग की वेबसाइट पर जायेंगे, तो वहां पर आपको सब चीजें दिख जायेंगी. चार्टर के जरिये आमतौर पर यही होने की संभावना है. चार्टर में कौन-कौन से बिंदु रखे गये हैं, यह एक अलग बात है, लेकिन चार्टर का हमेशा आशय यही होता है कि हमने सब चीज पारदर्शिता के साथ पहले से सामने रख दी है.

वेबसाइट पर आप देख सकते हैं कि आपसे क्या अपेक्षा है और कर विभाग क्या व कैसे काम करेगा. यह भी पारदर्शिता लाने की एक प्रक्रिया है. जब भी ज्यादा पारदर्शिता लायी जाती है, तो हमेशा भ्रष्टाचार की संभावनाएं कम हो जाती हैं. इससे कर विभाग और करदाता, दोनों को चीजों को समझने में आसानी होगी, गलती करने की भी संभावना कम हो जायेगी. यहां किसी विशेष परिस्थिति में ही कोई गलती होगी. असल में, चार्टर करदाता और कर विभाग दोनों के लिए सीमाएं तय कर देता है.

कर सुधार की बात करें, तो यह प्रक्रिया हमारे देश में बहुत समय से चल रही है. हमारे देश में समय-समय पर तरह-तरह के कर सुधार होते रहे हैं. हाल का सबसे बड़ा कर सुधार जीएसटी है. हमारे जितने भी अप्रत्यक्ष कर थे, उनमें से अधिकांश जीएसटी के अंतर्गत ला दिये गये हैं. इसी तरह समय-समय पर प्रत्यक्ष कर, जैसे आयकर में भी सुधार होता रहा है. यदि आप पिछले कुछ बजट को देखें, तो सरकार का विशेष फोकस करदाता की कम संख्या को लेकर रहा है. देशभर में मुश्किलन एक से डेढ़ करोड़ व्यक्ति ही कर का भुगतान कर रहे हैं; बाकी लोग भुगतान नहीं कर रहे हैं.

इसका सबसे बड़ा नुकसान है कि सरकार को कर की दर बढ़ानी पड़ती है, लेकिन अब कोशिश यह है कि टैक्स नेक यानी कर के दायरे को और बढ़ा दिया जाये. इस कारण पारदर्शिता बढ़ेगी. पिछले कुछ समय में जो बदलाव हुए हैं, उनमें नकद भुगतान पर विशेष रूप से रोक लगाने की कोशिश की गयी है. नकद भुगतान जितना कम होगा, बैंक के माध्यम से लेन-देन उतना बढ़ जायेगा. ऐसे में आप जितने भी बैंक अकाउंट ऑपरेट करेंगे और उसके जरिये जो भी लेन-देन करेंगे, वह आपके बैंक के माध्यम से और आपके आधार से जुड़े होने के कारण कर विभाग की नजर में स्वतः ही आ जायेगा, क्योंकि उनके पास आपका सारा डेटा है.

दूसरा, जीएसटी में तमाम तरह की क्रेडिट सुविधाएं दी गयी हैं. उदाहरण के लिए, आप फाइनल प्रोडक्ट बनाते हैं और तमाम तरह की इंटरमीडिएट वस्तुओं का इसमें इस्तेमाल करते हैं, जिस पर पहले से कर का भुगतान किया हुआ है, तो आप टैक्स क्रेडिट का लाभ ले सकते हैं. जैसे, आप ब्रेड बनाते हैं, तो ब्रेड से पहले कोई दूसरी कंपनी आटा बना रही है. आपने कंपनी का आटा खरीदा और उससे ब्रेड बना लिया.

आटा पर यदि पहले से कुछ कर का भुगतान किया हुआ है, तो पहले से दिये गये इस कर का क्लेम करने पर आपको रिफंड मिल सकता है. मान लीजिए, मेरी फैक्ट्री है. मैंने उसके लिए काफी सारा आटा खरीदा, लेकिन उसका आधा ही दिखाया, लेकिन जिस कंपनी से मैंने आटा खरीदा था, उसने अपना टैक्स क्रेडिट क्लेम किया और घोषित किया कि उसने सौ क्विंटल आटा मुझे बेचा था, पर यहां तो मैंने पचास क्विंटल आटे पर ही कर का भुगतान किया है. इस प्रकार, इस प्रक्रिया से धीरे-धीरे पारदर्शिता आती जायेगी और जो चोरी हो रही है, वह कम हो जायेगी.

यदि जीएसटी में तमाम तरह की चोरी पकड़ में आयेगी, तो आयकर विभाग को भी यह पता लगेगा कि फलां व्यक्ति ने अब तक मात्र पचास करोड़ का ही लेन-देन दिखाया था, जबकि इसने कच्चा माल ही सौ करोड़ का खरीदा था. तब उसकी आय का मूल्यांकन भी इसी के अनुसार बदलता चला जायेगा. इससे अपने आप ही यह पता लगेगा कि कौन गड़बड़ कर रहा है. इससे धीरे-धीरे पारदर्शिता की प्रक्रिया स्वतः विकसित होती चली जायेगी और इसमें टेक्नोलाॅजी की बहुत बड़ी भूमिका होगी.

(बातचीत पर आधारित)

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