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पीएम मोदी : स्वर्णिम भारत के निर्माता

योग, आयुर्वेद, ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’, व्यापारिक लेन-देन के साथ-साथ कोविड महामारी के समय लगभग 100 देशों को वैक्सीन की सहायता देकर भारत ने मजबूत साख बना ली है, जिसकी अनुगूंज संयुक्त राष्ट्र से लेकर जी-20 समूह में सुनी जा सकती है.

प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक जेम्स फ्रीमैन क्लार्क ने कहा था कि एक राजनीतिज्ञ अगले चुनाव की सोचता है, पर राजनेता अगली पीढ़ी के बारे में सोचता है. जेम्स क्लार्क से भी आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केवल अगली पीढ़ी नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों की चिंता करते हुए एक स्वर्णिम भारत के निर्माण की सिद्धि में संकल्पित साधक एवं कर्मयोगी राजनेता के रूप में दिखाई पड़ते हैं. मोदी सरकार के पिछले आठ वर्षों के रिपोर्ट कार्ड इसकी पुष्टि करते हैं.

सन 2014 में केंद्र सरकार में आने के बाद नरेंद्र मोदी के सामने कई चुनौतियां थीं- शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की समस्या, आर्थिक जगत और उद्योगों से लेकर रक्षा समस्या, किसानों, मजदूरों व महिलाओं की समस्याएं आदि. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की साख डावांडोल थी, लेकिन द्रष्टा प्रधानमंत्री मोदी के पास नये भारत के निर्माण के संकल्प के साथ एक कारगर कार्ययोजना थी.

सोशल सेक्टर में ‘स्वच्छ भारत’ और शौचालय अभियान के अलावा ‘आयुष्मान भारत’ जैसी दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना या लोगों के लिए आवास ने करोड़ों गरीबों का कायाकल्प कर दिया. ‘उज्ज्वला’ योजना ने लाखों महिलाओं को धुएं से मुक्त कर स्वच्छ गैस पर भोजन पकाने की सुविधा प्रदान की, तो ‘जल जीवन मिशन’ के तहत सुदूर क्षेत्रों में भी नल से जल मुहैया कराया गया, जिसका सपना गरीब महिलाएं देखा करती थीं.

प्रधानमंत्री मोदी यह समझते हैं कि राष्ट्र के विकास के लिए मजबूत अर्थव्यवस्था बहुत जरूरी है. साल 2014 में सरकार के समक्ष कर्ज से दबी अर्थव्यवस्था, मानवीय हस्तक्षेप वाली पुरानी कर प्रणाली, एनपीए संकट से जूझते बैंक और सदियों पुराने निरर्थक नियम-कानून थे. नये नियम बना कर बैंकों को एनपीए से मुक्त करने के साथ विमुद्रीकरण कर ऑनलाइन लेन-देन को बढ़ावा दिया गया.

‘एक राष्ट्र-एक कर’ यानी जीएसटी प्रणाली लागू कर कराधान को सुगम किया गया. आयकर में भी सुधार हुए. सुधारों के परिणामस्वरूप आयकर और जीएसटी का अभूतपूर्व संग्रह हुआ है, जिसका एक बड़ा हिस्सा जन कल्याण में खर्च हो रहा है. ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘वेंचर कैपिटल फंडिंग’ की नयी संस्कृति के चलते नवोद्यमों की राह आसान हुई है.

देश में ‘यूनिकॉर्न’ की संख्या का सौ से अधिक हो जाना इसका बड़ा प्रमाण है. ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ अभियान के चलते गत वर्ष भारत ने 418 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड निर्यात किया, जो देश की विनिर्माण व बढ़ती सेवा क्षमता का प्रमाण है. इन्हीं सबका का फल है कि भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने अभूतपूर्व सम्मान हासिल किया है. योग, आयुर्वेद, ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’, व्यापारिक लेन-देन के साथ-साथ कोविड महामारी के समय लगभग 100 देशों को वैक्सीन की सहायता देकर भारत ने मजबूत साख बना ली है, जिसकी अनुगूंज संयुक्त राष्ट्र से लेकर जी-20 समूह में सुनी जा सकती है. यूक्रेन संघर्ष में भारतीय कूटनीति ने दुनिया में गहरा प्रभाव छोड़ा है. आज अमेरिका और रूस दोनों ही भारत से मित्रता चाहते हैं.

आज अनेक अरब देश भारत के गहरे मित्र हैं, जो मुस्लिम जगत में भारत के बढ़ते प्रभाव का परिचायक है. वैश्विक परिवर्तनों और नयी जरूरतों को देखते हुए मोदी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी कदम उठाये हैं. शिक्षा में मैकाले मॉडल की जगह महात्मा गांधी मॉडल को अपनाया गया है, जिसका फल है ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’.

किसी शिक्षा नीति में पहली बार होगा कि हर बच्चे को अपनी रुचि के हिसाब से पढ़ाई करने का अवसर मिले. उच्च शिक्षा को स्ट्रीम्स के खांचे से मुक्ति, मातृभाषा में पढ़ाई, एकेडेमिक क्रेडिट बैंक, मल्टीपल एंट्री-एक्जिट आदि की नयी संकल्पनाएं देश की दशा और दिशा का ग्राफ बदल कर रख देंगी. स्कूल और कॉलेज दोनों ही स्तरों पर व्यावसायिक शिक्षण-प्रशिक्षण पर प्रतिबल रोजगार में मददगार होगा.

मोदी सरकार जनजातीय समाज की आकांक्षाओं के प्रति विशेष सजग है. जनजातीय समुदाय के त्याग-बलिदान को याद करते हुए भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित किया गया, तो स्कूल-कॉलेज में जनजातीय बच्चों की भागीदारी बढ़ाने हेतु संबद्ध क्षेत्रों में विशेष छात्रावास, शुल्क माफी और वित्तीय सहायता की पेशकश, जनजातीय समाज की भाषा-संस्कृति को संरक्षित करने के साथ-साथ ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ में खेल पर भी विशेष जोर दिया गया है.

जनजातीय बच्चों के लिए एकलव्य विद्यालयों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है. उच्च शिक्षा के स्तर पर जनजातीय-औषधीय प्रथाओं, वन प्रबंधन, पारंपरिक (जैविक) फसल की खेती, प्राकृतिक खेती आदि में विशिष्ट पाठ्यक्रम को बढ़ावा दिया जायेगा. शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी इन दिशाओं में तेजी से कार्य कर रहे हैं.

मोदी सरकार द्वारा लाये गये परिवर्तन न केवल तात्कालिक, बल्कि दीर्घकालिक जरूरतों पर भी खरे उतरने वाले हैं. जरूरत है तो बस जनता को अपना विश्वास बनाये रखने की और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिखायी गयी राह पर मजबूती से चलते रहने की. एक नये भारत, आत्मनिर्भर भारत, जगद्गुरु भारत और स्वर्णिम भारत का स्वप्न तभी साकार हो सकेगा.

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