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पीएम मोदी की पोलैंड-यूक्रेन यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो पूर्वी यूरोपीय देशों- पोलैंड एवं यूक्रेन- के दौरे पर हैं. अपनी इस यात्रा के क्रम में वे पोलैंड के बाद यूक्रेन पहुंचे हैं. यह यात्रा यह इंगित करती है कि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में सकारात्मक साख होने तथा लगभग सभी देशों से संबंध होने के बावजूद भारत को कई देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों को अभी मजबूत करना बाकी है.

PM Modi’s Poland visit: पोलैंड एक महत्वपूर्ण देश है तथा इसके साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध भी अच्छे हैं. पहले भारत के कुछ नेता पोलैंड की यात्रा कर चुके हैं. फिर भी साढ़े चार दशक की लंबी अवधि में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला पोलैंड दौरा है. इस दौरे से दोनों देशों के संबंधों को एक नयी ऊर्जा मिलने की आशा है. जब दो देशों में संबंध अच्छे होते हैं, तो सहयोग के छोटे-बड़े अवसर और विकल्प सामने आते जाते हैं. इस यात्रा में भी सुरक्षा और तकनीक के क्षेत्रों में सहयोग तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाने पर चर्चा हुई है. प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे से यह संदेश भी गया है कि पोलैंड के साथ परस्पर सहकार को भारत समुचित महत्व देता है. हाल के वर्षों में पोलैंड ने उल्लेखनीय विकास किया है. वह यूरोपीय संघ का भी सदस्य देश है. भारत और यूरोपीय संघ तथा इस समूह के विभिन्न सदस्य देशों के साथ संबंध उत्तरोत्तर बेहतर हो रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में ऑस्ट्रिया का भी दौरा किया था तथा वे जी-7 की बैठक में भी शामिल हुए थे. इस दृष्टि से भी पोलैंड की यात्रा का बड़ा महत्व है.

इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी का यूक्रेन जाना सबसे महत्वपूर्ण है. इस दौरे पर दुनियाभर की निगाहें लगी हुई हैं. सोवियत संघ के पतन के बाद 1991 में एक स्वतंत्र देश के रूप में यूक्रेन के अस्तित्व में आने के साथ ही भारत से उसके कूटनीतिक संबंध स्थापित हो गये थे. दोनों देशों के बीच मित्रता संधि भी हुई थी. बाद के वर्षों में दोनों देशों के बीच वाणिज्य एवं व्यापार में बढ़ोतरी होती गयी. लेकिन 1991 से लेकर अब तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन की यात्रा नहीं की थी. इस पृष्ठभूमि में यह दौरा बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. ढाई साल से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. युद्ध क्षेत्र में कोई भारतीय प्रधानमंत्री शायद ही आज से पहले किसी दौरे पर गया हो. ऐसे में यह एक उल्लेखनीय यात्रा है. दोनों देशों के इस युद्ध का असर समूची दुनिया पर पड़ा है. ग्लोबल साउथ के देश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. भारत हमेशा से यह कहता रहा है कि संवाद, कूटनीति तथा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के प्रति सम्मान से ही शांति संभव है. युद्ध के मैदान में कोई समाधान नहीं निकल सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के अवसर पर रूस के राष्ट्रपति पुतिन के समक्ष भी स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है. पिछले महीने अपनी रूस यात्रा के दौरान भी उन्होंने रेखांकित किया था कि समाधान युद्ध के माध्यम से हासिल नहीं हो सकता है.


रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू से ही भारत की कोशिश रही है कि किसी तरह यह लड़ाई बंद हो. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों से अनेक बार बातचीत की है. जी-7 समूह की बैठक के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की से मुलाकात की थी. पिछले माह वे रूस गये थे. फोन पर भी इन नेताओं से उनकी बातें हुई हैं. अन्य देशों के नेताओं से भी प्रधानमंत्री मोदी ने इस मसले पर चर्चा की है. अंतरराष्ट्रीय मंचों से भी भारत युद्ध रोकने और संवाद स्थापित करने का आह्वान करता रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह युद्ध केवल रूस और यूक्रेन के बीच नहीं हो रहा है, बल्कि रूस और पश्चिम के बीच हो रहा है. इसलिए अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश भी अगर सहमत होंगे, तभी यह युद्ध थम सकता है. पिछले महीने जब प्रधानमंत्री मोदी मॉस्को गये थे, तब रूस पर यह आरोप लगा था कि उसने बच्चों के एक अस्पताल पर हमला किया है. अब जब वे कीव में हैं, तो यूक्रेन ने कुर्स्क में हमला किया है. ऐसी घटनाएं मुश्किल स्थिति पैदा कर देती हैं. हालात नाजुक हैं, इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन यह भी साफ है कि हमारे सामने शांति का कोई विकल्प नहीं है. इसके लिए जो भी प्रयास किये जायेंगे, उनमें भारत की अहम भूमिका होगी क्योंकि भारत को विभिन्न पक्षों का भरोसा हासिल है. इसीलिए यूक्रेन और पश्चिम की ओर से कहा जा रहा है कि भारत रूस से बात करे. पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन समेत अनेक देशों के नेताओं से बात की है, तो मेरा मानना है कि अब जब वे कीव में हैं, तो उनके पास स्थिति का एक ठोस आकलन है कि किस तरह इस युद्ध को रोका जा सकता है. भारत यह प्रस्ताव भी दे सकता है कि सभी संबद्ध पक्ष भारत में आकर बातचीत कर सकते हैं.


यदि यह युद्ध थम जाता है, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी, लेकिन निकट भविष्य में ऐसा नहीं भी हो सकता है क्योंकि मसला बहुत जटिल है. दोनों ही परिस्थितियों में भारत का योगदान महत्वपूर्ण माना जायेगा. पिछले कुछ समय से हमारी विदेश नीति और कूटनीति की सक्रियता बहुत बढ़ी है. हमारी विदेश नीति में सभी देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखना एक अहम आयाम है. भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि उत्साहजनक है, हमारे यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है, राजनीतिक स्थिरता है. ऐसे में वैश्विक मुद्दों पर हो रही चर्चा एवं गतिविधियों में भारत की भागीदारी बढ़ी है. कुछ दिन पहले ग्लोबल साउथ के देशों की बड़ी बैठक भारत के संयोजन में हुई. संयुक्त राष्ट्र समेत बहुराष्ट्रीय मंचों पर हमारी उपस्थिति ठोस हुई है. इसी ओर प्रधानमंत्री मोदी ने संकेत दिया है कि भारत अब किनारे नहीं खड़ा होता है. यह सक्रियता बहुत आवश्यक भी है क्योंकि अगर हम अपने को ग्लोबल साउथ की आवाज मानते हैं, तो हमें विकासशील देशों की मुश्किलों को भी सामने लाना पड़ेगा. आज दुनिया में जो भी लड़ाइयां चल रही हैं, उनका नकारात्मक असर सबसे अधिक ग्लोबल साउथ पर ही पड़ रहा है. इसलिए युद्ध रोकने की कोशिशों में भी हमें आगे रहना होगा. किसी भी संघर्ष के समाधान के लिए ऐसे व्यक्ति या देश की आवश्यकता होती ही है, जिस पर सभी का भरोसा हो. भारत आज एक ऐसा देश बनकर उभरा है. आज दुनिया में बहुत से देश अमेरिका पर भरोसा नहीं करते हैं, उनका विश्वास पूरी तरह से चीन पर भी नहीं है. यूरोप के साथ उनकी अपनी परेशानियां हैं. लेकिन भारत को लेकर ऐसी कोई दुविधा किसी देश के मन में नहीं है क्योंकि हमारी विदेश नीति संतुलित रही है. आशा है कि ढाई साल से चल रही लड़ाई रोकने में प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा एक सकारात्मक योगदान साबित होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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