डॉ. कविता विकास
लेखिका
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विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिस सहज-सरल भाषा का उपयोग किया जाता है, उसे आमतौर पर लिखित और मौखिक भाषा की श्रेणी में रखा जाता है. इनमें जिन विधाओं का प्रयोग होता है, वे हैं गद्य और पद्य. गद्य कहानी का रूप है, जो लघु और बृहद दोनों हो सकते हैं. पद्य यानी कविता जहां हम अपने विचारों को कम से कम शब्दों में साझा कर सकते हैं. कविता के क्षेत्र में गीत और गद्य में कहानी मानवीय सभ्यता के आद्य अभिव्यक्ति माध्यम हैं.
तुलसीदास ने चौपाई, छंद आदि के माध्यम से राम कथा लिखा. यह अंतर्मन में चलने वाली उधेड़बुन, पीड़ा, संवाद आदि को बतलाने का सशक्त जरिया है. गीत, गजल, मुक्तक आदि से जुड़ने के बाद कविता संगीत की परिधि को भी विस्तार देती है. इसलिए कविता गाकर भी सुनायी जाती है. कविता के इस महत्व को देखते हुए यूनेस्को द्वारा 21 मार्च, 1999 को पेरिस में आयोजित सम्मेलन के दौरान प्रत्येक वर्ष कविता दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. इसका उद्देश्य कवियों और कविता की सृजनात्मक गुण को सम्मान देना था.
विश्व कविता दिवस के माध्यम से भाषाविद भाषाई विविधता का समर्थन करने के साथ लुप्तप्राय भाषाओं को विश्व समुदाय के बीच लाकर उनके संरक्षण का प्रयत्न करते हैं. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने प्रत्येक वर्ष 21 मार्च के दिन कवियों और कविता की स्वयं से लेकर प्रकृति और ईश्वर आदि तक के भावों को सम्मान देने का निश्चय किया है.
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी के द्वारा हर साल विश्व कविता दिवस बड़े उत्साह से मनाया जाता है. लिखने की विधा चाहे जो हो पर कोई किसी की नकल नहीं कर पाता है. यही तो कविता को अमरता प्रदान करने वाला तत्त्व है. हर कविता अपने मन की उपज है. संवेदना एक हो सकती है, पर उसको व्यक्त करने के शब्द निस्संदेह अलग होंगे. समय की गति और रुचि में बहुत अंतर आया है.
प्राचीन कविताएं कुतूहल प्रधान और आध्यात्म विषयक होती थीं, पर आजकल दूसरे अंगों की भांति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और मनोरहस्य के उद्घाटन को ध्येय समझती हैं. प्रकृति ,प्रेम ,संघर्ष आदि तो कविता के मूल में बसते ही हैं. ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान’ ने दुख की अभिव्यक्ति का सटीक साधन कविता को ही माना है. यानी सुख के साथ दुख का भी भार कविताएं ढोती हैं.
विश्व कविता दिवस के लिए तरह-तरह के आयोजन होते हैं. कविता पाठ और पुराने कवियों को याद करना, पाठकों की प्रतिक्रिया आदि तो समारोह के अंश हैं ही, प्रकाशक के भी अनुभव पर ध्यान दिया जाता है और नयी किताबों के विमोचन आदि किये जाते हैं. कविताओं का प्रचार-प्रसार ही इस दिवस का उद्देश्य है. कविता वह जरिया है, जो भेदभाव नहीं मानती. लोगों ने आज के साहित्य को भले ही वामपंथी, दक्षिणपंथी, दलित, नारी-विषयक श्रेणियों में खंडित कर दिया हो, लेकिन असली साहित्यकार तो वही है, जिसकी रचनाएं समाज का आईना बनती हैं.
खुशी और गम को अंतर्भाव किस रूप में समाज के सामने लाते हैं और वह रूप किस हद तक पाठक को उद्वेलित करता है, यही कविता का उद्देश्य है. कविताएं कोरी कल्पना नहीं होतीं. वे यथार्थ का चित्रण हैं. यथार्थ में कथ्य बोझिल न हो जाए, इसलिए कवि शब्द संयोजन से शिल्प पैदा करता है, जो सौंदर्य बोधक होता है. भाव, कथ्य और शिल्प के मेल से कविता बनती है. सहज-सरल भाषा, जिसे कम पढ़े लोग भी समझ लें और उसके आस्वादन से मन तृप्त हो, वही कविता उत्तम मानी जाती है.
मनुष्य के भीतर छिपा एक कवि है, जो सारी अनुभूतियों को भाषा में रचने के लिए अपनी स्मृति और मानसिक उद्यम के साथ निरंतरता बनाये रखता है. कविता की कोई कसौटी नहीं है. फिर भी जहां सार्थकता और अभिव्यक्ति का आकर्षण हो, वहां कविता सबसे ज्यादा सराही जाती है. अपना एक प्रतिमान गढ़ना और फिर तोड़ देना बतलाता है कि कविताएं सतत लिखी जा रही हैं. कविता का रूप बदल सकता है, मंतव्य या गंतव्य नहीं.
कविता मानव मन की गहरी अभिव्यक्ति का साधन है, जो सार्वभौमिक कला के रूप में अपनायी जाती है. यह समुदाय और संस्कृति के बीच संवाद और सूझ-बूझ प्रदान करती है. कविता के विषय वस्तु की खोज कवि बाहर से नहीं, अपने भीतर करता है. मानव प्रेम, उदारता और विश्व-बंधुत्व की भावना कविता के मूल में है. इन भावनाओं के परिष्कार के लिए ही विश्व कविता दिवस की उत्पत्ति हुई.
शास्त्रीय बंधनों का खंडन भी आवश्यक है क्योंकि कविता बंदिश में नहीं लिखी जाती है. कविता संवेदना की उदात्त अवस्था है, वह प्रेम में आंखों का नीर बन जाती है, प्रकृति में ईश्वरीय तत्त्व को प्राप्त करती है और वेदना में नफरत की दीवार को ध्वस्त कर देती है. मानवीय संस्कृति कविता बनाती है, लेकिन उसी संस्कृति को बेहतर करने का काम कविता करती है. संवाद के शाश्वत तत्व के रूप में कविता को अपनाकर इसके विकास में हमें अपना योगदान देना होगा और यही विश्व कविता दिवस का लक्ष्य भी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)