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गिग श्रमिकों के लिए सार्थक प्रयास

कानून के प्रावधानों के अंतर्गत गिग श्रमिकों के पोर्टल पर रजिस्टर्ड सभी व्यक्तियों को राजस्थान सरकार की विभिन्न सामाजिक तथा आर्थिक कल्याण की सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा.

बीते दिनों राजस्थान सरकार द्वारा जब ‘गिग’ श्रमिकों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण से संबंधित एक विधेयक को विधानसभा में पारित किया गया, तो इस बात की चर्चा देश में एकाएक होने लगी कि इस तरह के कानून असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों की आर्थिक सुरक्षा हेतु बहुत आवश्यक हैं. असंगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग अपने तथा अपने परिवार के गुजर-बसर के लिए दिन- प्रतिदिन के रोजगार पर निर्भर रहते हैं,

परंतु उन्हें कष्ट इस बात का रहता है कि अपने जीवन को काम में झोंकने के बावजूद उन्हें अपने नियोक्ता या संस्थान से अपने भविष्य के प्रति किसी भी प्रकार की आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती है. उन्हें ना तो भविष्य निधि में निवेश के माध्यम से मासिक आर्थिक बचत का विकल्प उपलब्ध होता है, और ना ही दुर्घटनाओं के घटित होने पर किसी भी तरह की बीमा की सुविधा.

इसके अलावा, असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिक की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर परिवार को किसी भी तरह की वित्तीय सुविधा ना मिल पाना भी एक ऐसा दर्द है, जिसे समाज का एक बहुत बड़ा तबका बीते कई वर्षों से अपने अंदर समेटे हुए है. यहां पर हमें कोरोना महामारी में लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद कई दिनों तक सड़कों पर जो हुजूम देखने को मिला था, वह यकीनन इसी दर्द को बयां कर रहा था.

वह हुजूम अपनी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा ना होने के कारण ही शहरों को छोड़कर अपने गांव की तरफ पैदल चल पड़ा था. ज्ञात रहे कि इस विधेयक के बाद गिग श्रमिकों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण से संबंधित प्रावधानों को कानूनी जामा अब तक पूरे देश में मात्र राजस्थान राज्य ने ही पहनाया है. गहलोत सरकार ने फरवरी 2023 में प्रस्तुत किये गये बजट में इससे संबंधित प्रावधानों को बताया था तथा बीते हफ्ते इसे सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया गया.

यह भी एक हकीकत है कि अमूमन समाज के हर दूसरे व्यक्ति को ‘गिग’ शब्द का अर्थ पता नहीं है, पर वे सब इन दिनों इस शब्द को बहुतायत में अपने आसपास सुन रहे हैं. वास्तविकता में गिग शब्द से ही जुड़ा हुआ एक अन्य शब्द है, फ्रीलांसर. कोरोना महामारी के दौरान जब बड़ी कंपनियों ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ के कल्चर को भारतीय समाज में स्थापित किया, तो फ्रीलांसर वाली सुविधा बहुत अधिक प्रचलन में आने लगी.

तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि कंपनियों ने स्वयं इस तरह के कर्मचारियों को अधिक प्राथमिकता दी क्योंकि इससे उनकी वित्तीय लागत कम होने लगी. आज देश में करीब 15 करोड़ लोग फ्रीलांसर के रूप में विभिन्न कंपनियों में कार्यरत हैं जिनमें आइटी, बीपीओ, एफएमसीजी,फार्मा, मैन्युफैक्चरिंग, मार्केटिंग, ब्रांडिंग, ऑनलाइन एजुकेशन, ट्रांसपोर्टेशन तथा अकाउंटिंग आदि मुख्य हैं.

विभिन्न विशेषज्ञों के अनुसार, आगामी दो-तीन वर्षों में इसके माध्यम से जीडीपी में भी एक से डेढ़ प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है. विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि आने वाले वर्षों में गिग के माध्यम से तकरीबन 30 से 35 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा, हालांकि वर्तमान समय में बड़ी कंपनियों में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 10 प्रतिशत के आसपास ही है.

लेकिन, इन दिनों ये गिग शब्द भारतीय समाज में उन श्रमिकों का भी प्रतिनिधित्व कर रहा है, जो आधुनिक भारत के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले विभिन्न स्टार्टअप्स में बहुत बड़ी तादाद में कार्यरत हैं तथा वास्तविकता में उनकी रीढ़ हैं. भारत के नये उद्यमी इस बात का श्रेय लेने की कोशिश करते हैं कि विश्व में सबसे अधिक श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि पर भारत में ही प्रयास किया जाता है.

यह सही भी है क्योंकि जब ऑर्डर दिये जाने के दस मिनट के अंदर ग्राहक के पास उसकी पसंद की खाने की चीजें आ जाती हैं, तो यह इस बात को साबित करता है कि विभिन्न कंपनियां जिनमें स्विगी, जोमैटो आदि शामिल हैं, बेहतरीन आर्थिक निवेश शोध व अनुसंधान के माध्यम से अपने श्रमिकों में कर रही हैं. इसी तरह, बड़े शहरों में जब ओला व उबर के मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से पांच से दस मिनट के अंदर ग्राहक के पास एक टैक्सी उसे उसके गंतव्य स्थल पर ले जाने के लिए उपलब्ध हो जाती है, जो उसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की धक्का-मुक्की से भी बचा रही है और अनजाने रास्तों की पहचान के जोखिम को भी खत्म कर रही है.

इसके अलावा, बड़े शहरों में वर्चुअल कार्ड के माध्यम से ग्राहक द्वारा पसंद की गयी सब्जियों को डिलीवरी बॉय के द्वारा बिना ग्राहक को परेशान किये, सुबह-सवेरे उसके घर के दरवाजे पर उपलब्ध करवाना भी बहुत प्रचलन में है. इसके साथ ही 30 से 40 किलोमीटर तक फैले हुए बड़े शहरों में अब एक ही दिन में कुरियर की सुविधा भी उपलब्ध है. इन स्टार्टअप्स में काम करने वाले ये सभी लोग भी ‘गिग श्रमिक’ कहलाते हैं जो वास्तविकता में विभिन्न आर्थिक तथा सामाजिक सुविधाओं में असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के जैसे ही हैं.

राजस्थान सरकार द्वारा जब एक विधेयक के माध्यम से इन स्टार्टअप्स के गिग श्रमिकों के आर्थिक व सामाजिक कल्याण हेतु कानून को विधानसभा में पारित किया गया, तो यह विधेयक देश में कार्यरत सभी गिग श्रमिकों के लिए एक नजीर बना है. राजस्थान सरकार के अनुसार, इन दिनों राजस्थान में तकरीबन तीन-चार लाख लोग इस तरह के रोजगार में संलग्न है. यह कानून सभी गिग श्रमिकों को विभिन्न आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देता है.

इसके मुख्य प्रावधानों के अंतर्गत राजस्थान सरकार द्वारा इन सभी श्रमिकों को एक पोर्टल पर रजिस्टर किया जायेगा तथा उसके माध्यम से उन्हें व्यक्तिगत रूप से एक यूनिक कोड आवंटित होगा. कानून के प्रावधानों के अंतर्गत गिग श्रमिकों के पोर्टल पर रजिस्टर्ड सभी व्यक्तियों को राजस्थान सरकार की विभिन्न सामाजिक तथा आर्थिक कल्याण की सुविधाओं का प्रत्यक्ष लाभ मिल सकेगा. स्टार्टअप्स को भी एक निश्चित रकम कर्मचारी वेलफेयर फंड में निवेश करनी होगी.

ऐसा ना होने पर विभिन्न कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज से लेकर पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भी कानूनी प्रावधानों में उल्लेखित है. इस जुर्माने की अधिकतम सीमा 50 लाख रुपये तक है. विधेयक में गिग श्रमिकों के लिए एक कल्याण बोर्ड स्थापित करने की परिकल्पना भी की गयी है. अब देखना है कि राजस्थान में पारित गिग श्रमिकों के कल्याण से संबंधित यह कानूनी प्रावधान दूसरे राज्यों में भी कानूनी शक्ल अख्तियार करते हैं या नहीं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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