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बढ़ती महंगाई से राहत जरूरी

आरबीआई ने संकेत दिया है कि अब आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के बजाय महंगाई पर अधिक ध्यान होगा. आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि का अनुमान भी कम कर दिया है, जबकि मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ा दिया है.

डॉ जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री

article@jlbhandari.com

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.95 फीसदी पर पहुंच गयी, जो फरवरी में 6.07 फीसदी थी. लगातार तीसरे महीने खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक के सहज स्तर छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित होने से जिंसों की कीमतों में तेजी आयी है. चीन में कोविड-19 लॉकडाउन के कारण उत्पादन में कमी आयी है. ऐसे अनेक कारणों से महंगाई बढ़ रही है. यद्यपि अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की, पाकिस्तान आदि देशों में भारत की तुलना में कई गुना अधिक महंगाई है. फिर भी, भारत में महंगाई से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ गयी हैं.

सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि करने की जो रणनीति अपनायी है, उससे कीमतों में 10 रुपये प्रति लीटर तक की वृद्धि हो चुकी है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के कारण 137 दिनों तक पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर रहीं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का क्रूड बास्केट 12 अप्रैल को 102 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो गया है. चूंकि, मार्च से कीमतों में धीरे-धीरे इजाफा किया गया है, इसलिए मुद्रास्फीति पर इसका असर सीमित रहा, लेकिन जिंसों के ऊंचे दामों और कमजोर रुपये के कारण मुद्रास्फीति 2022-23 की पहली तिमाही उच्च स्तर पर बनी रह सकती है. पेट्रोल व डीजल की कीमतें बढ़ने से गरीब व मध्यम वर्ग की मुश्किलें बढ़ रही हैं. इससे आर्थिक पुनरुद्धार को झटका लग रहा है. वस्तुतः महंगाई एक छिपे हुए प्रतिगामी कर की तरह है.

इससे उद्योग-कारोबार का मुनाफा कम होता है, जिसका सीधा असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पड़ता है. चूंकि, उद्योग-कारोबार कीमतों का बोझ अंतिम उपभोक्ता पर डालते हैं, अतएव इससे उपभोक्ताओं की खर्च करने वाली आय कम होती है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से बजट घाटे में वृद्धि होगी. वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट यूक्रेन संकट के पहले तैयार हुआ है. बजट तैयार करते समय कच्चे तेल की कीमत 70-75 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान था. ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई-जनित मंदी की आशंका भी है. अगर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर रहती है, तो भारत का चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत तक बढ़ सकता है.

अच्छी कृषि पैदावार खाद्य पदार्थों की कीमतों के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. देश में फरवरी, 2022 में चावल और गेहूं का केंद्रीय भंडार करीब 54 मिलियन टन था. यह देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवश्यकता से अधिक है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक राशन प्रणाली में जनवरी, 2022 तक 77 करोड़ से अधिक लाभार्थी जुड़े. इस प्रणाली को डिजिटल बनाने से तकरीबन 19 करोड़ अपात्र लोगों को बाहर किया गया है. यह संख्या कुल 80 करोड़ लाभार्थियों की करीब एक चौथाई है.

कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल, 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरुआत की थी. यह योजना महंगाई की मार को कम करने में भी राहतकारी दिखाई दे रही है. प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने सितंबर, 2022 तक 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में राशन देने का फैसला किया है. संवेदनशील दलहनों और खाद्य तेल कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित किया जा रहा है. भारत के पास अप्रैल 2022 में करीब 610 अरब डॉलर का विशाल विदेशी मुद्रा भंडार है.

भारत के चालू खाते का घाटा काफी कम है. आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की समीक्षा की है. इसमें केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया, मगर यह संकेत दिया कि वह अब आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के बजाय महंगाई पर अधिक ध्यान देगा. आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि का अनुमान भी कम कर दिया है, जबकि मुद्रास्फीति अनुमान बढ़ा दिया है. कोविड-19 का महंगाई से सीधा संबंध है. अतएव पूर्ण टीकाकरण व बूस्टर खुराक पर पूरा ध्यान जरूरी है. कालाबाजारी पर नियंत्रण करना होगा. कच्चे तेल के वैश्विक दाम में तेजी के बीच तेल विपणन कंपनियों की एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम में दिलचस्पी और बढ़ानी होगी.

मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के अप्रैल से दिसंबर के बीच पेट्रोलियम उत्पादों पर सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क के रूप में सरकार को करीब 24 फीसदी अधिक राजस्व मिला है. आनेवाले महीनों में सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए, जो ग्राहकों को पेट्रोल-डीजल की महंगाई से बचाये रखें. जिस तरह पिछले वर्ष 2021 में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक होने पर केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर सीमा व उत्पाद शुल्क में और कई राज्यों ने वैट में कमी की थी, वैसे ही कदम अब फिर जरूरी दिखायी दे रहे हैं. सरकार कच्चे तेल की कीमतों में हो रही वृद्धि को रोकने के लिए सामरिक सुरक्षित भंडार से कच्चा तेल जारी करने पर भी विचार कर सकती है. हम उम्मीद करें कि सरकार ऐसे विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से देश के आम आदमी और अर्थव्यवस्था को महंगाई के खतरों से बचाने के लिए तेजी से आगे बढ़ेगी और हरसंभव उपाय करेगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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