भारत ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इसमें वैश्विक स्तर पर हमारी उपस्थिति अपेक्षाकृत बहुत कम है. शोध एवं विकास के मद में हमारा खर्च देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.7 प्रतिशत से भी कम है, जबकि इस खर्च का वैश्विक औसत 1.8 प्रतिशत है. भारत के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के सचिव अभय करंदीकर ने कहा है कि यदि हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में अग्रणी होना है, तो शोध एवं विकास में खर्च में उल्लेखनीय बढ़ोतरी करते हुए इसे जीडीपी का तीन से चार प्रतिशत किया जाना चाहिए.
करंदीकर इंजीनियर एवं अन्वेषक हैं तथा दूरसंचार के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए प्रतिष्ठित हैं. सचिव बनने से पहले वे आइआइटी, कानपुर के निदेशक एवं प्राध्यापक रह चुके हैं. उनके अनुभव, उपलब्धि और योगदान को देखते हुए शोध एवं अनुसंधान के संबंध में उनके सुझाव का महत्व बढ़ जाता है. उन्होंने उचित ही रेखांकित किया है कि खर्च बढ़ाने का कार्य सरकार अकेले नहीं कर सकती है. इसमें निजी क्षेत्र को बढ़-चढ़कर भागीदारी करनी होगी. जो देश शोध एवं विकास के मद में अपनी जीडीपी के दो प्रतिशत हिस्से से अधिक का खर्च करते हैं, उसमें 70 से 80 प्रतिशत योगदान निजी क्षेत्र से आता है.
भारत ने इस खर्च को दो प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन अनुसंधान खर्च में लगातार वृद्धि के बावजूद यह कभी एक प्रतिशत के स्तर तक भी नहीं पहुंच पाया है. निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से अनेक लाभ हो सकते हैं. सबसे अहम बात तो यह है कि ऐसा होने से धन की कमी दूर होगी और संसाधनों की उपलब्धता बढ़ेगी. निजी क्षेत्र को बाजार की जरूरतों की जानकारी भी ज्यादा होती है. इससे अन्वेषण, उत्पाद विकास और तकनीक को लागू करने में तेजी आती है. तकनीक के लाभ भी लोगों तक जल्दी पहुंचते हैं. मानव संसाधन के मामले में भी चुनौतियां हैं.
देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है. भारत में शिक्षित-प्रशिक्षित लोग दुनियाभर के शोध केंद्रों तथा उन्नत तकनीक की कंपनियों में कार्यरत हैं. लेकिन भारत में जो प्रतिभा और कौशल है, वह इतने बड़े देश के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसी स्थिति में हमें विज्ञान के क्षेत्र, विशेष रूप से नये एवं उन्नत क्षेत्रों, में अधिक मानव संसाधन की आवश्यकता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम तकनीक, सेमीकंडक्टर आदि में हमारी प्रगति उल्लेखनीय है, पर वह अनेक देशों में हो रहे कार्यों के बराबर नहीं है. इन क्षेत्रों में स्टार्ट-अप के आने से नयी संभावनाएं पैदा हुई हैं. उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने क्वांटम मिशन की शुरुआत भी की है. यदि धन की उपलब्धता बढ़ी, तो निश्चित ही विज्ञान एवं तकनीक में तेजी आयेगी