विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि चीन के साथ भारत के संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि सीमा पर सैनिकों के जमावड़े को लेकर चीन का रवैया क्या होगा. उन्होंने यह भी कहा है कि चीन ने लिखित समझौतों का उल्लंघन किया है, जिसका परिणाम 2020 में हुई गलवान की हिंसक घटना के रूप में सामने आया. उस समय से चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बड़ी संख्या में सैनिकों एवं अत्याधुनिक हथियारों की तैनाती की है, जो उसकी आक्रामकता का उदाहरण है. दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच कई चरणों की वार्ता हो चुकी है, लेकिन चीन अपने सैनिकों को पीछे हटाने के लिए तैयार नहीं हो रहा है. इससे उसकी असली मंशा को लेकर शंका पैदा होना स्वाभाविक है. चीन की हरकतों को देखते हुए और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए भारत ने भी सैनिकों को तैनात किया है तथा टुकड़ियों की गश्त बढ़ा दी है. विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट कहा है कि सीमा सुरक्षा सरकार का मुख्य कर्तव्य है और इस मुद्दे पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है. चाहे जमीनी सीमा हो या समुद्री क्षेत्र, भारत सुरक्षा चुनौतियों को लेकर सतर्क है. कुछ समय पहले रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने भी रेखांकित किया था कि चीन हमारी प्रमुख रक्षा चुनौती है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मुस्तैदी के साथ-साथ हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी, अदन की खाड़ी, अरब सागर और लाल सागर में भारतीय नौसेना ने अभूतपूर्व तैनाती की है.
उल्लेखनीय है कि किसी भी समय हिंद महासागर में कई चीनी जहाज गश्त लगाते रहते हैं, जिनमें कुछ जासूसी जहाज भी हैं. भारत ने हमेशा कहा है कि कूटनीति और संवाद से आपसी तनाव का हल निकाला जा सकता है. इसी सोच के तहत हमारे सैन्य अधिकारी चीनी अधिकारियों से लगातार बातचीत कर रहे हैं. विदेश मंत्रियों की परस्पर भेंट भी होती रहती है. लेकिन चीन की ओर से, न तो सैन्य स्तर पर और न ही राजनीतिक स्तर पर, बीते चार वर्षों में कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिया गया है. संबंधों में सुधार की जगह चीन उन्हें और बिगाड़ने में लगा है. तभी तो वह कभी कश्मीर और लद्दाख को लेकर निरर्थक टिप्पणी करता है और कभी अरुणाचल प्रदेश को लेकर आपत्तिजनक बयान देता है. इतना ही नहीं, वह बीच-बीच में पाकिस्तान को भी उकसाने की कोशिश करता है. चीन दक्षिण एशिया में संतुलन एवं स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है. मध्य एशिया में भारत की बढ़ती सक्रियता को भी बाधित करने की उसकी चाहत है. चीन को यह समझना चाहिए कि भारत उसके दबाव में नहीं आयेगा तथा उसके रवैये से क्षेत्रीय शांति भी खतरे में पड़ सकती है. यह चीन के हित में भी नहीं है.