भारत समेत कुछ देश लंबे समय से यह मांग करते रहे हैं कि बदलती विश्व व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र की सबसे प्रमुख इकाई सुरक्षा परिषद का विस्तार हो. लेकिन पांच स्थायी सदस्यों की आपसी राजनीति और विशिष्टता का बोध सुधार की राह में अवरोध बना हुआ है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्थायी सदस्यों को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि सुरक्षा परिषद एक ‘पुराने क्लब’ की तरह है, जिसके सदस्य नये देशों को शामिल नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनका नियंत्रण कम हो जायेगा. उन्होंने यह भी कहा है कि स्थायी सदस्य नहीं चाहते कि उनके रवैये पर सवाल उठाया जाए. भारतीय विदेश मंत्री ने इसे असफलता बताते हुए रेखांकित किया है कि सुधारों के अभाव में संयुक्त राष्ट्र लगातार कम प्रभावी होता जा रहा है. रूस और यूक्रेन का युद्ध लगभग दो वर्षों से चल रहा है. इजरायल गाजा हमले को रोकने से बार बार इनकार कर रहा है. पश्चिम एशिया बड़े युद्ध के मुहाने पर है. इनके अलावा दुनिया में लगभग 40 जगहों पर हिंसक संघर्ष चल रहा है. इन मामलों में कई बैठकों के बाद भी सुरक्षा परिषद कोई ठोस कार्रवाई करने में असमर्थ रहा है. कोरोना महामारी के समय विकसित देशों ने बड़ी मात्रा में वैक्सीन की जमाखोरी की थी. उस संबंध में भी सुरक्षा परिषद कुछ नहीं कर सका था.
इसके कई उदाहरण हैं कि वीटो अधिकार वाले पांच सदस्य- अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन- अपने भू-राजनीतिक हितों के अनुरूप काम करते हैं. उल्लेखनीय है कि जी-20 शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वर्तमान की वास्तविकताओं को देखते हुए वैश्विक संस्थाओं की संरचना में परिवर्तन की आवश्यकता है. उन्होंने सुरक्षा परिषद का उदाहरण भी दिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने रेखांकित किया था कि जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी, तब इसके 51 सदस्य थे. आज संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या लगभग 200 है. इसके बावजूद स्थायी सदस्यों की संख्या पांच ही बनी हुई है. वर्ष 2017 में स्थायी सदस्यता के सबसे मजबूत पांच दावेदार देशों- भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान- ने एक साझा वक्तव्य दिया था कि वे संस्था के विस्तार की प्रक्रिया में नये सुझावों पर विचार के लिए तैयार हैं. हालांकि मौजूदा पांच स्थायी सदस्य भी विस्तार की जरूरत से सहमति जताते रहे हैं, पर उन्होंने इस दिशा में ठोस पहल करने में हिचक दिखायी है.