मौजूदा समय में अमेरिका सहित लगभग तमाम विकसित देशों के शेयर बाजार में बिकवाली का दौर जारी है. उतार-चढ़ाव के साथ-साथ वहां शेयर बाजार तेज गोते भी लगा रहा है. कोरोना महामारी, भू-राजनैतिक संकट, रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमत की वजह से विकसित देशों में शेयर बाजार की हालात खस्ता है. इतना ही नहीं, वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमजोरी देखी जा रही है और कुछ देशों में मंदी के आसार बने हुए हैं.
इसके ठीक उलट भारतीय शेयर बाजार में विगत कुछ महीनों से उछाल की स्थिति बनी हुई है. शेयर बाजार की सेहत का हाल बताने वाले 30 प्रतिनिधि शेयरों का संवेदी सूचकांक तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है. एक साल पहले जहां यह 55,000 के पास था, वहीं अब यह 67,000 के ऊपर जा चुका है. सेंसेक्स ने तीन जुलाई को 65,000, 14 जुलाई को 66,000 और 19 जुलाई को 67,000 का स्तर पार किया था. शेयर बाजार की विगत महीनों की प्रवृति को देखने से लगता है कि इस साल के अंत तक बीएसइ संवेदी सूचकांक 70,000 के स्तर को पार कर सकता है.
ऐसी ही कुछ हालत नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसइ) के 50 प्रतिनिधि शेयरों के सूचकांक निफ्टी-50 की है. पिछले साल जुलाई में यह 16,500 के आस-पास था और अब यह बढ़कर 20,000 के निकट पहुंच गया है. मौजूदा परिदृश्य में निफ्टी इस साल के अंत तक 21,000 के स्तर पर पहुंच सकता है. शेयर बाजार में लगातार उछाल की स्थिति बने रहने की वजह से पिछले 3 महीनों में निवेशकों की संपत्ति में 40 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है.
इस उछाल का कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) का निवेश है जो लगातार बढ़ रहा है. इसमें अमेरिका और यूरोप के निवेशकों की संख्या अधिक है. जून महीने में विदेशी निवेशकों ने भारत में 47 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था.
भारत की ओर रुख करते विदेशी निवेशकों की वजह से चीन की परेशानी बढ़ रही है. विदेशी निवेशक चीन के शेयर बाजार से लगातार पैसा निकाल रहे हैं. दरअसल, चीन के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी में गिरावट और निर्माण एवं विनिर्माण क्षेत्र की सुस्ती से निवेशकों का चीन की अर्थव्यवस्था में भरोसा कमजोर हुआ है. चीन में इस साल के पहले दो महीने में विदेशी निवेशकों ने अच्छा-खासा निवेश किया था, लेकिन बाद के महीनों में उन्होंने 34 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि की निकासी की.
फिलहाल विदेशी निवेशक चीन की जगह भारत में निवेश करना बेहतर मान रहे हैं. वर्ष 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार तीन ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर पांच ट्रिलियन डॉलर तक हो जाने की बात कही जा रही है. एचएसबीसी की हालिया रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के अगले पांच से 10 सालों में सात ट्रिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंचने का अनुमान व्यक्त किया गया है. कोरोना महामारी की वजह से सुस्त हो गयी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज सुधार का दौर जारी है. वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में में 7.2 प्रतिशत का सुधार दर्ज किया गया है.
शेयर बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझने के लिए इसके परिचालन को समझना जरूरी है. शेयर का अर्थ होता है हिस्सा. शेयर बाजार में सूचीबद्ध विभिन्न तरह की कंपनियों के शेयरों को शेयर ब्रोकर की मदद से खरीदा व बेचा जाता है. यानी, कंपनियों के हिस्सों की खरीद-बिक्री की जाती है. अब शेयरों के खरीद-फरोख्त का डिजिटलाइजेशन हो जाने के कारण शेयर ब्रोकरों की जरूरत नहीं होती है. कोई भी निवेशक खुद से स्मार्टफोन के जरिये शेयरों की खरीद-बिक्री कर सकता है.
शेयर बाजार में बांड, म्युचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे एवं बेचे जाते हैं. किसी कंपनी के कामकाज का मूल्यांकन ऑर्डर मिलने या नहीं मिलने, नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढ़ने या घटने, आयात या निर्यात होने या नहीं होने, कारखाने या फैक्ट्री में कामकाज ठप्प पड़ने, उत्पादन घटने या बढ़ने, तैयार माल का विपणन नहीं होने आदि जानकारियों के आधार पर किया जाता है. इसलिए, कंपनी पर पड़ने वाले सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव के आधार पर शेयरों की कीमत में रोज उतार-चढ़ाव आता है.
आमतौर पर ज्यादा प्रतिफल मिलने की आस में घरेलू एवं विदेशी निवेशक, शेयर के रूप में कंपनियों में निवेश करते हैं. लेकिन इसके लिए अर्थतंत्र की समझ होना या फिर कंपनियों की बैलेंस शीट या वित्तीय नतीजों का सही विश्लेषण कर पाने की समझ जरूरी है. साथ ही, आर्थिक, राजनीतिक कारणों का शेयर बाजार या कंपनियों पर क्या या कैसा प्रभाव पड़ेगा, इसकी भी समझ होना महत्वपूर्ण है.
ऐसी जानकारियों के बिना निवेश से नुकसान उठाना पड़ सकता है. शेयरों की कीमत में उतार-चढ़ाव से सिर्फ निवेशकों को नुकसान नहीं होता है. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली करने से विकास दर, रोजगार, आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)