Air Pollution in Delhi: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सांसों का आपातकाल है. दो करोड़ से भी अधिक की आबादी वाले महानगर में लोग पर्यावरण संकट, स्वास्थ्य संकट और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं- इन सारे संकटों का कारण जहरीली हवा है. ‘द स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर, 2024’ के मुताबिक, दुनिया भर में हर आठ में से एक मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही है. जब मैं यह लिख रही हूं, तब दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र डरावने स्मॉग में लिपटा हुआ है.
दिल्ली और उसके आसपास कक्षाओं में पढ़ाई बंद कर दी गई है. ऑनलाइन कक्षाएं महामारी के दौर की याद दिलाती हैं. अनेक लोग घर से काम कर रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों के घर से काम करने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकों को मास्क लगाने की सलाह दी है. निर्माण गतिविधियां रोक दी गई हैं और सड़कों से धूल हटाने का काम लगातार चल रहा है. पर लोगों को सरकारी दावे पर कम ही यकीन हो रहा कि पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं और प्रदूषण घटाने के दूसरे उपायों पर काम चल रहा है.
जाड़े के आगमन के साथ ही शुरू हो जाता है वायु प्रदूषण
पिछले अनेक वर्षों से जाड़े के आगमन के साथ ही वायु प्रदूषण भी आता है. हालांकि कुछ लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार स्थिति बहुत डरावनी है. दिल्ली के कई हिस्सों में 24 घंटों का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 491 पार कर गया है, जो अति गंभीर स्थिति है. मैं 1980 के उत्तरार्ध की दिल्ली को याद करती हूं. उसी समय मैं दिल्ली आई थी. तब दिल्ली में जाड़े का मतलब होता था, हमेशा गर्म कपड़े पहनना, लंबी सैर और गाजर का हलवा. दिल्ली और मुंबई की श्रेष्ठता की लड़ाई में दिल्ली अपनी सर्दी पर इतराती थी. लेकिन दिल्ली की सर्दी वैसी नहीं रह गयी है. अब सर्दी का हाथ पकड़कर जहरीली हवा आती है, तो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो जाता है. पक्षपाती राजनीति से प्रदूषण की समस्या हल नहीं होगी. फिर जहरीली हवा सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है. देश के अनेक शहर जहरीली हवा से जूझ रहे हैं.
वायु प्रदूषण में 40 फीसदी हिस्सेदारी वाहनों के उत्सर्जन की
वायु प्रदूषण केवल जाड़े में गंभीर समस्या नहीं बनता. दिल्ली में यह पूरे साल की समस्या है, जिसके कई कारण हैं. राजधानी के वायु प्रदूषण में 40 फीसदी हिस्सेदारी वाहनों के उत्सर्जन की है, जिसमें डीजल ईंधन वाले वाहनों की बड़ी भूमिका है. दिल्ली के आसपास, खासकर गाजियाबाद, नोएडा और फरीदाबाद में फैले उद्योग भी प्रदूषण के बड़ा कारण हैं. जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल और प्रदूषण नियंत्रण के ढीले तौर-तरीकों के कारण ये सल्फर डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं. शरद ऋतु में मानसून के थम जाने और हवा की गति धीमी हो जाने के बीच हरियाणा और पंजाब में धान की फसल के अवशिष्ट को, जिसे पराली कहते हैं, खेतों में जला देने से स्थिति और गंभीर हो जाती है.
राज्य सरकारों का दावा है कि उन्होंने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त कदम उठाये हैं, लेकिन उपग्रहों से ली गयी तस्वीरें कुछ और ही बताती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ शरद में या जाड़े में जागने और चेतावनी जारी करने से कुछ नहीं होने वाला. राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण की स्थिति पर पूरे साल नजर रखे जाने की जरूरत है. चीन के साथ भारत के रिश्ते अच्छे नहीं हैं, लेकिन प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में भारत चीन से सीख सकता है.
बीजिंग की हवा साफ हुई
लगभग एक दशक पहले वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली और बीजिंग एक दूसरे से होड़ करते थे. लेकिन आज बीजिंग की हवा साफ है. इस रूपांतरण का सबसे बड़ा कारण उसकी परिवहन नीति है, जिसकी दुनिया भर में तारीफ हुई है. उसने अपने यहां पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले कारों पर सख्ती से रोक लगायी है. इसकी जगह स्वच्छ ऊर्जा वाले सार्वजनिक वाहनों की व्यवस्था की गयी है. यही नहीं, बीजिंग-त्यानजिन-हेबेई क्षेत्र में प्रदूषण की स्थिति पर पूरे साल और पूरे समय नजर रखी जाती है. इन तीनों ही क्षेत्रों के प्रशासनिक अधिकारी सूचनाएं साझा करते हैं, और जरूरत पड़ने पर प्रदूषण के खिलाफ साझा कदम उठाते हैं. इससे सिर्फ बीजिंग नहीं, आसपास के व्यापक इलाके में प्रदूषण की समस्या खत्म हो गयी है.
जरूरी कदम उठाने होंगे
भारत में सार्वजनिक वाहन बढ़ाने होंगे और लोगों को पैदल चलने व साइकिल का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. ऐसा एकाएक नहीं होगा. इसके लिए सार्वजनिक बसों की संख्या बढ़ानी होगी, फुटपाथ बेहतर करने होंगे और सुरक्षा बढ़ानी होगी. स्वच्छ ऊर्जा, खुले में जलाने पर सख्त रोक, सभी उद्योगों के लिए उत्सर्जन की नीति का सख्ती से पालन, सड़क पर की धूल का प्रबंधन और हरियाली बढ़ाने पर जोर देना होगा. बीजिंग का उदाहरण बताता है कि कोई शहर प्रदूषण नियंत्रण का काम अकेले नहीं कर सकता. इसके लिए आसपास के शहरों का जुड़ाव और सहयोग जरूरी है. उपग्रहों से मिली तस्वीरों में सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों और हिमालय की तराई में आग और धुएं दिखते हैं, जिनमें हमारे पड़ोसी देशों की भी हिस्सेदारी है. जाहिर है, हवा की गुणवत्ता बनाए रखने में व्यापक स्तर पर तालमेल की आवश्यकता है. ध्रुवीकरण नहीं, सहयोग ही इसमें काम आयेगा. वायु प्रदूषण जानलेवा है. इस कारण पक्षपाती राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)