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पाकिस्तान में गंभीर आटा संकट

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान और श्रीलंका की वर्तमान स्थिति वित्तीय अनुशासन की अनदेखी के कारण हुई है. इसके लिए वहां की सरकारें और नेता जिम्मेदार हैं.

कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चल रहे पाकिस्तान के कई वीडियो अगर सही हैं, तो वे हृदय विदारक हैं. इनमें दिखाया गया है कि किस तरह राशन के आटे की थैली के लिए लोग परेशान हैं और आपस में झगड़ रहे हैं तथा जिन्हें थैली नहीं मिल पा रही है, वे जार-जार रो रहे हैं. पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार हामिद मीर ने प्रसिद्ध हास्य कलाकार दिवंगत उमर शरीफ का एक पुराना वीडियो शेयर किया है, जिसमें वे कह रहे हैं कि आटे की कीमत ऐसे ही बढ़ती रही, तो लोग आटे के जेवर बनवाने लगेंगे.

हामिद मीर का कहना है कि उमर शरीफ की बात आज जैसे सच साबित हो रही हो. हालांकि उमर शरीफ ने यह बात दिल्लगी में कही थी, लेकिन आज पाकिस्तान कमोबेश ऐसे ही आटा संकट से जूझ रहा है और पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है. पाकिस्तान में इन दिनों आटा 160 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रहा है. राजधानी इस्लामाबाद में 10 किलो आटे का बैग 1,500 रुपये में बिक रहा है. खैबर पख्तूनख्वा में स्थिति सबसे खराब है. वहां 10 किलोग्राम आटे का बैग 1,600 रुपये में बिक रहा है.

जैसे भारत के पूर्वी हिस्से में चावल भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, उसी तरह पाकिस्तान में गेहूं अहम है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों लोग राशन के आटे की थैली के लिए घंटों इंतजार करते हैं. आटे की लूटपाट को रोकने के लिए राशन वाहनों की सुरक्षा सशस्त्र बलों को सौंपी गयी है. इन वाहनों के आसपास धक्का-मुक्की और झगड़ा एक आम नजारा है. केवल आटा ही नहीं, पिछले कुछ अरसे में पाकिस्तान में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में लगभग 40 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है.

दरअसल, आटा संकट तो केवल एक आयाम है. बढ़ते कर्ज, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और राजनीतिक अस्थिरता की वजह से अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. चीन ने भी पाकिस्तान में अपना निवेश कम कर दिया है. पाकिस्तान खाड़ी के देशों और चीन से आर्थिक सहयोग की गुहार लगा रहा है. दूसरी ओर बिजली का भी संकट आ खड़ा हुआ है. बिजली बचाने के लिए सरकार ने बाजारों को रात 8.30 बजे तक बंद करने का आदेश दिया है. शादियों के लिए समय सीमा रात 10 बजे तक निर्धारित कर दी गयी है.

सरकारी कर्मचारियों को सही समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है. रिटायर कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान नहीं हो पा रहा है, क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं. पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. इन दिनों वहां की राजनीति में घात-प्रतिघात का दौर चल रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान शाहबाज शरीफ सरकार और सेना से टकराव की राह पर बढ़ते नजर आ रहे हैं. वे लगातार उत्तेजक भाषण दे रहे हैं और अपने को समर्थकों को सरकार और सेना के प्रति भड़का रहे हैं.

वहां सेना का इतना खौफ रहा है कि राजनेता सेना पर सवाल उठाने से डरते हैं, लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इमरान खान खुलेआम सेना को चुनौती दे रहे हैं. कुछ समय पहले उन पर जानलेवा हमला हुआ था. इस हमले को सेना की लगातार की जा रही आलोचना से जोड़कर देखा जा रहा है. हमारा एक अन्य पड़ोसी देश श्रीलंका भी आर्थिक संकट से जूझ रहा है.

वहां स्थिति ऐसी है कि एक कप चाय के लिए लोगों को 100 रुपये देने पड़ रहे हैं. ब्रेड और दूध जैसी जरूरी चीजों के दाम भी आसमान पर हैं. उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार, श्रीलंका में ब्रेड के एक पैकेट की कीमत 150 रुपये तक पहुंच गयी है और गैस सिलेंडर का दाम चार हजार रुपये पार कर गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों देशों की यह स्थिति वित्तीय अनुशासन की अनदेखी के कारण हुई है. इसके लिए वहां की सरकारें और नेता जिम्मेदार हैं.

भारत और पाकिस्तान को अलग हुए 75 साल हो गये. दोनों देशों को अस्तित्व में आये इतना लंबा अरसा गुजर गया, लेकिन दोनों के आपसी रिश्ते आज तक सामान्य नहीं हो पाये हैं. पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है, इसलिए न चाहते हुए भी वहां का घटनाक्रम हमें प्रभावित करता है.

हालांकि भारत में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं हैं, लेकिन पाकिस्तान और श्रीलंका के हालात को देखते हुए भारत को भी सतर्क रहने की जरूरत है. भारत में भी मुफ्त बांट कर वोट पाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है. चुनावों के दौरान यह खुल कर सामने आती है. हर हाल में चुनाव जीतने की चाहत ने मुफ्त बिजली-पानी, मुफ्त टीवी, मुफ्त स्कूटी, मुफ्त लैपटॉप, मुफ्त स्मार्टफोन जैसे चुनावी वादे चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल होते जा रहे हैं.

यह मर्ज पुराना है. इसकी शुरुआत 1967 में तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव से हुई थी. उस समय द्रमुक ने एक रुपये में डेढ़ किलो चावल देने का वादा किया था. तब देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था. इसके पहले हिंदी भाषी राज्यों में यह बीमारी नहीं थी, लेकिन अब यह लगभग सभी राज्यों में फैल चुकी है. मुफ्त की इन चीजों के कारण लोगों को जरूरी बुनियादी सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है. साथ ही, उनकी कीमत बढ़े हुए टैक्स के रूप में भी चुकानी पड़ती है.

लेकिन हमें रियायतों और मुफ्तखोरी के अंतर को भी समझना होगा. मुफ्त चावल या अनाज बांटने की घोषणाएं या मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं तो एकदम उचित हैं. यह एक कल्याणकारी कदम है और यह सरकारों का दायित्व भी है, पर मुफ्त टीवी या मुफ्त स्कूटी, लैपटॉप व स्मार्टफोन मुफ्तखोरी की श्रेणी में आते हैं. दरअसल, हमें भी अपने आर्थिक मॉडल पर विमर्श करने की जरूरत है. नयी अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी ने भारत को भी वैश्विक कर दिया है.

हम पश्चिम का मॉडल भी अपनाते जा रहे हैं, लेकिन उससे उत्पन्न आर्थिक व सामाजिक चुनौतियों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. यह संभव नहीं है कि आप विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दें और आपकी संस्कृति में कोई बदलाव न आए. भारत में संयुक्त परिवार की व्यवस्था खंडित हो गयी है. नयी व्यवस्था में परिवार एकल हो गये- पति पत्नी और बच्चे. यह पश्चिम का मॉडल है. बूढ़े मां बाप और 18 साल से अधिक उम्र के बच्चे परिवार का हिस्सा नहीं माने जाते हैं. भारत में भी अनेक संस्थान और विदेशी पूंजी निवेश वाली कंपनियां परिवार की इसी परिभाषा पर काम करने लगे हैं. सामाजिक व्यवस्था में आये इन बदलावों पर भी विमर्श की जरूरत है.

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