19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अर्थव्यवस्था पर जल संकट का साया

देश में औद्योगीकरण और शहरीकरण के विस्तार की बड़ी संभावना है. इस विस्तार के साथ-साथ पानी के लिए उद्योगों एवं लोगों में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी.

जलवायु परिवर्तन से जो देश सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, उनमें भारत भी है. एक ओर गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ती जा रही है तथा औसत तापमान में वृद्धि हो रही है, वहीं अनियमित बारिश की समस्या गंभीर हो रही है. देश के बड़े हिस्से में पानी की घटती उपलब्धता इस संकट को बढ़ाती जा रही है. यह परेशानी भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज द्वारा जारी पर्यावरण जोखिम की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि भारत में पानी की कमी तथा जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी से भारत की साख पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. जल संकट से खेती और औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं तथा खाद्य पदार्थों की महंगाई एवं आमदनी में कमी सामाजिक अस्थिरता का कारण भी बन सकती हैं. उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने भी यह रेखांकित किया है कि खाद्य मुद्रास्फीति चिंता की वजह बनी हुई है और ऐसे में ब्याज दरों में कटौती करना संभव नहीं है. मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया गया था. अधिक दर होने से उद्योगों के लिए कर्ज ले पाना एक चुनौती बन गया है. ऐसा नहीं होता, तो अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर और अधिक हो सकती थी.

विकास के साथ-साथ ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है. हालांकि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में उत्साहजनक तेजी आयी है, पर अभी भी हम बिजली के लिए कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों पर निर्भर हैं. इन संयंत्रों में पानी की बड़ी खपत होती है. जाहिर है कि पानी की समस्या ऐसे संयंत्रों को मुश्किल में डाल सकती है. ऐसा ही इस्पात उद्योग के साथ है. अन्य उद्योगों को भी पानी की दरकार होती है. मूडीज ने कहा है कि तेज आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण से पानी की उपलब्धता और घटती जायेगी. हमारे देश में 2021 में पानी की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक उपलब्धता 1,486 घन मीटर थी, जो 2031 में घटकर 1,367 घन मीटर रह जायेगी.

यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह औसत उपलब्धता है. कई हिस्सों में यह आंकड़ा बहुत कम है. अभी हमने देखा कि दिल्ली और बेंगलुरु में पीने का पानी मिलना मुहाल हो गया था. यह संकट अभी टला नहीं है. हाल में आयी डीसीएम श्रीराम-सत्व नॉलेज रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 तक देश के 50 प्रतिशत जिलों में पानी की गंभीर कमी हो जायेगी. कुछ समय पहले एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि सैकड़ों जिलों में पानी में आर्सेनिक तत्व हैं.

एक ओर बढ़ती गर्मी पानी की कमी की समस्या को गंभीर बना रही है, तो दूसरी ओर देश के अनेक इलाके बाढ़ से ग्रस्त होते हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली बहुत अधिक बारिश से जल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी नुकसान होता है. अगर बारिश की कुल मात्रा को देखा जाए, तो उसमें कमी आ रही है. साल 2023 में 1971 से 2020 तक के औसत से छह प्रतिशत कम बारिश हुई थी. हमारे देश में साल की 70 प्रतिशत से अधिक बारिश जून से सितंबर की अवधि में होती है. यदि इसमें कमी आती है, तो खेती पर भी असर पड़ता है और तापमान भी अधिक रहता है.

हाल के समय में गेहूं, धान आदि कुछ फसलों की पैदावार पर असर पड़ा है. इन कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगानी पड़ी है ताकि खाद्य मुद्रास्फीति अनियंत्रित न हो जाए. हमें ऐसी तकनीकों और फसलों को अपनाने पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे पानी की खपत घटायी जा सके. पानी की कमी, दूषित पानी और अधिक तापमान मौतों एवं बीमारियों की वजह बन रहे हैं. इससे कामगारों की क्षमता भी घटती है और आर्थिक नुकसान होता है. हमारे देश में अधिकतर रोजगार ऐसे हैं, जिनमें बाहर काम करना पड़ता है.

जैसा कि मूडीज ने कहा है, देश में औद्योगीकरण और शहरीकरण के विस्तार की बड़ी संभावना है. इस विस्तार के साथ-साथ पानी के लिए उद्योगों एवं लोगों में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी. इसका एक मतलब यह भी है कि पानी महंगा होता जायेगा. यदि जल प्रबंधन पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया, तो हमारे देश की बड़ी आबादी के लिए वह त्रासद स्थिति हो सकती है. जब जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण, जल संकट, भूमि क्षरण आदि के बारे में कुछ दशक पूर्व अनुमान लगाये जाते थे, ऐसा लगता था कि इन संकटों के आने में अभी समय है. पर ऐसा नहीं हुआ. ये सभी मुश्किलें ठीक हमारे सामने हैं. भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें पानी के प्रबंधन पर ध्यान दे रही हैं.

पेयजल उपलब्ध कराने के भी प्रयास हो रहे हैं. दिल्ली में कृत्रिम झीलें बनी हैं, जिनमें रिसाइकल पानी डाला जाता है. ऐसे प्रयासों से भूजल स्तर बढ़ा है. इस तरह के उपाय समूचे देश में होने चाहिए. तालाबों, जलाशयों और झीलों को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. शहरीकरण से सबसे अधिक नुकसान जलाशयों का ही हुआ है. इस संबंध में ठोस नियमन नहीं होने से रियल एस्टेट कारोबारी झीलों-तालाबों को पाटकर इमारतें बना देते हैं. इसे रोका जाना चाहिए.

जल प्रबंधन में निवेश बढ़ाना समझदारी की बात होगी क्योंकि ऐसा कभी न कभी करना ही होगा, इसलिए अभी से हमें अपने प्रयासों को तेज करना चाहिए ताकि समय रहते समस्या का समाधान हो सके और हम भारी नुकसान से बच सकें. खेती, भवन निर्माण, उद्योग आदि में भूजल का बेतहाशा दोहन हो रहा है. देश के कई जिलों में भूजल का स्तर बहुत नीचे चला गया है. जितना दोहन हो रहा है, उस मात्रा में रिचार्ज नहीं हो रहा है. ऐसे में बारिश के पानी को सहेजना बहुत जरूरी हो जाता है. यदि समुचित वर्षा जल संरक्षण हो तथा गंदे पानी को रिसाइकल किया जाए, तो संकट से बचाव संभव हो सकता है. जो बातें मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कही है, वे कई रिपोर्टों और अध्ययनों में कही जा चुकी हैं. असली मामला सुझावों पर अमल का है. हालांकि जल समस्या के समाधान के लिए सरकारी स्तर पर कोशिशें हो रही हैं, पर वे पर्याप्त नहीं हैं. बारिश के पानी को बचाने के लिए इमारतों में व्यवस्था करने के प्रावधान हैं, पर इस संबंध में निगरानी की कमी है. यह संरक्षण केवल बड़ी इमारतों के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए, बल्कि इसके लिए हर घर में उपाय होने चाहिए. अर्थव्यवस्था तो दूर की बात, पानी नहीं होने से हमारा अस्तित्व ही नहीं बचेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें