अमेरिका की बैंकिंग प्रणाली की मौजूदा मुश्किलों के भारतीय स्टार्टअप और बैंकों पर प्रभाव के बारे में आकलन करने की कोशिश हो रही है. सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) मुख्य तौर पर स्टार्टअप ग्राहकों से जमा लेने के अलावा स्टार्टअप कंपनियों, उद्यम, पूंजीपतियों और प्रौद्योगिकी कंपनियों को कर्ज मुहैया कराता था, जबकि सिग्नेचर बैंक जमा लेने के अलावा मुख्य तौर पर रियल एस्टेट क्षेत्र को ऋण देता था. सिग्नेचर बैंक के पास क्रिप्टो करेंसी के ज्यादा स्टॉक थे, जिसके जोखिम लगातार बढ़ रहे हैं. बैंक का जोखिम सीमा से अधिक न बढ़ जाए, इसलिए इसे बंद कर दिया गया. वर्ष 1983 में शुरू हुए एसवीबी से 2021 तक 50 प्रतिशत अमेरिकी उद्यम-समर्थित स्टार्टअप जुड़े हुए थे. इसने वीओएक्स मीडिया जैसी मीडिया कंपनियों को भी सेवा मुहैया करायी थी. कई क्रिप्टोकरेंसी कंपनियों की रकम भी इस बैंक में जमा थीं. इस बैंक के डूबने के प्रमुख कारकों में टेक कंपनियों के शेयरों की कीमत में भारी कमी आना, महंगाई के बढ़ने के कारण फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में भारी इजाफा करना आदि है.
एसवीबी के बड़े टेक कारोबारी ग्राहकों के शेयरों की कीमत में जब गिरावट आयी, तो इन्हें कारोबार करने के लिए ज्यादा नकदी की जरूरत आन पड़ी, जिसे पूरा करने के लिए ये अपने बैंक जमा से निकासी करने लगे. इसके अलावा, लाभ नहीं अर्जित करने वाली कंपनियों को दूसरी जगह से उधारी मिलनी बंद हो गयी. इस कारण वे अपने कारोबार को चलाने के लिए अपनी जमा-पूंजी निकालने लगे. एसवीबी से जब अधिक निकासी की जाने लगी, तो बैंक को ग्राहकों की जरूरत पूरी करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों को बेचना पड़ा. पर जमाकर्ताओं की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही थी. एसवीबी ने बड़ी मात्रा में बॉन्ड जैसे सुरक्षित विकल्पों में सस्ती दर में निवेश किया था, लेकिन उसे अचानक उन्हें घाटे में बेचना पड़ा. वर्ष 2008 की मंदी के बाद अमेरिका में ब्याज दरें काफी नीचे आ गयी थीं. बैंक ने उस समय लंबी अवधि के लिए ऋण सस्ती दर पर दी थी, लेकिन अब अधिक ब्याज दर के दौर में बैंक को मंहगी दर पर पूंजी लाना पड़ रहा था, जिससे बैंक का मुनाफा सिकुड़ने लगा. एसवीबी ने आठ मार्च को तरलता सुनिश्चित करने के लिए 1.8 अरब डॉलर के नुकसान पर 21 अरब डॉलर की प्रतिभूतियां बेचीं और 2.2 अरब डॉलर मूल्य के शेयर बेचने की भी योजना बना रहा था.
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर यह आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि अमेरिका के दोनों बैंकों के दिवालिया होने से भारत के स्टार्टअप या बैंकों पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है? वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार देश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 2016 में 452 थी, जो 2022 में 84,012 हो गयी. इससे देश में 8,40,000 से अधिक रोजगार सृजित हुए हैं. भारत में कितने स्टार्टअप ने एसवीबी से कर्ज लिया है, इसके ठीक-ठीक आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन माना जा रहा है कि भारत के लगभग 1,000 स्टार्टअप के पैसे एसवीबी में जमा हो सकते हैं, क्योंकि कई स्टार्टअप का कारोबार अमेरिका में है. एक अनुमान के अनुसार, सिलिकॉन वैली में हर तीसरे स्टार्टअप के संस्थापक भारतीय-अमेरिकी हैं.
दोनों अमेरिकी बैंकों के दिवालिया होने के बाद फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कार्पोरेशन (एफडीआइसी) को उनका रिसीवर नियुक्त किया गया है, ताकि जमाकर्ताओं के मन में डर पैदा न हो और वे अपने पैसों की निकासी कर सकें. एफडीआइसी ने 2,50,000 डॉलर की जमा का ही बीमा किया है. इसलिए इस राशि तक या इससे कम जमा करने वाले ग्राहकों को पैसा वापस मिल जायेगा. चूंकि दोनों बैंकों के ग्राहक बड़े कारोबारी हैं, इसलिए कई ग्राहकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. समय पर पैसे नहीं मिलने पर स्टार्टअप कंपनियों को अपने कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है. एक अनुमान के अनुसार, दोनों अमेरिकी बैंक के डूबने से एक लाख से अधिक लोगों की नौकरी जा सकती है.
इसमें दो राय नहीं है कि एसवीबी ने भारतीय स्टार्टअप को कर्ज दिया है और भारतीय स्टार्टअप ने वहां पैसे भी जमा किये हैं. फिर भी, यह मानना मुनासिब होगा कि भारत के वैसे स्टार्टअप, जिनका कारोबार अमेरिका में है, पर एसवीबी के डूबने का आंशिक असर पड़ सकता है, क्योंकि बैंक के अधिकतर ग्राहक स्टार्टअप हैं. इस प्रकरण का कोई प्रतिकूल प्रभाव भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारतीय बैंकों का कारोबार एसवीबी या सिग्नेचर बैंक के साथ नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव कुछ देशों पर जरूर पड़ेगा. एसवीबी और सिग्नेचर बैंक के डूबने से यह भी साफ हो जाता है कि इनका प्रबंधन सही तरह से अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन नहीं कर रहा था. उन्होंने यह ध्यान नहीं दिया कि जमाकर्ता और कर्जदार मोटे तौर पर एक ही उद्योग तक सीमित हैं, जो बैंकिंग के मूल सिद्धांत के उलट है. बैंक कभी भी न तो एक सेक्टर से जमा लेता है और न ही कर्ज देता है. यह अमेरिका के नियामक फेडरल रिजर्व बैंक की भी विफलता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)