16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

डेयरी उद्योग का संकट बढ़ाएगा स्किम्ड मिल्क पाउडर

देश में जो एसएमपी स्टॉक है, उसके निर्यात की संभावना न के बराबर है. दूसरी ओर इसका उत्पादन लगातार बढ़ता ही जायेगा.

महाराष्ट्र के दूध किसानों को गाय के दूध के लिए 25 से 26 रुपये लीटर की कीमत मिल रही है. यह पिछले साल 38 रुपये प्रति लीटर तक थी. राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए राज्य सरकार ने 28 जून को पांच रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी घोषित की है. ऐसी नौबत क्यों आयी? करीब माह भर पहले ही देश के सबसे बड़े दूध ब्रांड अमूल, मदर डेयरी और नंदिनी ने दूध की खुदरा कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी. इसके विपरीत दक्षिण भारत के बड़े ब्रांड आरोक्या, डोलडा और कुछ अन्य कंपनियों ने कीमतों में कमी की है क्योंकि किसानों से मिल रहे कम कीमत के फायदे को ये कंपनियां उपभोक्ताओं के साथ बांट रही हैं. पूरा मामला पेचीदा है.

इसमें दो बातें सच हैं. एक, किसानों को दूध की कीमत कम मिल रही है और डेयरी कंपनियों की मुश्किलें भी बढ़ी हैं. दो, पूरे मसले की जड़ में है स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) की कीमतों में भारी गिरावट, जो मार्च 2023 की 350 रुपये प्रति किलो से घटकर अब 210 रुपये प्रति किलो पर आ गयी हैं. इसलिए इस संकट को एसएमपी के बिजनेस डायनामिक्स से समझने की जरूरत है. यह भी सच है कि अगर कोई हल नहीं निकला, तो किसानों और डेयरी उद्योग के लिए यह संकट आने वाले दिनों में बढ़ेगा. कंपनियों द्वारा कीमतों के पीछे भी एसएमपी के घाटे की भरपाई बड़ी वजह है.

देश में अभी करीब तीन लाख टन एसएमपी का स्टॉक है, जो सहकारी संस्थाओं अमूल, नंदिनी और निजी डेयरी कंपनियों के पास है. इसकी उत्पादन लागत करीब 300 से 350 रुपये प्रति किलो है. ऐसे में कंपनियों को मौजूदा कीमत पर इसे बेचने पर करीब 700 करोड़ रुपये का घाटा झेलना पड़ेगा. देश में सालाना करीब पांच लाख टन एसएमपी का उत्पादन होता है. एसएमपी की मुश्किल गाय के दूध की वजह से अधिक है और दूध उत्पादन में गाय के दूध की हिस्सेदारी बढ़ रही है. भारत में एनिमल फैट की खपत लगातार बढ़ रही है. इसलिए इसका उत्पादन भी बढ़ा है. दूध से जब फैट का उत्पादन करते हैं, तो एसएमपी का भी उत्पादन होता है. सौ लीटर गाय के दूध से बने फैट और एसएमपी की बिक्री से 3,371 रुपये यानी 33.71 रुपये प्रति लीटर की कमाई डेयरी कंपनियों को रही है. एसएमपी और फैट उत्पादन के लिए प्रसंस्करण, पैकेजिंग और डेयरी के दूसरे खर्च करीब 3.5 रुपये लीटर बैठते हैं. दूध के कलेक्शन, कमीशन और ट्रांसपोर्ट पर भी करीब 3.5 रुपये लीटर का खर्च आता है. इस पूरी गणना के आधार पर बिना किसी मुनाफे या घाटे पर डेयरी कंपनियां किसानों को करीब 26.71 रुपये लीटर का भुगतान कर सकती हैं और महाराष्ट्र की निजी डेयरी कंपनियां किसानों को यही कीमत दे रही हैं.

फरवरी-मार्च 2023 में जब दूध की किल्लत थी, तो महाराष्ट्र की डेयरी कंपनियां येलो बटर से 430 से 435 रुपये किलो की कमाई कर रही थीं. उन्हें एसएमपी की कीमत 315 से 320 रुपये प्रति किलो मिल रही थी. इसी वजह से पिछले साल कंपनियां किसानों को 36 से 38 रुपये लीटर की दर से दूध का भुगतान कर रही थीं. एसएमपी की वैश्विक कीमत 2,766 डॉलर प्रति टन चल रही है और रुपये की मौजूदा विनिमय दर पर करीब 231 रुपये किलो बैठती है. घरेलू कीमत 210 रुपये प्रति किलो है. ऐसे में देश में जो एसएमपी स्टॉक है, उसके निर्यात की संभावना न के बराबर है. दूसरी ओर इसका उत्पादन लगातार बढ़ता ही जायेगा.

भैंस के दूध के मामले में यह समस्या कम है क्योंकि भैंस के दूध में सात फीसदी फैट और नौ फीसदी एसएनएफ होता है. इसलिए गाय के दूध से उतनी मात्रा में फैट का उत्पादन करने पर करीब दोगुना एसएमपी उत्पादन होता है. एसएमपी की खपत के विकल्प भी सीमित हैं. बिस्किट, कन्फेक्शनरी, आइसक्रीम और कुछ दूसरे उत्पादों में ही इसकी खपत होती है. उपभोक्ताओं में इसकी सीधी खपत बहुत अधिक नहीं है. भारत के बाहर एनिमल फैट की बहुत ज्यादा खपत नहीं है. ऐसे में वहां की डेयरी कंपनियों की स्थिति भारतीय कंपनियों से अलग है.

डेयरी उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इसका हल खुद निकालना होगा. बेहतर होगा कि सरकार एसएमपी का बफर स्टॉक बनाये, या पड़ोसी देशों को सस्ते में या मुफ्त में निर्यात कर दे. कुछ कंपनियों ने तकनीक विकसित कर एसएमपी से प्रोटीन अलग कर उत्पाद बनाने शुरू किये हैं, लेकिन यह काम बड़े पैमाने पर सरकार को करना होगा. उस प्रोटीन को फोर्टिफिकेशन या दूसरे विकल्पों में उपयोग किया जा सकता है. फिर भी, सच यह है कि एसएमपी का संकट बढ़ता जायेगा और इसका खामियाजा दूध किसानों को कम कीमत के रूप में भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि दूध उत्पादन बढ़ रहा है और इसमें गाय के दूध की हिस्सेदारी भी बढ़ रही है. दिलचस्प यह है कि तरल दूध बेचने वाले कारोबार में यह संकट नहीं है. यही वजह है कि किसानों से सस्ता दूध खरीदने वाली दक्षिण की कंपनियों ने उपभोक्ताओं के लिए दूध के दाम घटाये हैं, जबकि एसएमपी का घाटा पूरा करने के लिए उत्तर भारत में कंपनियों ने दाम बढ़ाये हैं. इस संकट पर ध्यान देने की जरूरत है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें