दिवंगत जयललिता की पार्टी एआइएडीएमके (अन्ना द्रमुक) में बिखराव स्पष्ट रूप से सामने है. पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी पलानीस्वामी ने ‘अम्मा’ की विरासत पर कब्जा कर लिया है. इस पार्टी के दो करोड़ काडर हैं और इसमें कोई परिवारवाद और वंशवाद नहीं है. ऐसे में सवाल है कि आखिर बिखराव क्यों हुआ. इसका उत्तर सरल है: दो जातियों- थेवर और गाउंडर- के बीच जारी लड़ाई. पलानीस्वामी गाउंडर जाति से आते हैं.
अन्ना द्रमुक के दूसरे प्रमुख नेता ओ पनीरसेल्वम हैं, जो थेवर जाति से हैं. तमिलों के लिए यह आंतरिक लड़ाई नयी बात नहीं है. लेकिन जयललिता के विराट व्यक्तित्व के कारण पलानीस्वामी व पनीरसेल्वम पार्टी के भीतर ही झगड़ते थे, जैसे कभी मध्य प्रदेश में कांग्रेस में सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच तनातनी चलती थी.
जयललिता और करुणानिधि जैसे बड़े नेताओं के जाने के बाद से तमिलनाडु की राजनीति बड़े बदलावों से गुजर रही है. यदि किसी को इस राज्य की राजनीति को समझना है, तो उसे वहां की प्रभावशाली जातियों के बारे में जानना चाहिए. छह बड़ी जातियों में से थेवर समुदाय को अन्ना द्रमुक का करीबी माना जाता है. अन्ना द्रमुक के कमजोर होने से द्रमुक को अल्पकालिक लाभ मिल सकता है, पर द्रमुक को भी यह चिंता करनी चाहिए कि अन्ना द्रमुक द्वारा खाली की गयी विपक्ष की जगह पर कौन सी राजनीतिक शक्ति काबिज होगी.
हाल तक पार्टी को पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम संयुक्त रूप से चला रहे थे, जो भारतीय राजनीति में एक अनूठा प्रयोग था, पर अब पलानीस्वामी ने अन्ना द्रमुक का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है और पनीरसेल्वम को निष्कासित कर दिया है. इन दोनों नेताओं ने वीके शशिकला को बाहर रखने के लिए हाथ मिलाया था, जो उस समय जेल में थीं. साल 2016 में जयललिता की मौत के बाद शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली थी, पर फरवरी, 2017 में उन्हें चार साल की जेल हो गयी.
पर अगर इतिहास के आधार पर देखा जाए, पार्टी के नेतृत्व की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. भले ही पार्टी कमिटियों ने एक फैसला ले लिया है, लेकिन पनीरसेल्वम अपनी ताकत का परीक्षण काडरों के बीच कर सकते हैं. पार्टी के भीतर के त्रिकोणीय संघर्ष में पलानीस्वामी ने खेल कर दिया है. इस पार्टी के भीतर होनेवाली हलचलों जैसे उदाहरण भारतीय राजनीति में बहुत ही कम हैं. ये दोनों नेता एक समय शशिकला की पसंद रह चुके हैं.
जब जयललिता मरणासन्न थीं, तो पनीरसेल्वम उनके चयनित उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद थे, क्योंकि दो अवसरों पर जयललिता उन्हें कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बना चुकी थीं. शशिकला को बाहर करने के बाद पलानीस्वामी ने सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत की और उनके समर्थकों को अपने पाले में लाकर पनीरसेल्वम को हाशिये पर धकेल दिया.
जयललिता की मृत्यु के बाद सुपरस्टार रजनीकांत उस जगह को लेना चाहते थे, पर उन्हें द्रमुक ने धमका कर राजनीति में आने से रोक दिया. इस प्रकरण के राजनीतिक कारणों का पता कई स्थानीय नेताओं को है.
एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद जब अन्ना द्रमुक में टूट हुई थी, तब अधिकतर वरिष्ठ नेता उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन के साथ थे, लेकिन अंतत: जयललिता की जीत हुई. परंतु पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी के पास जयललिता जैसा करिश्मा नहीं है तथा काडर इस बात से बेचैन हो सकते हैं कि कई दशकों के बाद पार्टी के पास कोई बेहद लोकप्रिय नेता नहीं है.
ऐसी स्थिति में नया जातिगत या क्षेत्रीय विभाजन उभर सकता है. पनीरसेल्वम और शशिकला (दोनों थेवर हैं) एक साथ आकर अन्ना द्रमुक के सामाजिक आधार में सेंध लगा सकते हैं. पिछले साल हार के बावजूद पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का एक कारण अच्छे प्रशासक के रूप में पलानीस्वामी की छवि को माना जा सकता है. जयललिता मजबूती से सत्ता में वापसी करती थीं और पार्टी को ऐसी ही उम्मीद अपने नये मुखिया से होगी.
अन्ना द्रमुक की फूट द्रमुक के लिए खतरा हो सकती है. जिस प्रकार महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने गठबंधन पर अपने बेटे आदित्य ठाकरे को थोपा था, उसी तरह द्रमुक नेता एमके स्टालिन अपने बेटे उदयनिधि को आगे बढ़ा सकते हैं, जो अभी विधायक और द्रमुक की युवा इकाई के सचिव हैं. अगले साल के शुरू में उन्हें तमिलनाडु का उप मुख्यमंत्री बनाया जायेगा. तब असली राजनीति शुरू होगी. पार्टी में जरूर एकनाथ शिंदे प्रकरण दोहराया जायेगा.
अन्ना द्रमुक के विभाजन पर भाजपा का संभावित रुख स्पष्ट है. साल 2019 और 2021 के चुनाव में अमित शाह का सूत्र था कि सभी गुट एकजुट होकर जयललिता की विरासत को आगे ले चलें. या फिर सभी तीन धड़े एनडीए के बैनर तले सहयोगी बनें. भाजपा के स्थानीय नेता के अन्नामलाई पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं.
गुटों में बंटी भाजपा में अब अकेले लड़ने का दम है. पार्टी के पास राज्य में सात प्रतिशत वोट हैं. मोदी करिश्मा इसे 10 प्रतिशत पर ले जा सकता है ताकि अन्ना द्रमुक और कांग्रेस के राष्ट्रवादी समूह भाजपा में शामिल हो सकें. चाहे जो हो, पलानीस्वामी बड़े नेता के रूप में उभरेंगे और द्रमुक नेता एमके स्टालिन को कड़ी चुनौती देंगे. पर पार्टी से बाहर किया गया पनीरसेल्वम खेमा भी चुप नहीं बैठेगा.