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सख्ती से हो लॉकडाउन का पालन

आज पूरी दुनिया बड़ी महामारी के दौर से गुजर रही है. वर्ष 1918 के स्पेनिश फ्लू के एक सदी के बाद विश्व एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा जैसे विकसित देशों के लोग भी लगभग असहाय स्थिति में दिख दे रहे हैं.

डॉ अश्विनी महाजनएसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विवि

ashwanimahajan@rediiffmail.com

आज पूरी दुनिया बड़ी महामारी के दौर से गुजर रही है. वर्ष 1918 के स्पेनिश फ्लू के एक सदी के बाद विश्व एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा जैसे विकसित देशों के लोग भी लगभग असहाय स्थिति में दिख दे रहे हैं. अब तक 14.35 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और दुनियाभर में 82 हजार से अधिक मौतें हुई हैं. यह रोग इतनी तेजी से फैलता है, जैसा शायद पहले कभी नहीं देखा गया. जहां भी इस रोग के संक्रमण को रोकने का प्रभावी प्रयास नहीं हुआ, वहां इसका फैलाव तेजी से हो रहा है. चीन में यह संक्रमण सबसे पहले देखा गया, इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कई अन्य लोगों ने इसे ‘चीनी वायरस’ का नाम दे दिया.

डॉ अश्विनी महाजन, एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विवि

ashwanimahajan@rediiffmail.com

आज पूरी दुनिया बड़ी महामारी के दौर से गुजर रही है. वर्ष 1918 के स्पेनिश फ्लू के एक सदी के बाद विश्व एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा जैसे विकसित देशों के लोग भी लगभग असहाय स्थिति में दिख दे रहे हैं. अब तक 14.35 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और दुनियाभर में 82 हजार से अधिक मौतें हुई हैं. यह रोग इतनी तेजी से फैलता है, जैसा शायद पहले कभी नहीं देखा गया. जहां भी इस रोग के संक्रमण को रोकने का प्रभावी प्रयास नहीं हुआ, वहां इसका फैलाव तेजी से हो रहा है. चीन में यह संक्रमण सबसे पहले देखा गया, इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कई अन्य लोगों ने इसे ‘चीनी वायरस’ का नाम दे दिया. चीन के वुहान शहर में सबसे पहले दिखे इस संक्रमण ने वहां लगभग 82 हजार लोगों को अपनी चपेट में ले लिया, हालांकि चीन ने पूरे हुबेई प्रांत में तालाबंदी करते हुए इस वायरस पर लगभग विजय पा ली है, लेकिन उसके बाद बड़े-बड़े देश इस वायरस की चपेट में बुरी तरह फंस चुके हैं. अनेक देशों में मरनेवालों की संख्या हजारों में है. कुल मिला कर संक्रमित लोगों की संख्या विश्व में तेजी से बढ़ती जा रही है.विश्व स्वास्थ्य संगठन से यह स्वाभाविक अपेक्षा थी कि वह विश्व को इस महामारी से बचाने के लिए अग्रणी भूमिका निभायेगा, पर वह मात्र एक ‘टॉकिंग शॉप’ बनकर रह गया है. इससे बेहतर तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं, जिन्होंने पहले दक्षिण एशियाई क्षेत्र के शासनाध्यक्षों के साथ मिल कर और बाद में जी-20 देशों के शासनाध्यक्षों के साथ बात करते हुए साझी लड़ाई की रणनीति बनाने का प्रयास तो किया. जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन के पाप को छुपाते हुए दुनिया को गुमराह करता रहा, वहीं भारतीय नेतृत्व ने देश में प्रभावी लॉकडाउन करते हुए इस चीनी वायरस के प्रकोप को कम करने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है.

जहां दुनियाभर की सरकारें इस महामारी से जूझने का प्रयास कर रही हैं, कुछ सांख्यिकी विशेषज्ञ, जो मेडिकल विशेषज्ञ नहीं हैं, कुछ ऐसे आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे दुनिया में डर का एक माहौल पैदा हो रहा है. एक 14 सदस्यों वाले अध्ययन दल के अनुसार, मई के मध्य तक भारत में 97,000 से 13 लाख तक संक्रमित मामले हो सकते हैं. ये आंकड़े संक्रमण की दर के वैश्विक अनुमानों के आधार पर परिकलित किये गये हैं. हालांकि, वैश्विक अनुभवों के आधार पर ये आंकड़े सैद्धांतिक रूप से सही हो सकते हैं, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर भारत के संदर्भ में ये सही नहीं हैं. जब ये आंकड़े प्रकाशित हुए थे, तब तक भारत में लॉकडाउन का निर्णय नहीं लिया गया था. चीन समेत अधिकतर देशों में संक्रमण तीसरे स्टेज तक फैलने के बाद ही लॉकडाउन का निर्णय लिया गया. भारत में सौभाग्य से यह निर्णय दूसरे स्टेज पर ही ले लिया गया. जब यह निर्णय लिया गया, तब तक भारत में संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 500 थी. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के आकलन के अनुसार, एक-दूसरे से भौतिक दूरी बनाकर इस संक्रमण को 62 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.

यही कारण है कि पूर्व में संक्रमित लोगों के परिवार और निकट के लोगों को छोड़कर आम समाज में यह संक्रमण नहीं हुआ. स्वाभाविक ही सांख्यिकी विशेषज्ञों के इस मॉडल को भारत पर लागू नहीं किया जा सकता.आज दुनिया में कुल संक्रमित लोगों की संख्या के मुकाबले मृत्यु का आंकड़ा बहुत कम है. ज्यादातर मामलों में मामूली संक्रमण है और गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम ही है. मानव शरीर की विशेषता है कि उसमें रोग से लड़ने की क्षमता होती है या रोग होने पर यह प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद सांख्यिकी विशेषज्ञों के मॉडल को चुनौती देते हुए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तुत मॉडल में कहा गया है कि वास्तव में महामारी अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी है. इस मॉडल के अनुसार यह संक्रमण ब्रिटेन की आधी जनसंख्या तक पहुंच चुका है, लेकिन अधिकांश लोगों में इसका कोई लक्षण नहीं है अथवा थोड़े लक्षण हैं. इसलिए, इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

हालांकि, अध्ययन लॉकडाउन का समर्थन भी करता है, ताकि जो भी थोड़ा बहुत संक्रमण बचा हो, वह भी पूरी तरह से नष्ट हो जाये. ऑक्सफोर्ड का अध्ययन ब्रिटेन के लिए है, लेकिन यह भारत पर और अधिक लागू होता है.चीन, अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी समेत कई देशों में इस बीमारी के भीषण प्रकोप के चलते वहां की अति विकसित स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी चरमरा गयी हैं. भारी संख्या में मौतों को देख विश्व घबराया हुआ है. ऐसे में भारत जैसे कम संसाधन संपन्न देश, जहां विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या रहती है, यह महामारी कितनी तबाही मचा सकती है, इसकी कल्पना भी भयावह है. पूरे देश को लॉक करने का एक कठिन निर्णय देश ने लिया है. लॉकडाउन सफल दिखायी दे रहा है, लेकिन प्रवासी मजदूरों का अपने गांवों में पलायन के कारण लॉकडाउन की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगना शुरू हो गया था.

इस समस्या से निजात मिली थी कि तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में विदेशियों के साथ देश के कोने-कोने से आये लोगों के जमावड़े और उसके बाद देशभर में उनके वापस जाने की खबर से पूरे देश चिंतित हो उठा. केंद्र और राज्य सरकारें, पुलिस-प्रशासन, स्वयंसेवी संगठन एवं संस्थाएं समस्या के समाधान और लॉकडाउन को सफल करने में जुटी हुई हैं. इन प्रयासों से भारत इस महामारी के प्रकोप को रोकने की मुहिम में अभी तक सफल दिख रहा है. भारत में संक्रमितों की संख्या अब भी नियंत्रण में है. तब्लीगी जमात कार्यक्रम के बावजूद उसकी वृद्धि दर लगभग 17 प्रतिशत प्रतिदिन की है. यह वृद्धि पहले से संक्रमित लोगों के संबंधियों और निकट के लोगों तक ही सीमित दिखायी देती है. ऐसे में आनेवाले हफ्तों में जिम्मेवारी से और सावधानी बरतते हुए हमें भौतिक रूप से लोगों के बीच दूरी बनाये रखना है. साथ ही सख्ती के साथ लॉकडाउन का पालन करना है. भारत का यह प्रयास दुनिया के लिए पथ प्रदर्शक सिद्ध हो सकता है.

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