भारतीय ज्ञान प्रणाली, यानी इंडियन नॉलेज सिस्टम को एक विषय के रूप में कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में शामिल किया गया है. इस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी जोर दिया गया है. इसी क्रम में भारतीय व्यापार प्रणाली (इंडियन बिजनेस सिस्टम) को भी अकादमिक जगत में महत्व देने की आवश्यकता है. विशेषकर प्रबंधन संस्थानों तथा सामाजिक विज्ञान संस्थानों में इस विषय पर अध्ययन, शोध तथा अध्यापन करने की आवश्यकता है.
भूमंडलीकरण के दौर में भारत ने एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के साथ-साथ राजनीतिक तथा कूटनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण देश के रूप में अपनी पहचान बनायी है. आज दुनियाभर में भारत के सांस्कृतिक परिवेश तथा प्राचीन समय से प्रचलित उसकी व्यापारिक प्रणाली को समझने के लिए कौतुहल है, लोग उसे जानने को उत्सुक हैं. भारतीय व्यापार प्रणाली का संबंध देश में प्रचलित औपचारिक तथा अनौपचारिक व्यापारिक पद्धतियों से है.
दुनिया में लगभग सभी देशों की व्यापार प्रणाली में विविधता पायी जाती है और इसका प्रमुख कारण संबंधित देश का राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिदृश्य होता है. उदाहरण के तौर पर यदि देखें, तो अमेरिकी व्यापार प्रणाली में उद्यमशीलता पर अत्यंत बल दिया जाता है. जबकि दूसरी तरफ अन्य एशियाई देशों में, जैसे जापान तथा चीन की बात करें, तो वहां सामूहिक व्यापार अथवा समूह कंपनियों का प्रभाव देखा जा सकता है.
अमेरिका में घरेलू बचत दर सबसे कम होती है, जबकि चीन में सबसे अधिक. इसी प्रकार, अमेरिका में नौकरी में स्थायित्व कम होता है, जबकि जापान में सबसे अधिक होता है. ठीक इसी तरह अमेरिका, जापान तथा यूरोप की पूंजीवादी संरचना में भी अंतर पाया जाता है. किसी भी देश के औद्योगिक संबंध, शिक्षा पद्धति और निगम शासन व्यवस्था आदि का प्रभाव भी उस देश की व्यापार प्रणाली पर पड़ता है.
अलग-अलग देशों में पायी जाने वाली इस विविधता के कारण व्यापार प्रणाली भी प्रभावित होती है. भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता तथा विरासत के लिए जाना जाता है. हमारे देश की व्यापार प्रणाली की कई विशेषताएं हैं. उदाहरण के तौर पर, भारत में विभिन्न राज्यों में लेखा पद्धति तथा वित्तीय नववर्ष में अंतर पाया जाता है, जिसका संबंध भौगोलिक परिस्थितियों से भी होता है. इसके अतिरिक्त, अपने देश में प्राचीन समय से चली आ रही जाति व्यवस्था का भी आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव पाया जाता है.
विभिन्न जातियां विशिष्ट व्यवस्था से संबंधित रहती हैं और इन सबका व्यापारिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि सामुदायिक उन्मुखता तथा उद्यमशीलता कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से पायी जाती है. सतत विकास एवं सामाजिक जिम्मेदारी की अवधारणा भारतीय व्यापार में प्राचीन समय से पायी जाती रही है. ऐसे में, भारतीय व्यापार प्रणाली के अध्ययन से इनको दुनियाभर में विभिन्न स्वरूपों में प्रयोग किया जा सकता है.
बहुमूल्य धातुओं, जैसे सोने में निवेश का अत्यधिक चलन, विदेशों में कार्यरत भारतीयों द्वारा अपने परिजनों को लगातार भेजा जाने वाला धन, सतत विकास की अवधारणा, दान, सामाजिक जिम्मेदारी आदि भारतीय व्यापार प्रणाली की विशेषताएं हैं.
भारतीय व्यापार प्रणाली में प्राचीन भारतीय राजवंशों, मुगल शासन तथा अंग्रेजी व्यवस्था के प्रभाव की भी झलक मिलती है. इसके साथ ही, भारतीय व्यापार प्रणाली की एक विशेषता यह भी है कि इस पर समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और वैश्वीकरण दोनों का प्रभाव पाया जाता है. भारत की संस्कृति, विविधता, धर्म और परंपरा की झलक यहां की व्यापार प्रणाली में स्पष्ट महसूस की जा सकती है. यहां व्यक्तिगत संबंध, समूह तथा पदानुक्रम पर भी जोर दिया जाता है.
जहां तक भारतीय व्यापार प्रणाली के अध्ययन तथा उस पर शोध करने की बात है, तो इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं. भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और यह वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. ऐसे में भारतीय व्यापार प्रणाली की समझ अंतरराष्ट्रीय व्यापार की संभावनाओं को बढ़ाने में कारगर सिद्ध होगी. अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और व्यापारियों के लिए भारतीय व्यापार प्रणाली का ज्ञान, निवेश तथा साझेदारी में सहायक साबित होगा.
भारत के बढ़ते स्टार्टअप तथा नवाचार पारिस्थितिकी के क्षेत्र में भी भारतीय व्यापार प्रणाली का अध्ययन कारगर साबित होगा तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देगा. हम सभी जानते हैं कि भारतीय कार्यबल दुनिया के प्रमुख देशों में कार्यरत है. इस लिहाज से देखा जाए, तो भारतीय व्यापार प्रणाली के अध्ययन एवं अनुसंधान से उस समृद्ध सामग्री का निर्माण किया जा सकता है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार, शिक्षा, कूटनीति समेत तमाम क्षेत्रों में कार्यरत पेशेवरों को व्यापक बहुराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य देने में कारगर होगा.
कुल मिलाकर, भारतीय व्यापार पद्धति का अध्ययन और इस क्षेत्र में अनुसंधान के माध्यम से दुनिया को एक नयी राह दिखाई जा सकती है और भारतीय पेशेवरों के मन में एक समावेशी, संवेदनशील व लचीली सोच उत्पन्न की जा सकती है, जो न केवल व्यापारिक परिवेश को बल्कि सामाजिक परिवेश को भी लाभान्वित करेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)