सोशल मीडिया साइट ट्विटर के यूजर के एक नीले भय में हैं. ब्लू टिक के लिए दाम लेकर इलोन मस्क के पैसा बनाने के पैंतरे से वे खुश नहीं हैं. कुछ दिन पहले अमिताभ बच्चन ने भोजपुरी में ट्वीट कर अफसोस जताया कि उनके हैंडल से सत्यापन वाला नीला चिह्न गायब हो गया. चूंकि वह चिह्न उनके स्तर होने के खास दर्जे को इंगित करता था, तो उन्होंने इसे वापस पाने के लिए लगभग नौ हजार रुपये खर्च कर दिया.
इसके बाद भी ट्विटर ने जब चिह्न नहीं दिया, तो उन्होंने व्यंग्यात्मक अनुरोध किया. तब कहीं उनका सत्यापन बहाल हुआ. फिर भी सुपरस्टार नहीं रुके और उन्होंने ट्वीट किया- ‘तू चीज बड़ी है मस्क मस्क.’ तब तक बच्चन, जिनके 4.8 करोड़ फॉलोवर हैं, को पता चला कि नयी नीति के तहत ट्विटर ने उन लोगों का ब्लू टिक बिना पैसे के वापस दे दिया, जिनके फॉलोवर दस लाख से अधिक हैं.
खैर, बच्चन तो ठिठोली कर रहे थे क्योंकि उन्हें अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया की जरूरत नहीं है, पर दुनियादारी के लाखों लोग अपना कृत्रिम (सोशल) स्टेटस खोने से नीले भय से आक्रांत हो गये. कई भारतीय डिजिटल बांके तो गहरे अवसाद में चले गये. ट्विटर पर सक्रिय भारतीयों में महज पांच फीसदी ही ऐसे हैं, जिन्हें नीला नस्लवाद की सुविधा मिली है, जो उन्हें बाकी लोगों से ऊपर रखती है. खास तौर पर वे स्वयंभू इन्फ्लूएंसर खफा हैं, जिन्होंने ट्विटर के भीतर के संपर्कों के जरिये ब्लू टिक हासिल किया था.
संस्थानों के लिए ब्लू टिक का खर्च लगभग 83 हजार है. सबसे अधिक प्रभावित राजनीतिक दल और उनसे संबद्ध संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ तथा कॉरपोरेट जगत हुए हैं. इनमें से किसी के पास ट्विटर बजट नहीं है. कई दलों के पास अपने प्रचार के लिए हजारों हैंडल होते हैं, तो अब वे खर्च घटाने के लिए इस सूची में संशोधन कर रहे हैं. टिक के वीआइपी स्टेटस में रंगों का प्रयोग मस्क का मास्टरस्ट्रोक है.
उन्होंने राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों और संबद्ध संगठनों को धूसर टिक दिया है. कंपनियों और मीडिया संगठनों को सुनहरा टिक मिला है. मस्क ने यह सुनिश्चित किया है कि ब्लू टिक हैसियत में बराबरी का प्रतीक बने क्योंकि यह मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के साधारण बाबू पर समान रूप से लागू होगा. भारत के सभी मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, खेल व सिनेमा के सितारों और सरकारी एजेंसियों ने अपने सत्यापन के लिए पैसा दिया है.
अमेरिका और जापान के बाद लगभग 2.4 करोड़ यूजर के साथ भारत ट्विटर का तीसरा सबसे बड़ा ठिकाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8.6 करोड़ से अधिक फॉलोवर के साथ दस सबसे प्रमुख लोगों में हैं. अधिकतर केंद्रीय मंत्रियों एवं भाजपा के मुख्यमंत्रियों के 10 लाख से अधिक फॉलोवर हैं. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही ट्विटर एजेंडा तय करने और जनमत का प्रचार करने के सबसे ताकतवर डिजिटल संचार के रूप में उभरा.
उन्होंने इसके अधिकतम इस्तेमाल के लिए पदाधिकारियों को प्रेरित किया. पहले ट्विटर पर अनुदारवादियों और वामपंथियों का वर्चस्व था. दक्षिणपंथियों को न ब्लू टिक मिलता था, न ही समुचित बढ़ावा. भाजपा की भारी चुनावी जीत में ट्विटर की सुनामी ताकत का बड़ा योगदान रहा है. अमेरिका में भी जनमत बदलने में इसकी अहम भूमिका रही है.
शीर्ष के 20 सोशल मीडिया मंच में ट्विटर 15वें और फेसबुक पहले स्थान पर है, पर इसने बहुत कम समय में डिजिटल खबर फैलाने के मुख्य माध्यम की भूमिका पा ली है. दुनिया में 40 करोड़ से अधिक यूजर के साथ इसके सब्सक्राइबर हर सेकेंड लगभग छह हजार ट्वीट करते हैं. शायद ही कोई ऐसा खास व्यक्ति होगा, जो ट्विटर को व्यक्तिगत मुखपत्र के रूप में इस्तेमाल न करता हो.
पहले ट्विटर यूजर को विचारधारा के स्तर पर विभाजित करता था. आज यह धनी और ख्यात लोगों के अपने विचार प्रसारित करने का माध्यम है. एक रिपोर्ट के अनुसार, शीर्षस्थ 25 प्रतिशत यूजर कुल 97 प्रतिशत ट्वीट करते हैं. ट्विटर के होमपेज पर लिखा है कि वे सार्वजनिक संवाद के सेवक हैं, इसलिए स्वतंत्र एवं सुरक्षित जगह जरूरी है. संस्थापक जैक डोरसी के मूल मिशन बयान में बिना अवरोध के खुलापन का भरोसा दिया गया था.
लेकिन मस्क के आने के बाद इसका रंग-ढंग बदल गया, जहां यह मंच उनके निजी उद्देश्य के लिए समर्पित है. सबसे अधिक फॉलोवर के साथ वे इस नीली चिड़िया का इस्तेमाल कार और रॉकेट कारोबार के लिए कर सकते हैं. उन्होंने 2022 में ट्विटर के खरीद पर 44 अरब डॉलर खर्च किया था, पर सालभर के भीतर ही उसकी कीमत आधी हो गयी.
इसे साल में चार अरब डॉलर से अधिक राजस्व मिलता है, पर बीते तीन साल से यह सालाना 20 करोड़ डॉलर से अधिक के नुकसान में है. अचानक मस्क ने घोषित कर दिया कि ट्विटर अब कॉरपोरेट इकाई नहीं रही. वे टेस्ला और स्पेसएक्स से अधिक समय इस पर देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि रंगों से अच्छी कमाई हो सकती है. असल में, मस्क ने अपने कारोबारी हितों को बढ़ावा देने, सूचना तंत्र को व्यापक करने और नियंत्रित कंटेंट सुनिश्चित करने के लिए ट्विटर को अपना उपनिवेश बना लिया है.
बहुतों को आशंका है कि मस्क का मनी मॉडल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संकुचित करने का खराब तरीका है. उदारवादी इसे सूचना के प्रसार को रोकने के एक कॉरपोरेट षड्यंत्र के रूप में देखते हैं. नव-खरबपतियों के स्वामित्व वाली सोशल मीडिया कंपनियों ने दुनिया को बयानों के एक वैश्विक गांव में सीमित कर दिया है. उनका बाजार मूल्य कई विकासशील और कुछ विकसित देशों की जीडीपी से भी अधिक हो चुका है. अखबार बदहाल हैं क्योंकि अधिक खर्च कर कंटेंट पैदा करने के बावजूद वे उपभोक्ताओं से मनमाना दाम नहीं वसूल सकते. ट्विटर का तरीका अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अलग है.
यह अभिव्यक्ति की लत लगाने वाला मंच है और इसलिए यह स्वाभाविक रूप से राजनीतिक वर्ग के लिए मजबूत औजार है. विभिन्न सरकारें अपना प्रचार इन मंचों से करती हैं, पर वे ट्विटर और यूट्यूब जैसे मध्यस्थों पर वैसे कंटेंट हटाने का दबाव डालती हैं, जिन्हें वे आपत्तिजनक मानती हैं. तकनीक, कारोबार और सरकार के बीच का नया गठजोड़ पूर्वाग्रह से ग्रस्त आख्यानों को बढ़ाने तथा विपरीत मतों एवं तथ्यों को चुप कराने के लिए बना है. भले साइबरस्पेस के असीम खालीपन में स्वतंत्र आवाजें चुप हो जाएं, पर पैसे और ताकत के लिए मस्क की भूख की गूंज की आवाज उन चुप्पियों से बहुत तेज है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)