वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी तनातनी को खत्म करने के लिए भले ही भारत और चीन के बीच लगातार बातचीत चल रही है, लेकिन चीन के रवैये से इंगित होता है कि शांति बहाली में उसकी दिलचस्पी नहीं है. मई से लेकर अब तक वह भारतीय सैनिकों पर अनर्गल आरोप लगाता रहा है. कभी वह हमारे सैनिकों की गश्ती को टोकता है, तो कभी गलवान की झड़प के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है. कुछ दिन पहले कई दशकों के बाद लद्दाख मोर्चे पर हुई गोलीबारी का दोष भी उसने भारत के माथे ही मढ़ दिया था.
चीनी सेना के जमावड़े के बरक्स भारत भी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए प्रयासरत है. जाहिर है कि इससे चीन को चिंता हो रही है क्योंकि इससे उसकी आक्रामकता को ठोस प्रतिकार मिल रहा है. इसी बेचैनी में उसने भारतीय सेना की तैयारियों पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि चीन ने भारत द्वारा लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के निर्णय को स्वीकार नहीं किया है. यह एक अकाट्य तथ्य है कि लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है और उसकी प्रशासनिक संरचना में बदलाव करने का अधिकार भारतीय संसद और सरकार को है. विश्व की कोई भी शक्ति भारत के इस अधिकार को नकार नहीं सकती है.
भारत की ओर से सुरक्षा व्यवस्था के लिए जो तैयारियां की जा रही हैं, वह भारत के अपने क्षेत्र में हो रही हैं. चीन ने न केवल अपने सीमा क्षेत्र में, बल्कि नियंत्रण रेखा के पास उन क्षेत्रों में भी सैनिक तामझाम स्थापित करने की कोशिश की है, जिन पर भारतीय दावेदारी है. यदि चीन ने सैन्य आक्रामकता नहीं दिखायी होती और बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं की होती, तो भारत को भी मुस्तैद होने की जरूरत नहीं पड़ती. अगर चीन को भारतीय सेना की तैयारियों से परेशानी है, तो उसे मई के पहले की यथास्थिति को बहाल करने की पहल करनी चाहिए.
लद्दाख के बारे में चीन का बयान न केवल भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की कोशिश है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि वह इस क्षेत्र में विस्तार की आकांक्षा रखता है. चीन की चिंता यह भी है कि उसका सामना करने के लिए भारतीय सेना सक्षम भी है और तैयार भी. भारतीय वायु सेनाध्यक्ष ने कहा है कि नियंत्रण रेखा पर न तो शांति की स्थिति है और न ही युद्ध की. इससे जाहिर है कि भारत किसी भी आसन्न संकट से निपटने के लिए सतर्क है.
आर्थिक और तकनीकी मोर्चे पर भारत ने जो कदम उठाये हैं, चीन को उससे भी झटका लगा है और उसे आशंका है कि भारत आगे भी कड़े फैसले कर सकता है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की रणनीतिक मोर्चेबंदी से भी चीन पसोपेश में है. चीन को यह समझना होगा कि द्विपक्षीय संबंधों को वह दबाव से निर्धारित नहीं कर सकता है.