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रोजगार का संकट

हर साल श्रम बल का हिस्सा बनते युवाओं के लिए विनिर्माण क्षेत्र न केवल रोजगार के मौके बना सकता है, बल्कि यह कृषि एवं अन्य क्षेत्रों के अतिरिक्त श्रमबल के लिए भी लाभप्रद हो सकता है.

भारत में बेरोजगारी बीते कई वर्षों से चिंता का सबब रही है. लेकिन, महामारी ने इस गंभीरता को और बढ़ा दिया है. बेरोजगारी दर के आंकड़ों से स्पष्ट है कि घरेलू मांग में कमी और आर्थिक सुधारों की सुस्ती चिंताजनक बनी हुई है. भारत की बेरोजगारी दर मार्च में 7.60 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 7.83 प्रतिशत हो गयी. हरियाणा 34.5 प्रतिशत की बेरोजगारी दर के साथ देश में शीर्ष पर है, वहीं राजस्थान में यह 28.8 प्रतिशत है.

शहरी बेरोजगारी दर मार्च से अप्रैल के बीच 8.28 प्रतिशत से बढ़कर 9.22 प्रतिशत हो गयी. हालांकि, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के मुताबिक, ग्रामीण बेरोजगारी दर में मामूली गिरावट आयी है. सरकार के त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण (क्यूइएस) में कहा गया है कि व्यापार, मैनुफैक्चरिंग और आईटी समेत नौ प्रमुख क्षेत्रों में अक्तूबर से दिसंबर के बीच चार लाख नयी नौकरियों का सृजन हुआ है.

हालांकि, महामारी के दौर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में लगभग एक करोड़ वेतनभोगी नौकरियां खत्म हो गयी थीं. इनमें से कितने लोग आजीविका में वापस आये और कितने आ सकते हैं, इसके बारे में अभी स्पष्ट नहीं है. रोजगार के मोर्चे पर आयी इस चुनौती को कई स्तरों पर देखा जा सकता है. बीते कुछ वर्षों में भारत में श्रम बल की भागीदारी दर में तेज गिरावट रही है.

सीएमआइई के आंकड़े बताते हैं कि श्रम बल भागीदारी दर में लगभग 40 प्रतिशत की तेज ढलान रही है. जिन देशों के साथ भारत की तुलना की जाती है, उनमें यह सबसे बड़ी गिरावट है. गिरावट संकेत देती है कि अनेक लोगों ने श्रम बल से दूरी बनाने का विकल्प अपनाया, शायद लाभप्रद और उत्पादक नौकरियों को लेकर उनके मन में निराशा रही. भागीदारी में महिलाओं की स्थिति अधिक चिंताजनक है. श्रम बल में भारतीय महिलाओं की भागीदारी वैश्विक औसत से बहुत कम है.

महामारी की शुरुआत में ही बेरोजगारी दर ऊंची थी, यानी नौकरी तलाश करनेवालों और नौकरी पाने में असमर्थ लोगों की संख्या बढ़ रही है. बेरोजगारी की स्थिति युवाओं और पढ़े-लिखे लोगों में अधिक चिंताजनक है. ईपीएफओ के आंकड़े भले ही औपचारिक क्षेत्र में सकारात्मक रुझान प्रस्तुत करते हों, लेकिन आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के अभाव के बीच श्रम बल का बड़ा हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में ही है.

एक के बाद एक सरकारों ने रोजगार को लेकर फैसले तो किये, लेकिन श्रम आधारित मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र के अभाव के चलते रोजगार का संकट बढ़ता ही गया. हर साल श्रम बल का हिस्सा बनते लाखों युवाओं के लिए विनिर्माण क्षेत्र न केवल रोजगार के मौके बना सकता है, बल्कि यह कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों के अतिरिक्त श्रम बल के लिए भी लाभप्रद हो सकता है. युवा आबादी वाले देश में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के बीच रोजगार की समस्या सबसे विकराल है और सरकार के समक्ष यह विकट चुनौती भी. बुनियादी ढांचे में वृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर ही देश की रोजगार सृजन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.

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