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भ्रामक है विश्व खुशी रिपोर्ट-2023

जो सूचकांक सबसे पहले प्रकाशित हुआ, उसमें अमेरिका और यूरोप के देश बहुत पीछे थे, लेकिन जब से यह काम पश्चिमी देशों के हाथ में आया, तब से एशियाई देश पीछे खिसक गये और यूरोपीय देश पहली पंक्ति में आ गये

बीते माह ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ द्वारा ‘विश्व खुशी रिपोर्ट- 2023’ जारी की गयी. हालांकि इस रिपोर्ट में भारत को पिछले वर्ष के 136वें पायदान से बेहतर 126वें पायदान पर रखा गया है, लेकिन हैरानी वाली बात यह है कि ऐसे कई मुल्क, जो विभिन्न परिस्थितियों के चलते किसी भी हाल में खुशी के मामले में भारत से बेहतर हो ही नहीं सकते, उन्हें भी भारत से बेहतर स्थिति में दिखाया गया है. उदाहरण के लिए, सऊदी अरब, जहां तानाशाही व्यवस्था है, उसे तीसरे स्थान पर, यूक्रेन, जो युद्ध में बर्बाद हो चुका है,

उसे 92वें स्थान पर, तुर्की, जो महंगाई के कारण टूट चुका है, उसे 106वें स्थान पर, दुनिया के सामने भीख का कटोरा लिए खड़े पाकिस्तान को 108वें स्थान पर तथा पूरी तरह से दिवालिया हो चुके श्रीलंका को 112वें स्थान रखा गया है. भारत, जो खाद्य पदार्थों की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि विभिन्न मामलों में उन मुल्कों से कहीं बेहतर है, जो रिपोर्ट में भारत से बेहतर बताये गये हैं. ऐसे में इस रिपोर्ट के बारे में भी सवाल उठ रहे हैं.

यह पहली बार नहीं है कि ऐसी भ्रामक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है. हाल में ‘वेल्ट हंगर हिल्फे’ नामक एक जर्मन एजेंसी ने भारत को भूख सूचकांक में 121 देशों की तालिका में 107वें स्थान पर रखा था. उसमें दिलचस्प यह था कि यूक्रेन ही नहीं, बल्कि इराक, ईरान, तुर्की, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, जॉर्डन आदि को भी भारत से बेहतर दिखाया गया है. सच तो यह है कि भारत इस समय खाद्यान्न और अन्य खाद्य पदार्थों के संदर्भ में कई मुल्कों से आगे है.

आज जब गरीब ही नहीं, बल्कि अमीर मुल्क भी खाद्य पदार्थों की कमी से जूझ रहे हैं, भारत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, इजरायल, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, ओमान, फिलीपींस, कतर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, सूडान, स्विट्जरलैंड समेत कई मुल्कों को लाखों टन अनाज भेज चुका है. भारत ने पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय प्रगति की है, लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है और आज भारत 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. दुनिया की कई शक्तियों को भारत की यह प्रगति हजम नहीं हो रही है और वे विभिन्न हथकंडे अपनाकर भारत को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं.

खुशी से संबंधित ऐसी अवधारणा की शुरुआत 1974 में भूटान के तत्कालीन नरेश जिग्मे सिंगे वांचुक द्वारा ‘राष्ट्रीय खुशी सूचकांक’ के नाम से की गयी. उनका मानना था कि उत्पादन में वृद्धि मात्र खुशी का सबब नहीं बन सकती. इसलिए विकास के मापन में खुशी एक महत्वपूर्ण तत्व होना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों से कई देशों को लोगों की खुशी के आधार पर सूचीबद्ध करने का काम शुरु हुआ.

वर्ष 2009 में प्रकाशित ‘हैप्पी प्लैनेट सूचकांक’ से पता चलता है कि अमेरिका, जो अत्यंत विकसित राष्ट्र है, इसमें 143 देशों में 114वें स्थान पर था. सिंगापुर 49वें, फ्रांस 71वें, कनाडा 89वें, इंग्लैंड 74वें, जर्मनी 51वें और भारत 35वें पायदान पर था. प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के वर्तमान सूचकों के आधार पर मानव विकास सूचकांक की सूची में 131वें स्थान पर खड़ा भूटान आश्चर्यजनक रूप से खुशी सूचकांक के आधार पर 17वें स्थान पर खड़ा था.

यह भी दिलचस्प है कि वर्तमान में विश्व खुशी सूचकांक में पहले स्थान वाला फिनलैंड उस रिपोर्ट में 59वें स्थान पर था. जुलाई 2011 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में ‘खुशी: विकास के एक समग्र परिभाषा की ओर’ प्रस्ताव पारित किया गया तथा अप्रैल 2012 में पहली विश्व खुशी रिपोर्ट प्रकाशित हुई. उसके उपरांत यह हर वर्ष 20 मार्च को संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस के अवसर पर प्रकाशित होती है. इस सर्वेक्षण को गैलोप नाम की एक कंपनी द्वारा अंजाम दिया जाता है.

विभिन्न देशों के प्रतिनिधि नमूना उत्तरदाताओं से खुशी के संदर्भ में विचारणीय विषयों के बारे में पूछा जाता है. जिस प्रश्नावली का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें व्यापार और आर्थिकी, नागरिक जुड़ाव, संचार एवं प्रौद्योगिकी, विविधता (सामाजिक मुद्दे), शिक्षा एवं परिवार, भावनाएं (कल्याण), पर्यावरण एवं ऊर्जा, भोजन और आवास, सरकार और राजनीति, कानून और व्यवस्था (सुरक्षा), स्वास्थ्य, धर्म और नैतिकता, परिवहन और रोजगार विषयों को शामिल किया जाता है.

यह विचारणीय है कि जो सूचकांक सबसे पहले प्रकाशित हुआ, उसमें अमेरिका और यूरोप के देश बहुत पीछे थे, लेकिन जब से यह काम पश्चिमी देशों के हाथ में आया, तब से एशियाई देश पीछे खिसक गये और यूरोपीय देश पहली पंक्ति में आ गये. कहा जा सकता है कि भौतिक संपत्ति और आमदनी फिर से खुशी का पैमाना बन गयी तथा कम आय वाले देशों को अपनी मर्जी से ऊपर-नीचे करने का काम हो रहा है. वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, फिनलैंड सबसे खुश देश माना गया है.

उसके बाद डेनमार्क, आयरलैंड, इजरायल और नीदरलैंड हैं. फिर स्वीडन, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग और न्यूजीलैंड का स्थान है. भारत 126वें स्थान पर है, जबकि 137 देशों की सूची में अफगानिस्तान सबसे अंतिम पायदान पर है. भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया में इस रिपोर्ट के संदर्भ में तीखी प्रतिक्रियाएं आयी हैं. इसका कारण यह है कि यूक्रेन, इराक, ईरान, तुर्की, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश और जॉर्डन को भी भारत से बेहतर दिखाया गया है.

सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि यूक्रेन, जो रूसी आक्रमण के बाद तबाह हो चुका है, उसे 92वें स्थान पर बताया गया है. इराक और ईरान, जहां नागरिक अधिकार न्यूनतम स्तर पर हैं, वे भी विश्व के 100 सबसे अधिक खुश देशों में हैं, जबकि आर्थिक दृष्टि से बर्बाद पाकिस्तान, जहां खाने के लिए दंगे हो रहे हैं, जिसकी करेंसी बदहाल है और जो कर्ज में पूरी तरह से डूब कर कंगाल है, उसे 108वां स्थान दिया गया है.

खाद्य पदार्थों के संदर्भ में आत्मनिर्भर भारत आज दुनियाभर को अन्न उपलब्ध करा रहा है, जहां पिछले कुछ सालों में तीन करोड़ लोगों को आवास मुहैया कराया गया है, जिसने कोविड की त्रासदी का सबसे अच्छे तरीके से सामना किया है, जहां लगभग सभी को वैक्सीन दी जा चुकी है, जहां यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई व्यक्ति भूखा न रहे और उसके लिए 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा मुफ्त राशन दिया जा रहा है,

जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, स्वच्छता आदि में अभूतपूर्व विकास हो रहा है, उसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से पीछे दिखाने से भारत की साख तो कम नहीं होती है, लेकिन उस संस्था की साख पर बट्टा जरूर लगता है, जो ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करती है.

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