पिछले तीन-चार दशकों में हृदय से संबंधित समस्याओं के ट्रेंड में एक बड़ा अंतर देखा जा रहा है. हृदय का संपर्क पूरे शरीर से होता है. इसे कार्डियो-वैस्कुलर प्रणाली कहा जाता है, जिसमें हृदय मुख्य अंग होता है. अभी जितने भी सर्वेक्षण हुए हैं उनसे पता चलता है कि पिछले 30-40 सालों में इस प्रणाली से संबंधित बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. पहले जो बीमारियां कम थीं, वे अब बढ़ रही हैं. जैसे 90 के दशक में ज्यादातर मौतें डायरिया, टीबी, श्वास संबंधी बीमारियों से होती थीं. लेकिन, पिछले 30-40 सालों में सबसे ज्यादा मौतें कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से हो रही हैं. एक बदलाव यह भी दिखाई दे रहा है कि अब ये बीमारियां युवा लोगों में भी हो रही हैं. यूरोप और अमेरिका में जो बीमारियां लोगों को 60 साल की उम्र में होती थीं, वे भारत में लोगों को औसतन पांच-दस साल पहले देखने को मिल रही हैं.
केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में यह हो रहा है. महिलाओं और बच्चों को भी अब ये बीमारियां हो रही हैं. लेकिन, इस बारे में जितनी गंभीरता से जानकारी जुटायी जानी चाहिए वह अभी नहीं हो रहा. देश में बीच-बीच में स्वास्थ्य सर्वेक्षण होते रहते हैं, लेकिन वह इतने कम लोगों पर किया गया होता है कि उनके आधार पर पूरे देश का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. यदि जनगणना की तरह का कोई व्यापक और समग्र सर्वेक्षण हो, तब शायद इस समस्या को ठीक से समझने में सफलता मिल सकती है. कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के लक्षण ब्लड प्रेशर और शुगर होते हैं. यदि इनके आंकड़ों को लेकर उनकी निगरानी के लिए एक तंत्र बनाया जा सके, तो शायद यह पता किया जा सकेगा कि किस तरह के लक्षणों से किस तरह की बीमारियां हो रही हैं. हालांकि, अभी जो भी आंकड़े हमें मिल रहे हैं, उनसे एक समझ बनने में मदद मिलनी शुरू हो गयी है.
हमारे देश मेंं युवाओं में हाइपरटेंशन की शिकायत बढ़ने के साथ किशोर वर्ग में भी 15 से 20 प्रतिशत लोगों को यह समस्या होने लगी है जो बहुत ही खतरनाक स्थिति है. हाइपरटेंशन की वजह से हृदय पर दबाव बढ़ता जाता है. हाइपरटेंशन और मोटापा से हृदय संबंधी रोग का खतरा बढ़ जाता है. आज स्कूली बच्चों में भी यह शिकायत मिल रही है. इसके अलावा, कई बार लोग मोटापे को नियंत्रित करने के लिए बहुत ज्यादा व्यायाम करने लगते हैं और ऐसी चीजों का सेवन भी करने लगते हैं जिनसे नुकसान पहुंचता है. जिम में ज्यादा व्यायाम करनेवाले लोगों को ऐसी चीजों का सेवन डाइटिशियन की सलाह से ही करना चाहिए ताकि शरीर में संतुलन बना रहे. बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग भी बिना समझे प्रोटीन और कैफीन युक्त उत्पादों का सेवन करने लगते हैं क्योंकि उनका काफी प्रचार होता है. जिम चलानेवाले अधिकतर लोग भी पेशेवर शिक्षा के अभाव या अधूरी शिक्षा के कारण लोगों को सलाह नहीं दे पाते. इससे कई बार जिम जाने से नुकसान होता है और मौत तक हो जाती है.
विकसित देशों में ऐसा नहीं होता क्योंकि वहां शिक्षा का स्तर और लोगों की समझ बहुत अच्छी होती है. वहां तो हानिकारक उत्पादों का न तो प्रचार होता है, न ही वहां कोई भी ऐसे ही जिम खोल सकता है. उनके यहां लोगों की खाने-पीने की आदतोंं में भी स्थिरता आ गयी है. भारत में अचानक से शहरीकरण की वजह से लोगों की खान-पान की आदतें बदलती जा रही हैं. पिछले 20-25 सालों में भारत में जीवनशैली में विकसित देशों की तुलना में ज्यादा परिवर्तन हुआ है, लेकिन शिक्षा और जागरूकता का वैसा विकास नहीं हुआ है. भारत की तरह ही विकास करते देशों में भी ऐसी समस्याएं हो रही हैं, जैसे ब्राजील, दक्षिण पूर्व एशिया के देश, चीन के कुछ शहर या कुछ अफ्रीकी देशों में भी हृदय संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं.
भारत में इन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले बच्चों से शुरुआत की जानी चाहिए, क्योंकि बचपन में सीखी आदतें जीवनभर साथ रहती हैं. इनमें सेहतमंद भोजन और व्यायाम जैसी चीजें शामिल हैं. देश के स्कूलों में और माता-पिता में बच्चों की शिक्षा पर तो बहुत जोर रहता है, लेकिन खेल-कूद को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा है. शहरी जीवन में बच्चों के खेलने की जगहें भी खत्म होती जा रही हैं. बहुत सारे स्कूलों में भी इमारतें तो होती हैं, लेकिन खेलने की कोई समुचित जगह नहीं होती है. एक अहम बात यह भी है कि यदि बच्चा कमजोर पैदा होता है तो उनमें आगे चलकर हाइपरटेंशन और डायबिटीज की समस्या ज्यादा पायी जाती है. इसी प्रकार, चार किलोग्राम से ज्यादा वजन वाले शिशुओं को भी आगे चलकर बीमारियां होती हैं. इन बहुत तरह के कारणों से मिलकर हम एक ऐसी पीढ़ी बना रहे हैं जिसमें 25-30 प्रतिशत लोग मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं. हाइपरटेंशन, डायबिटीज और हृदय रोगों का सबसे बड़ा कारण मोटापा होता है. महिलाओं में भी मोटापे से हॉर्मोन संतुलन बिगड़ता है. इन असंतुलनों से चिंताएं जन्म लेने लगती हैं, हालांंकि चिंता को हमारे समाज में कोई बीमारी माना ही नहीं जाता. लेकिन ये सारी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं और ये सब मिलकर बीमारियों में तब्दील होती जाती हैं.
(बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)