हर वर्ष 10 नवंबर को विश्व विज्ञान दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य समाज में विज्ञान की भूमिका को रेखांकित कर जन सामान्य के बीच विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के युवा वैज्ञानिकों के लिए आदर्श वाक्य रहा है- इनोवेट, पेटेंट, प्रोड्यूस एंड प्रॉस्पर. ये चार कदम हमारे देश को तेजी से विकास की ओर ले जायेंगे.
उम्मीद है कि हमारे प्रतिभाशाली वैज्ञानिक अपनी लगन से नयी सहस्राब्दी की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की चुनौतियों का सामना करने और दुनिया में अपनी छाप छोड़ने में सफल होंगे. वह दिन दूर नहीं जब दुनिया हमें पूर्व की भांति धर्म जगत का गुरु कहने के साथ विज्ञान एवं तकनीकी का भी गुरु कहेगी और डॉ कलाम का भारत को अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में लाने का सपना साकार हो सकेगा.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भारतीय परिप्रेक्ष्य को शब्दों में व्यक्त करना अत्यंत कठिन है. भारत ने स्वतंत्रता के 75 वर्षों में जैसा प्रदर्शन किया है, वह निश्चित ही प्रेरणादायी है. पर विकट प्रश्न यह है कि किस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को शिक्षित, स्वस्थ तथा समृद्ध बनाया जाए? इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि हम भारत के लोग दृढ़ संकल्प शक्ति से विज्ञान-प्रौद्योगिकी का सुनियोजित प्रयोग कर गरीबी, अशिक्षा का समूल नाश कर सकते हैं
और ज्ञान के उस मानदंड को पुनः प्राप्त कर सकते हैं जिससे भारत विकसित तथा समृद्ध राष्ट्र बने. नये आविष्कारों को व्यवहार में कैसे लाया जाए, इस पर गहन अध्ययन जरूरी है. इक्कीसवीं सदी तकनीकी क्रांति की है और देश की ताकत सूचना क्रांति पर निर्भर है. विज्ञान से आम आदमी के जीवन में कैसे सुधार आ सकता है इस पर व्यापक विमर्श होना चाहिए. देश की दो-तिहाई आबादी गांवों में रहती है. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का जीवन वैज्ञानिक तंत्र के माध्यम से ऊपर उठाया जा सकता है. बढ़ती आबादी को जनोपयोगी बनाने में विज्ञान अपनी भूमिका निभा सकता है. हम अभी तक आम आदमी में वैज्ञानिक चेतना का विकास नहीं कर पाये हैं.
यदि हम भारत को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें शोध पर जीडीपी बढ़ानी होगी. स्कूलों में मध्याह्न भोजन की तरह विज्ञान के उपकरण भी उपलब्ध कराने होंगे. प्रयोगशालाओं पर ध्यान देना होगा. वैज्ञानिक प्रतिभाओं को बेहतर रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पलायन रोकना होगा. विज्ञान की तरफ छात्र आकर्षित हों इसके लिए बेहतर वातावरण बनाना होगा. छात्रों को छात्रवृत्ति का अधिकाधिक लाभ मिले यह सुनिश्चित करना होगा. यहां हम यूरोप, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देश से बहुत कुछ सीख सकते हैं.