एक बड़े और प्रतिष्ठित निजी अस्पताल समूह के दिल्ली स्थित अस्पताल पर किडनी प्रत्यारोपण का अवैध कारोबार चलाने का बेहद गंभीर आरोप लगा है. हालांकि अस्पताल ने इसका खंडन किया है, पर स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन को पत्र लिखकर दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव से मामले की जांच कराने का निर्देश दिया है. अस्पताल पर आरोप है कि वह म्यांमार के गरीब लोगों को लालच देकर किडनी खरीदता है और महंगी कीमत पर उसे बेचता है. उल्लेखनीय है कि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के अंतर्गत निकट परिजन ही परिवार के सदस्यों को अंगदान कर सकते हैं. मानवीय कारणों से अपरिचितों से अंग लेने का प्रावधान है, पर उसके लिए नियम निर्धारित हैं.
कानून में अपरिचितों से अंग लेने का आम तौर पर निषेध है. ताजा प्रकरण में सच क्या है, यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगा, लेकिन देशभर से ऐसे मामले बरसों से आते रहे हैं. बड़े मामलों की बात करें, तो 2008 में दिल्ली से सटे गुरुग्राम में बड़े किडनी रैकेट का पर्दाफाश हुआ था. साल 2004 में मुंबई में एक गिरोह पकड़ा गया था, जो दस साल से अधिक समय से किडनी की खरीद-बिक्री में लिप्त था और उसका जाल पूरे देश में फैला हुआ था. बीते चार वर्षों में विशाखापत्तनम में दो गिरोह पकड़े जा चुके हैं. साल 2003 में पंजाब में एक बड़े नेटवर्क को पुलिस ने पकड़ा था. दिल्ली समेत कई राज्यों से गाहे-बगाहे ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. इन गिरोहों के शिकार मुख्य रूप से गरीब और कर्ज में उलझे लोग होते हैं. यह भी अजीब बात है कि अनेक मामलों में पीड़ित व्यक्ति ही गिरोह के लिए काम करने लगता है और उनके लिए बदहाल लोगों को फंसाता है. धोखे से किडनी निकालने की भी कई घटनाएं हो चुकी हैं.
इस अवैध कारोबार में लिप्त अस्पताल, डॉक्टर और गिरोह अब इंटरनेट और सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल करने लगे हैं. वेबसाइटों और सोशल मीडिया के सहारे खुलेआम मानव अंग की खरीद-बिक्री की जा रही है. ऐसा करना आपराधिक है और इसके लिए दंड का प्रावधान है. इस वर्ष जून में राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन ने इस संबंध में राज्यों को पत्र लिखकर कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. देश में हर साल 1.8 लाख किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, पर स्वैच्छिक अंगदान की संख्या बेहद कम है. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की वेबसाइट पर 1971 से 2016 के बीच केवल छह हजार प्रत्यारोपण ही पंजीकृत हैं. अंगदान हो या रक्तदान, हमारे देश में स्वैच्छिक दान संतोषजनक नहीं है. मृत्यु के बाद अंगदान का संकल्प अगर आम व्यवहार बन जाए, तो एक व्यक्ति के अंग कई लोगों को नया जीवन दे सकते हैं.