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झारखंड: कौन थे यदु बाबू? जिनकी ब्रिटिश जमाने में गिरफ्तारी की याद में पोते सुधीर सहाय ने किया रक्तदान

यदुवंश सहाय उर्फ़ यदु बाबू ने पलामू ही नहीं, बल्कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने अहम भूमिका निभायी थी. बाद में वे संविधान सभा के सदस्य भी बने. गांधीवादी विचार से प्रभावित यदु बाबू पलामू में उस समय के सभी स्वतंत्रता संग्राम के गतिविधियों में शामिल रहते थे.

पलामू, सैकत चटर्जी: पलामू के स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य यदु बाबू की गिरफ्तारी की याद में उनके पोता सुधीर सहाय ने रविवार को रक्तदान किया. उन्होंने प्रभात खबर को बताया कि छह अगस्त 1942 को अंग्रेजी हुकूमत के दौरान तत्कालीन पलामू एसपी रामनारायण सिंह के निर्देश पर यदु बाबू को उनके जेलहाता स्थित घर से गिरफ्तार किया गया था. उस समय महात्मा गांधी ने नौ अगस्त 1942 को असहयोग आंदोलन की घोषणा की थी. पलामू में यह आंदोलन यदु बाबू  के नेतृत्व में किया जाना था. इसकी भनक अंग्रेजों को लग गयी थी. इसलिए पहले ही यदु बाबू को गिरफ्तार कर लिया  गया था.  श्री सहाय ने बताया कि छह अगस्त का दिन न सिर्फ उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे पलामू के लिए काफी यादगार दिन है. इसलिए जब उन्हें पता चला कि नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय में कार्यरत राजीव मुखर्जी की पत्नी आभा मुखर्जी को रक्त की आवश्यकता है, तो उन्होंने खुद से पहल कर ब्लड बैंक आकर रक्तदान किया. 

अपनी शादी के दिन भी किया था रक्तदान 

सुधीर सहाय ने बताया कि वे काफी पहले से रक्तदान करते आ रहे हैं. जिस दिन उनकी शादी थी और बारात पटना के लिए निकलने वाली थी, उस समय उन्हें पता चला कि सदर हॉस्पिटल में एक बच्ची रक्त के अभाव में जिंदगी और मौत से जूझ रही है तो उन्होंने बारात रुकवाकर पहले रक्तदान कर उस बच्ची की जिंदगी बचाई, फिर शादी करने गए, जबकि वे उस बच्ची को जानते भी नहीं थे. उन्होंने सभी से अपील की है कि रक्तदान एक पुनीत कार्य है. इसे जरूर किया जाना चाहिए. 

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कौन थे यदु बाबू 

यदुवंश सहाय उर्फ़ यदु बाबू ने पलामू  ही नहीं, बल्कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने अहम भूमिका निभायी थी. बाद में वे संविधान सभा के सदस्य भी बने. गांधीवादी विचार से प्रभावित यदु बाबू पलामू में उस समय के सभी स्वतंत्रता संग्राम के गतिविधियों में शामिल रहते थे. नरम दल के नेता होने के बाद भी गरम दल के कई नेताओं से उनकी खूब जमती थी.  अक्सर जेलहाता स्थित उनके मकान में सभी सक्रिय नेताओं की बैठक होती थी, जिसमें आंदोलन की रूपरेखा तय की जाती थी.  छह अगस्त 1942 को जब उनकी गिरफ्तारी हुई उस समय भी वे असहयोग आंदोलन को लेकर प्लानिंग कर रहे थे. जब पुलिस उन्हें पकड़ने पहुंची तो वे गंजी पहने हुए थे. वे कुर्ता पहनने के बहाने घर के अंदर गए और अपने सहयोगियों को दिशा निर्देश देकर पीछे के रास्ते भगा दिया था. वैसे तो यदु बाबू को अंग्रेजों ने कई बार गिरफ्तार कर जेल भेजा था, पर छह अगस्त का दिन इसलिए खास था क्योंकि ठीक इसके तीन दिन बाद असहयोग आंदोलन होना था और दूसरा कारण यह भी था कि उस समय उनकी पत्नी गर्ववती थी. 

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जेल से ही किया था अपने तीसरे पुत्र का नामकरण

यदु बाबू के जेल में रहते ही उनके तीसरे पुत्र का जन्म हुआ था और जेल से ही उन्होंने अपने तीसरे पुत्र का नामकरण किया था. यदु बाबू ने अपने तीसरे पुत्र का नाम अजय नंदन सहाय उर्फ़ मुन्नू रखा था,  जिसे लेकर उनकी पत्नी सुमित्रा देवी हजारीबाग जेल में मुलाकात करने गयी थीं. उन्होंने पहली बार अपने तीसरे पुत्र को  देखा था.  यदु बाबू के तीन पुत्र कृष्णनंदन सहाय उर्फ़ बच्चन बाबू, बृजनंदन सहाय उर्फ़ मोहन बाबू और अजय नंदन सहाय उर्फ़ मुन्नू बाबू. 

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पत्नी सुमित्रा देवी भी थीं साहसी

यदु बाबू की पत्नी सुमित्रा देवी भी साहसी महिला थीं. जब छह अगस्त 1942 को यदु बाबू को गिरफ्तार किया गया था, उस समय वो गर्भवती थीं. यकायक यदु बाबू को गिरफ्तार कर लेने से पूरा परिवार सहम गया था, पर सुमित्रा देवी इस संकट की घड़ी में डटी रहीं और पूरा परिवार को संभाला. उस समय उनके बड़े पुत्र बच्चन बाबू 16 और मंझला पुत्र मोहन बाबू 11 वर्ष के ही थे. एक बार जब पुत्र बच्चन बाबू को अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफत करने के जुर्म में पकड़ा और कम उम्र के कारण माफ़ी मांग कर छूट जाने को कहा तो सुमित्रा देवी ने कहा था कि अगर माफ़ी मांगोगे तो घर मत लौटना. मां की बात मानकर बच्चन बाबू माफ़ी नहीं मांगे और जेल गए थे. 

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अभी भी कई यादों को समेटे हुए है जेलहाता का घर 

मेदिनीनगर के जेलहाता में जिस घर में यदु बाबू रहते थे, वो अभी भी कई यादों को समेटे हुए है. यदु बाबू द्वारा इस्तेमाल किये हुए कई सामान अभी भी यथावत हैं. उस घर में एक कमरा अभी भी है जहां वे अपने साथियों के साथ आंदोलन की गुप्त मंत्रणा करते थे. यदु बाबू के मंझले पुत्र बृजनंदन सहाय उर्फ़ मोहन बाबू अभी 91 साल के हैं. यदु बाबू को उन्होंने काफी करीब से आंदोलन के समय देखा है. आज भी वे उन सब बातों को याद कर रोमांचित हो जाते हैं. जब छह अगस्त 1942 को यदु बाबू को अंग्रेज गिरफ्तार कर ले जा  रहे थे, उस समय मोहन बाबू 11 साल के थे. उन्हें आज भी वो दृश्य याद है जब घर वालों और अपने सहयोगियों को बिल्कुल भी नहीं घबराने की बात कहते हुए यदु बाबू सीना ताने पुलिस के साथ चल पड़े थे. 

संविधान सभा के सदस्य के रूप में भी यदु बाबू ने दिया था योगदान 

न सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन बल्कि यदु बाबू ने आजादी के बाद भी संविधान सभा के सदस्य के रूप में भी सराहनीय काम किया था. उन्होंने संविधान के निर्माण में अपने पलामू के तत्कालीन सहयोगी अमिय कुमार घोष उर्फ़ गोपा बाबू के साथ काफी योगदान दिया था. उन्होंने संविधान सभा में कई यादगार बहस में भी हिस्सा लिया था.

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