बेतला (पलामू), संतोष कुमार : पलामू किला पलामू प्रमंडल की आन, बान और शान का प्रतीक है, इसलिए इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने और संरक्षित करने की जरूरत है. मुगलकालीन स्थापत्य कला का बेहतर नमूना प्रस्तुत करता यह किला करीब 360 वर्ष पुराना है, लेकिन फिलहाल इसका 90 प्रतिशत हिस्सा जमींदोज हो चुका है. बावजूद इसके यह आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. यह ऐतिहासिक धरोहर चेरो राजवंश के 200 वर्षों तक के शासनकाल का प्रत्यक्ष गवाह है.
पलामू किले की भव्यता को नजदीक से निहारने के लिए हर साल करीब एक लाख से अधिक पर्यटक यहां पहुंचते हैं. यह किला मुगलों और अंग्रेजी हुकूमत के साथ चेरो राजाओं के संघर्ष स्वाभिमान और शहादत की याद दिलाता है. 640 एकड़ क्षेत्र में फैले किले के दो भाग हैं. पुराना किला औरंगा नदी के तट पर है, जबकि नया किला पहाड़ी पर है. 1973-74 में यह किला पलामू टाइगर प्रोजेक्ट के परिधि में आ गया है.
नये और पुराने दोनों किले के आसपास के परिसर में भारी मात्रा में अवशेष पड़े हुए हैं, जिनका अपना अलग-अलग ऐतिहासिक महत्व है. नागपुरी गेट कलाकृतियों का बखान करता है, जबकि यहां दीवारों पर लिखी गयी तत्कालीन लिपि लोगों के लिए उत्सुकता का विषय हैं. इतना ही नहीं यहां के मुख्य द्वार को बिहार के दाउदनगर में ले जाया गया है, जहां पलामू किला के मुख्य द्वार के समान रचना है. वहीं, सुरंग के माध्यम से शाहपुर किला का जुड़ाव चर्चित है.
इतिहासकार बताते हैं कि पलामू पर चेरो राजवंश का राज 1613 से 1813 तक रहा. भगवंत राय से लेकर चुडामन राय तक पलामू के राजा रहे. 1661 ई में राजा मेदिनी राय राजा हुए, जो काफी लोकप्रिय थे. उन्हीं के द्वारा शत्रुओं के आक्रमण के हमले से बचने व सैन्य शक्ति को समृद्ध करने के उद्देश्य से किले का निर्माण कराया गया, जबकि नये किले का निर्माण उनके पुत्र प्रताप राय द्वारा कराया गया. हालांकि, इतिहासकारों में इसे लेकर भी मतभेद है. अंग्रेजों ने पलामू किले पर भी हमला किया था. नये किले पर तोपों के निशान आज भी देखे जाते हैं, जो अंग्रेज कैप्टन कैमक की षड्यंत्रकारी नीति और दबंगई के गवाह हैं.
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