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झारखंड का एक ऐसा गांव जहां खेतीबाड़ी ने पलायन पर लगायी रोक, जानें कैसे

गुमला के कुटवां गांव की आबोहवा अब बदल रही है. दो साल पहले इस गांव के लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करते थे, लेकिन खेतीबाड़ी ने पलायन पर ब्रेक लगा दी है. सोलर के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंच रहा है. अब यहां के किसान समृद्ध हो रहे हैं.

Jharkhand News: गुमला से 26 किमी दूर कुटवां गांव कभी उग्रवाद और अपराध के रूप में जाना जाता था. पलायन इस क्षेत्र की पहचान थी. धान की खेती के बाद लोग गोवा मजदूरी करने चले जाते थे, लेकिन अब इस क्षेत्र के लोग पलायन से मुंह मोड़ खेती-बारी कर अपनी अलग पहचान बना रहे हैं और अपनी तकदीर भी बदल रहे हैं. खेती-बाड़ी कर अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा भी रहे हैं.

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सब्जियों की ऑर्गेनिक तरीके से कर रहे खेती

गुमला और बसिया के बीच से होकर दक्षिणी कोयल नदी बहती है. गुमला से निकलने वाली मरदा नदी भी कुटवां मिशन टोला के समीप कोयल नदी में जाकर मिल जाती है. किसान इसी नदी के पानी को सोलर मशीन द्वारा खेत तक ले जा रहे हैं और खेती कर रहे हैं. इस क्षेत्र का यह पहला गांव है जहां कुटवां मिशन टोला के 26 किसान ऑर्गेनिक खेती कर अपनी अलग पहचान बना रहे हैं. अभी मटर से लेकर कई प्रकार की सब्जियों की ऑर्गेनिक तरीके से खेती कर रहे हैं.

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ग्रामीणों की बदल रही आर्थिक स्थिति

किसानों ने बताया कि कोरोना संक्रमण के समय पूरा गांव मुसीबत में आ गया था. लेकिन, सभी लोग दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं और मजदूरी करते हैं. जिससे घर की जीविता चलती थी, लेकिन कोरोना ने सभी का काम-धंधा छीन लिया. इसके बाद ग्रामीण गांव में ही रहने लगे. अंत में बैठक की. ग्रामीणों ने खेतीबाड़ी करने का निर्णय लिया. इसके लिए कुछ कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली. इसके बाद दो साल पहले गांव में ऑर्गेनिक खेती शुरू की गयी. जिससे अब लोगों की आर्थिक स्थिति भी बदल रही है.

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अब गोवा नहीं जाते हैं : मतियस

किसान मतियस लकड़ा ने कहा कि बरसात के बाद वह गोवा मजदूरी करने चला जाता था. लेकिन, अब वह पलायन नहीं करता है. गांव में ही खेती कर रहा है. नजदीक के बाजारों में जाकर जैविक तरीके से उत्पादित सब्जियों को बाजार में बेचते हैं. जैविक तरीके से उत्पादित सब्जी सेहत के लिए फायदेमंद है. इसलिए बाजार में जाते ही खूब बिक्री होती है.

अब पलायन नहीं करते हैं : किसान

किसान अनीता एक्का, सेरोफिना लकड़ा, देवदास लकड़ा, पैत्रुस लकड़ा, राजेश एक्का, अरुण लकड़ा, भूखला उरांव, बैंजामिन लकड़ा, हाबिल लकड़ा ने कहा कि एक समय पूरा गांव सुनसान हो जाता था क्योंकि सभी लोग रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्य चले जाते थे. लेकिन, अब गांव में ही रहकर खेती करते हैं. गांव में कुछ कमियां है. प्रशासन उन कमियों को दूर करें.

गांव में सरकारी सुविधा की कमी

कुटवां मिशन टोला में सरकारी सुविधा न के बराबर है. गांव में पीने के पानी का संकट है. सड़क ठीक नहीं है. शौचालय नहीं है. पक्का घर नहीं है. कई परिवार का राशन कार्ड नहीं है. ग्रामीण कहते हैं कि अगर प्रशासन हमारे गांव की समस्या को दूर करें और कृषि कार्य करने में मदद करें तो यह क्षेत्र कृषि हब बनेगा. किसानों ने मरदा नदी में सोलर लिफ्ट और पंप की मांग किया है.

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किसानों की मांग

– कृषि विभाग से सरसों, चना व अन्य बीज मिले, ताकि खेती कर सके.
– कृषि उपकरण की कमी है. प्रशासन किसानों को उपकरण उपलब्ध कराये.

रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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