Agriculture News: खरीफ फसल की खेती का मौसम शुरू हो गया है. इस मौसम में कई जिलों में बहुतायात में धान की खेती होती है. जो लगभग चार माह में तैयार हो जाती है. इस मौसम में धान फसल की खेती पर किसान अधिक जोर देते हैं. धान फसल के अच्छे उत्पादन के लिए बीज बोने से पहले बीज का उपचार जितना जरूरी है, उतना ही फसल को कीटों से बचाना और फसल में होने वाले रोगों से बचाव के उपाय (प्रबंधन) भी जरूरी है. कई प्रकार के कीट (कीड़ा) और रोग ऐसे हैं, जो धान की अच्छी खासी फसल को भी बरबाद कर देती है.
खरीफ मौसम में धान की खेती होती अधिक
कृषि विभाग, गुमला के अनुसार जिले भर में दो लाख से भी अधिक किसान हैं. जिले भर में 1.80 लाख हेक्टेयर से लेकर 1.90 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है. जिसमें कई किसानों का फसल कीट एवं रोग के कारण बरबाद हो जाता है. जिला कृषि पदाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि धान फसल का बीज बोने से पहले बीज का उपचार कर लें. इससे बीज से तैयार पौधों में किसी प्रकार का रोग नहीं लगता है. इसके बाद फसल का कीट प्रबंधन जरूरी रहता है. इससे न केवल फसल अच्छी रहती है, बल्कि फसल के उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है.
मिट्टी की ऐसे बढ़ाएं उर्वरता
कृषि वैज्ञानिक नीरज कुमार वैश्य ने कहा कि मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसल जैसे ढैंचा या सनई आदि की बोआई कर सकते हैं. एक एकड़ भूमि में बोआई के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की बुवाई करें. बुवाई के 30-35 दिन बाद खेत में खड़ी फसल को जुताई करके मिला दें. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी. साथ ही उपज भी बढ़ेगा. धान की खेती करने के लिए किसान भाई जहां पर बिचड़ा का रोपाई करना है, वहां पर गोबर खाद को डाल कर खेत की तैयारी शुरू कर दें. लंबे समय वाले धान की फसल का किसान भाई बिचड़ा डालना शुरू कर दें. बिचड़ा डालने के दौरान किसान भाई कच्चा गोबर का प्रयोग न करें. सड़े, तैयार गोबर खाद का ही प्रयोग करें. DAP & MOP उर्वरकों का बीज डालने के दौरान प्रयोग करें. तीन पत्ती आने के बाद यूरिया का भी स्वास्थ्य नर्सरी तैयार करने के लिए प्रयोग करें. नर्सरी डालने के समय यह जरूर किसान भाई ध्यान दें की नर्सरी डालने की जगह पर कुछ न कुछ पानी की व्यवस्था हो.
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कीट, रोग एवं बचाव जरूरी
धान के फसल में प्राय: छह प्रकार के रोग लगते हैं. झुलसा रोग या ब्लास्ट रोग, पत्र लांछन व भूरी चित्ती रोग, जीवाणु पर्ण अंगामारी रोग, जीवाणु पर्ण रेखा रोग, धड़ सड़न रोग और आभासी कंड (फॉल्स स्मट) रोग लगते हैं. फसलों में लगने वाले कीट में सांढ़ा कीट, तना छेदक कीट, पत्तियां खाने वाले कीड़े, रस चूसने वाला कीट फसल को नुकसान पहुंचाता है. इसलिए कीट प्रबंधन जरूरी है.
फसल में लगने वाले कीट और उसके प्रबंधन के उपाय
सांढ़ा कीट : सांढ़ा कीट की पिल्लू धान के बढ़वार बिंदु में प्रवेश कर खाता है. जिससे बढ़वार बिंदू प्याज की पत्ती के समान पतली और खोखली नली के रूप में विकसित हो जाती है. कीट ग्रसित भाग (टिलर) में बालियां नहीं निकलती है. इस कीट से बचाव के लिए अवरोधी प्रभेद जैसे- IR 36, ललाट, राजेंद्र धान 202 का प्रयोग कर सकते हैं. 10 से 12 दिन के बिचड़ों में दानेदार कीटनाशी जैसे फिप्रोनिल 0.3 जी (रिएजेंट, रिजल्ट, काटैप, सेल्डन, पालकन) का 250 ग्राम या कारटॉप हाइड्रोक्लोराईड 4 जी (मोटार, कृटैप) का 200 से 250 ग्राम प्रति 100 वर्गमीटर की दर से नर्सरी में बिखेरना चाहिये. वहीं दानेदार कीटनाशी जैसे कारटॉप हाइड्रोक्लोराईड 4 जी का 25 किग्रा फिप्रोनिल 0.3 जी (25 किग्रा प्रति हेक्टेयर) प्रयोग रोपाई से तीन सप्ताह बाद करना चाहिए.
तना छेदक कीट : तना छेदक शिशु कीट पौधों के तना में छेद करके आंतरिक भाग को खाता है. जिससे बीच की पत्ती सूख जाती है और बालियों की अवस्था में कीट का आक्रमण होने पर संपूर्ण बालियां ही सूख जाती है. जिसको ह्वाइट डेड कहते हैं. इसका प्रबंधन सांढ़ा कीट के नियंत्रण के लिए व्यवहार की गयी दानेदार कीटनाशी से तना छेदक के प्रभाव को कम किया जा सकता है. आवश्यकतानसर 35 दिनों बाद इंडोक्साकार्ब 15.8 एससी (अमेज, काईट, इंडोकिंग 500 मिली प्रति हेक्टेयर) या फ्लूबेंडियामाईड (फेम, फेनॉस) का 100 मिली प्रति हेक्टयेर का छिड़काव करना चाहिए.
पत्तियां खाने वाले कीड़े : पतियां खाने वाले कीड़े (बकाया कीट) के आक्रमण से धान की पतियां सफेद हो जाती है. इस कीट का प्रबंधन क्लोरोपाइरीफॉस या क्लीनालफॉस तरल (क्लोरीन, टर्मिनेटर, प्रहार 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) या कारटॉप हाइड्रोक्लोराईड 50 एसपी एक हजार से 1500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव प्रभावी होता है.
रस चूसने वाला कीट : रस चूसने वाले कीट की बात करें, तो इसका भूरा मधुआ, थ्रिप्स पत्तियों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाते हैं. भूरा मधुआ धान के तना से रस चूसते हैं. जिससे पौधों का बढ़ना रूक जाता है तथा धान की पतियां सूख जाती है. इसकी क्षति गोलाकार स्थिति में देखी जाती है.
फसल में लगने वाले रोग और प्रबंधन के उपाय
झुलसा रोग या ब्लास्ट रोग : झुलसा या ब्लास्ट रोग में पत्तियों पर लगभग एक सेमी चौड़े नाव आकार के भूरे धब्बे दिखायी देते हैं. इनके बीच का भाग राख के रंग का होता है और परिधि पर गहरे भूरे रंग की पतली मिट्टी पायी जाती है. जिससे बालियों के नीचे डंठल पर भूरा काला धब्बा दिखायी पड़ता है. काले भाग में धान के बाल टूट जाते हैं. इस रोग के प्रबंधन के लिए कार्बेंडाजिम अथवा ट्राईसायक्लाजोल (ब्लास्टिन, ट्राईजोल, मास्क, किक, सिविक) (बीम) दो ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें. कार्बेंडाजिम 200 ग्राम और इंडोफिल एम-45 1.25 किग्रा या बीम छह मिली प्रति 10 लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 200 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अंतराल पर दो-तीन बार छिड़काव करें.
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पत्र लांछन व भूरी चित्ती रोग : पत्र लांछन व भूरी चित्ती रोग लगने से पत्तियो और दोनों पर छोटै-छोटे भूरे रंग का अंडाकार धब्बा बन जाता है और बीच का भाग धूसर रंग का हो जाता है. इसके प्रबंधन के लिए कार्बेंडाजिम अथवा ट्राइसायक्लाजोल (बीम) दो ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से बीजाचार करें. ढाई ग्राम डायथेन जेड-78 या कवच दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. रोग निरोधक प्रभेद लगाये. जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग लगने से पीले या पुआल के रग के लहरदार धब्बे पत्तियों के एक या दोनों किनारों के सिरे से प्रारंभ होकर नीचे की ओर बढ़ते हैं. क्षति स्थल पत्तियों की नसों के सामानांतर छोटे होते हैं. बाद में लंबाई और चौड़ाई दोनों में बढ़ते हैं. जिससे पतियां सूख जाती है. इस रोग से बचाने के लिए पहले छह घंटे तक बीज के स्ट्रोप्टोसायक्लिन (100 पीपीएम) में भिंगोए. साथ ही रोगग्रस्त खेत का पानी दूसरे खेतों में बहा दे.
जीवाणु पर्ण अंगामारी रोग : जीवाणु पर्ण रेखा रोग लगने के कारण पीली या नारंगी कत्थई रंग की धारियां शिराओं से घिरी पायी जाती है. कई धारियां आपस में मिलकर बड़े धब्बे का रूप लेती है. जिससे पत्तियां समय से पहले सूख जाती है. इस रोग से बचाने के लिए पहले छह घंटे तक बीज के स्ट्रोप्टोसायक्लिन (100 पीपीएम) में भिंगोये. साथ ही रोगग्रस्त खेत का पानी दूसरे खेतों में बहा दे.
धड़ सड़न रोग : धड़ सड़न रोग के लक्षण तना तथा पर्णछेदक पर पानी की सतह के पास काले रंग के धब्बे के रूप में दिखायी देते हैं. इस रोग के कारण बालियां निकलते सम कमजोर तने गिर जाते हैं. जिससे बालियों में आधे से अधिक दाने खाली रह जाती है. इस रोग के प्रबंधन के लिए बीज को कार्बेंडाजिम दो ग्राम पति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने के बाद बीज को लगाये. रोग के लक्षण दिखने पर एक किग्रा इंडोफिल एम-45 को 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे.
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आभासी कंड रोग : आभासी कंड (फॉल्स स्मट) रोग लगने से रोग्रस्त दोनों के अंदर कवक अंडाशय को एक बड़े कूट रूप में बदल देता है. पीले से लेकर संतरे के रंग का और बाद में जैतुनी-हरा रंग का दिखायी देता है. साथ ही रोगी दाने आकार में धान के दानों से दोगुने से भी बड़े हो जाते हैं और मखमली दिखायी पड़ते हैं. इस रोग के प्रबंधन के लिए बाली निकलने से पहले टिल्ट एक मिली प्रति लीटर पानी अथव टेबुकोनाजोल (50 प्रतिशत) के साथ ट्राइफ्लोक्सीट्राबीन (25 प्रतिशत) चार ग्राम प्रति 10 लीटर पानी अथवा ब्लाइटॉक्स 50 (200 ग्राम) को 400 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छड़काव करें. 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें.
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रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.