अनुज शर्मा, पटना : ‘ साहब चले गये हैं, तो अब चिराग बदलेंगे ‘. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के घर से करीब 150 मीटर दूर गेंदा का मुरझाया सा एक फूल लेकर बैठीं मनोरमा देवी ऐसा सोचने वाली अकेली नहीं थी़ किसी तरह साधन जुटाकर सैकड़ों किमी की यात्रा कर पासवान को अंतिम विदाई देने को जमीन पर बैठे इंतजार करने वालों की चर्चा में एक ही आस थी. चिराग पिता की तरह उनके ‘राम’ बनकर पार्टी व परिवार का ध्यान रखे़
मनोरमा दिवंगत नेता के अंतिम दर्शन करने को चितकोहरा से पैदल पहुंची थी़ भीड़-वीआइपी लोगों के आने-जाने के कारण वह देश की सियासत को बदलने वाली राजधानी के पॉश इलाके एसकेपुरी की सड़क अंतिम यात्रा के गुजरने का इंतजार कर रही थी़ परिचय पूछने पर कहती हैं कि हम पासवान के निजी आदमी है़ बगल में बैठी मालती व संजू देवी भी उनकी हां में हां मिलाती है़
रामविलास पासवान के फुफेरे भाई बीरेंद्र पासवान मुर्राहा हसनपुर से परिवार के साथ पहुंचे थे़ वे कहते हैं कि रामविलास शहर चमक व गांव की धूल को मिलाकर चलने वाला नेता थे. चिराग के लिए चुनौती भले हो. लेकिन, उसमें पिता की विरासत को आगे ले जाने की पूरी क्षमता है़ अंतिम यात्रा में सबसे आगे ध्वज वाहक की तरह विकलांग सुरेश सिंह थे़
उनके ट्राई स्कूटर पर लोजपा के दो झंडे लहरा रहे थे़ नम आंखों से बताते हैं कि पहली बार पासवान हाजीपुर से चुनाव लड़े थे, तब उनसे जुड़ा था़ इसे पासवान ने सांसद कोटे से ही दिया था़ चिराग में भी पार्टी को ऊंचाई तक ले जाने का हौसला है़.
Posted by Ashish Jha