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अतीत पटना का : ब्रिटिश काल में यहां हुई थी शहर की पहली बोरिंग, इसी कारण नाम पड़ा बोरिंग रोड

आज बोरिंग रोड और बोरिंग कैनाल रोड महानगर के तर्ज पर जागता है और देर रात सोता है. वर्ष 1950 में बोरिंग रोड के पास मैदान थे, जहां खेती- किसानी होती थी. ब्रिटिश काल में पटना की पहली बोरिंग इसी इलाके में हुई और पानी टंकी (जल मीनार) बनी, जो अब भी है

सुबोध कुमार नंदन, पटना. बोरिंग रोड का इलाका किसी परिचय का मोहताज नहीं है. बोरिंग रोड राजधानी के प्रमुख पॉश इलाकों में से एक है. बोरिंग रोड का सरकारी नाम जयप्रकाश नारायण पथ है. यह दो भागों में बंटा है. एक बोरिंग रोड दूसरा बोरिंग कैनाल रोड. यह पटना वीमेंस कॉलेज मुहाने (बेली रोड) से कोने से शुरू होता है और एएन कॉलेज से सटे प्रसिद्ध पानी टंकी के पास समाप्त होता है. वहीं बोरिंग रोड चौराहा से उत्तर का इलाका बोरिंग कैनाल रोड कहलाता है. इसके पहले इसे स्टुअटे रोड के नाम से जाना जाता था. आज बोरिंग रोड और बोरिंग कैनाल रोड महानगर के तर्ज पर जागता है और देर रात सोता है. वर्ष 1950 में बोरिंग रोड के पास मैदान थे, जहां खेती- किसानी होती थी. ब्रिटिश काल में पटना की पहली बोरिंग इसी इलाके में हुई और पानी टंकी (जल मीनार) बनी, जो अब भी है. इसी जल मीनार से पूरे शहर में बोरिंग के पानी की सप्लाइ होती थी. इसके कारण इसका नाम बोरिंग रोड पड़ा. बोरिंग रोड का पहला मकान कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चंद्र शेखर बाबू का बना. धीरे -धीरे पूरा इलका मकानों से भर गया. आज जहां अलंकार प्लेस है, वहां 40 साल पहले खप्परपोश दुकानें हुआ करती थीं. 1950-60 में आधुनिक बोरिंग रोड चौराहे के आसपास शिक्षित बंगाली परिवार बसना शुरू किये.

1951 में चौराहे पर शुरू की थी चाय टोस्ट की दुकान

बोरिंग रोड चौराहे पर स्थित क्वालिटी कॉर्नर इस इलाके की सबसे पहली और पुरानी मिठाई की दुकान है, जो अपने समोसे और इडली के लिए प्रसिद्ध थी. देश के बंटवारे के बाद लाहौर से पलायन कर पटना आ बसे सरदार महेंद्र सिंह ने 1951 में बोरिंग रोड चौराहा पर चाय-टोस्ट की दुकान से शुरुआत की.

तेजी से खुले ब्रांडेड शोरूम

अत्याधुनिक अपार्टमेंट में उच्च आय वर्ग के लोगों की आबादी तेजी से बसने के कारण ब्रांडेड कंपनियों के शोरूम भी तेजी से खुले. इस वक्त तो बोरिंग रोड और बोरिंग कैनाल रोड ब्रांडेड ज्वेलरी शोरूम का हब बन चुका है. तनिष्क, अलंकार ज्वलेर्स, कल्याण ज्वेलर्स, मलाबार, पीसी ज्वेलर्स, रिलायंस ज्वेल, सैकनो, टीबी जेड प्रमुख हैं.

बोरिंग रोड चौराहा मंदिर के पास थी काठ की एक पुलिया

प्रभांशु कुमार बताते हैं कि 1952 -53 में बोरिंग रोड चौराहा मंदिर के पास काठ की एक पुलिया थी, जो तीन से चार फीट थी. कहीं कोई मकान या दुकान का नामोनिशान नहीं था. दूर-दूर मैदान ही दिखाई देता था. आज के बोरिंग कैनाल रोड में गोरख नाथ मेंशन के पास प्रसिद्ध अर्थशास्त्री बाबू गोरखनाथ सिंह, विधान पार्षद सिद्देश्वरी प्रसाद सिन्हा और एक बंगाली रइस पिंटू घोष के मकान थे. इन तीन घरों के अलावा कुछ नहीं था. रास्ता कच्चा था और बोरिंग रोड चौराहे से राजापुर पुल तक बड़ा खुला नाला था. पुराने मकान के नाम पर धरहरा हाउस बचा है. बोरिंग रोड की पहली दवा दुकान होने का गौरव बोरिंग कैनाल मेडिकल को प्राप्त है, जिसे वर्ष 1968 में कारु प्रसाद ने खोला था. नाश्ते की दुकान के नाम पर सरदार जी की दुकान बोरिंग रोड चौराहे पर थी. इसके अलावा मोती पान दुकान पुरानी दुकानों में से एक है.

1987 -88 के बाद तेजी से आबादी बढ़ी

अलंकार ज्वेलर्स के मदन प्रसाद गुप्ता ने बताया कि अलंकार प्लेस कर्नल रितु लाल मित्रा के स्वामित्व वाली भूमि पर बनाया गया और अलंकार प्लेस के पीछे और बगल में भूमि के परिसर को मित्रा कंपाउंड कहा जाता था. इस कंपाउंड में ही धनराज टावर, कुमार टावर और अंजलि अपार्टमेंट है. अलंकार ज्वेलर्स के संस्थापक स्व बैजनाथ प्रसाद ने कर्नल मित्रा से मित्रा परिसर का एक हिस्सा खरीदा और अलंकार प्लेस का निर्माण शुरू किया. बोरिंग रोड इलाके का पहला बड़ा मार्केट और वाणिज्यिक परिसर अलंकार प्लेस है. 1980 के दौरान अलंकार परिवार ने इस इलाके में अपना कारोबार केंद्र स्थापित किया. वर्ष 1987 -88 के बाद इस इलाके में तेजी से आबादी बढ़ी और नये मकान और नये-नये मार्केट बनने लगे. इस इलाके में ब्रांडेड कंपनियों ब्यूटी पालर्स, कॉफी हाउस, रेस्टोरेंट, ब्रांडेड कंपनियों के रेडिमेड वस्त्रों के दर्जनों शोरूम खुल चुके हैं.

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बोरिंग कैनाल रोड से राजापुर पुल तक था नाला

केपीएस केशरी बताते हैं की बोरिंग रोड और बोरिंग कैनाल रोड की बायीं और दायीं ओर कई कॉलोनियां बसी हैं, जैसे-नागेश्वर कॉलोनी, श्री कृष्णपुरी, उत्तर श्री कृष्णपुरी आदि मुख्य कॉलोनियां हैं. वहीं बोरिंग कैनाल रोड के पश्चिम बोरिंग कैनाल रोड से राजापुर पुल के बीच बहुत बड़ा नाला था. रास्ते के नाम पर केवल कच्ची पगडंडी थी. आज नाला का नामोनिशान पूरी तरह मिट गया है. पटना में अपार्टमेंट कल्चर की शुरुआत हिमगिरी और नीलगिरी अपार्टमेंट से हुई है. इसका श्रेय स्व रमेश चंद्र सिन्हा को जाता है. वर्ष 1978 में मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की नींव रखी थी. चार तल्ला हिमगिरी अपार्टमेंट में 16 फ्लैट बनाये गये. सभी फ्लैट दो बेड रूम के थे. फ्लैट की बुकिंग राशि 75 हजार रुपये थी. इसके लिए 50 हजार रुपये सरकार लोन देती. खरीदने वाले को केवल 25 हजार रुपये ही पेमेंट करना पड़ता था.

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