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कुत्ते के काटने को नहीं लिया गंभीरता से तो हो सकती है मौत, बिहार में आज से नि:शुल्क मिलेगा रेबीजरोधी टीका

बिहार में भी कुत्ते के काटने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. पिछले एक वर्ष में कुत्तों के काटने से कई लोगों की जान जा चुकी है. ऐसे में रेबीज जैसी बीमारी से बचाव के लिए सरकार ने नि:शुल्क टीकाकारण कार्यक्रम की शुरुआत की है.

पटना. पशु व मत्स्य संसाधन विभाग की अपर मुख्य सचिव डॉ एन विजयलक्ष्मी ने कहा है कि दुनियाभर के देशों में रेबीज एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय है. भारत में जनसंख्या घनत्व और आवारा कुत्तों की संख्या अधिक होने के कारण कुत्ते के काटने की समस्या गंभीर है. कभी-कभी कुत्ते के काटने के बाद भी इसकी अनदेखी की जाती है. जबकि इसका प्रभाव दिखने की अवधि कुछ सप्ताह से लेकर कई वर्षों तक है. पिछले दिनों दिल्ली और आसपास के इलाकों में कुत्ते के काटने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. बिहार में भी कुत्ते के काटने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. पिछले एक वर्ष में कुत्तों के काटने से कई लोगों की जान जा चुकी है. ऐसे में रेबीज जैसी बीमारी से बचाव के लिए सरकार ने नि:शुल्क टीकाकारण कार्यक्रम की शुरुआत की है. बुधवार को बामेती सभागार में राज्यस्तरीय रेबीज रोधी नि:शुल्क टीकाकरण तथा जन-जागरूकता कार्यक्रम के संबंध में बताते हुए विजयालक्ष्मी ने लोगों को कुत्ते के काटने को गंभीरता से लेने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि रेबीज हो जाने पर मौत हो सकती है.

रेबीज हो जाने पर सार्थक उपचार संभव नहीं

इस अवसर पर सचिव सह खाद्य संरक्षा आयुक्त स्वास्थ्य विभाग संजय कुमार सिंह ने कहा कि रेबीज पशुओं से मनुष्यों में फैलता है. ज्यादातर बच्चों में इसकी शिकायत होती है. डॉ पंकज कुमार, सहायक प्राध्यापक, डॉ विजय कुमार, प्राध्यापक, माइक्रो बायोलॉजी ने बताया कि रेबीज के विषाणु रोगग्रस्त जानवरों के लार में सबसे अधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं. काटे गये स्थान से तंत्रिका द्वारा मष्तिस्क में पहुंच कर तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर उन्हें रोगग्रस्त कर देते हैं. एक बार इस बीमारी के लक्षण प्रकट होने पर मौत निश्चित है. क्योंकि लक्षण उभर जाने के बाद इस रोग का कोई सार्थक उपचार संभव नहीं है. एकमात्र उपाय रेबीज रोधी टीका ही है.

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2030 तक रेबीज से होने वाली मौत खत्म करने का लक्ष्य

पशुपालन निदेशक नवदीप शुक्ला ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक कुत्तों के द्वारा रेबीज रोग से होनेवाली मौतों को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके नियंत्रण के लिए 28 सितंबर से राज्य, जिला एवं अनुमंडल स्तर के पशु चिकित्सा केंद्रों पर नि:शुल्क टीकाकरण अभियान चलेगा. डॉ अजीत कुमार, पूर्व निदेशक, पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान ने जंगली जानवरों में रोग के प्रकोप एवं उसके निदान पर जानकारी दी. डॉ अस्मिता कुमारी व डॉ मंजू सिन्हा, सहायक शोध पदाधिकारी ने तकनीकी जानकारी दी. संचालन डॉ करूणा भारती व स्वागत डॉ अनूप कुमार अनुपम ने किया.

70 कुत्तों को लगाया गया रैबीजरोधी टीका

इधर, डेहरी नगर प्रखंड पशु चिकित्सालय में गुरुवार को विश्व रैबीज दिवस पर पशुपालन विभाग ने एक दिवसीय रैबीजरोधी टीकाकरण सह जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया है. इसमें शहर समेत आसपास के क्षेत्रों के डॉग पालकों व पुलिस प्रशासन के कुत्तों को रैबीजरोधी टीका दिया गया. इस कार्यक्रम में लगभग 70 डॉग को निशुल्क टीका लगाया गया है. हालांकि, पिछले वर्ष एक सौ डॉग को टीका लगाया गया था. प्रखंड पशु चिकित्सालय के पशु चिकित्सक डॉ सत्येंद्र कुमार ने बताया कि रैबीज हो जाने पर लाइलाज है. पशु या मनुष्य में होने पर मौत भी हो सकती है.

रैबीज लक्षण वाले कुत्ते व पशु में काटने की प्रवृत्ति ज्यादा

पागल कुत्ते या रैबीज के लक्षण वाले कुत्ते के काट लेने पर पशु का ज्यादा लार गिराता है. रैबीज लक्षण वाले कुत्ते व पशु में काटने की प्रवृत्ति ज्यादा, कपड़ा चबाने व बेचैनी बढ़ जाती है. कुत्ते में भौंकने की आवाज बदल जाती है. पानी से डरने लगता है. अंधेरा में बैठा रहेगा. पशु या किसी व्यक्ति को काटने पर सबसे पहले उस जगह को साबुन व एंटीसेप्टिक से धोयें. तत्काल अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर रैबीजरोधी टीका लें.

24 घंटे के अंदर लेना चाहिए टीका

पशु को काट लेने पर 24 घंटे के अंदर रैबीजरोधी टीका लगवाएं. उसके बाद तीन, सात, 14, 28 दिन व 90 दिन पर एंटीरैबीज टीका दिलवाना चाहिए. वहीं रैबीज से बचाव को लेकर अपने कुत्ते को पहला डोज तीन माह, दूसरा एक माह पर व बूस्टर डोज एक साल पर दिलवाना चाहिए.

उपस्थित रहे डाक्टर

इस कार्यक्रम में पशु चिकित्सालय चिलबिला से आये डॉक्टर मनीष कुमार, बारावकला चिकित्सालय से आये डॉक्टर अनंत सागर ने आने वाले कुत्तों को टीका लगाया. मौके पर डॉग पालकों के अलावा डाटा ऑपरेटर राजीव कुमार केशरी, मोती लाल पाल आदि कर्मी उपस्थित थे.

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