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आजादी की जंग में बलिया के वीरों ने 14 अगस्त 1942 को फहराया था तिरंगा, पत्थर से किया था गोलियों का सामना

Independence Day 2022: आजादी के आंदोलन के क्रम में ही 12 अगस्त लालगंज और 13 अगस्त 1942 को दोकटी में एलान हुआ कि 14 अगस्त को बैरिया थाने पर कब्जा किया जाएगा. बलिया के वीरों ने 14 अगस्त 1942 को बैरिया थाने में तिरंगा फहरा दिया.

बलिया. आजादी की जंग में बलिया के वीर क्रन्तिकारियों के किरदार को वर्तमान परिवेश में भुलाया नहीं जा सकता. बलिया में नौ अगस्त को शुरू हुई क्रांति की ज्वाला धीरे-धीरे धधकने लगी थी. सन 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में मुंबई में नेताओं की गिरफ्तारी के बाद बलिया में कांग्रेस के नेताओं को पकड़ा भी गया. इसके बाद बलिया में भी आंदोलन की आग भड़क उठी. इसके बाद जिले भर में लोगों ने एकजुट होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जगह-जगह आजादी का बिगुल फूंक दिया था और विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था. आजादी के आंदोलन के क्रम में ही 12 अगस्त लालगंज और 13 अगस्त 1942 को दोकटी में एलान हुआ कि 14 अगस्त को बैरिया थाने पर कब्जा किया जाएगा. इसके बाद 14 अगस्त को क्षेत्र नायक के नेतृत्व में बजरंग आश्रम बहुआरा पर 300 लोग एकजुट होकर शपथ ली कि हम बैरिया थाने पर कब्जा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे.

पीछे नहीं हटने की द्वाबा के वीरों ने ली थी शपथ

बहुआरा गांव निवासी भूप नारायण सिंह को इन लोगों ने अपना कमांडर नियुक्त किया. इसके बाद बैरिया की ओर बढ़ गए. बहुआरा गांव निवासी रामजन्म पांडेय ने इसकी अगुआई की. वहां से थाने की ओर चल दिये. उनके पीछे पूरा जनमानस उमड़ पड़ा. थाने पर पहुंचकर कमांडर भूपनारायण सिंह और कुछ उनके साथी तत्कालीन थानाध्यक्ष काजिम हुसैन के पास पहुंचे और वहां से जाने को कहा. थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने कहा कि मैंने आप लोगों का अधीनता स्वीकार कर ली है, चाहें तो अपना तिरंगा आप थाने पर लहरा दीजिए, मुझे चार दिन का मोहलत दीजिए. मैं और सिपाही अपने परिवार सहित यहां से चले जाएंगे. इस तरह 14 अगस्त 1942 को ही बिना खून-खराबे के बावजूद ही भारतीय तिरंगा बैरिया थाने पर पहली बार फहरा दिया गया. लेकिन क्रांतिकारियों के जाने के बाद थानाध्यक्ष ने तिरंगा हटा दिया. इसका बदला चुकाने की तारीख 17 अगस्त तय हुई.

क्रांतिकारियों ने पत्थर से किया गोलियों का सामना

17 अगस्त को दोपहर होते-होते बैरिया में लगभग 25 हजार से अधिक लोगों की भीड़ जुट गयी. कमांडर भूपनारायण सिंह भीड़ को सड़क पर रोककर थाने के गेट पर पहुंचे. लेकिन उस वक्त गेट बंद था. इसके बाद भीड़ थाने में घुस गई. यह देखकर पुलिस ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगी. फिर क्रांतिकारियों ने पथराव शुरू कर दिया. गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कौशल कुमार ने थाने की छत पर पहुंच कर तिरंगा फहरा दिया. लेकिन पुलिस की गोली से वह शहीद हो गए. शाम तक चले इस संघर्ष में कुल 20 लोग शहीद हो गये.

बोले स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र, अब नहीं कोई पूछनहार

बहुआरा गांव के निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भूपनारायण सिंह के पुत्र अजय मोहन सिंह ने बातचीत में बताया कि स्वतंत्रता सेनानी भूप नारायण सिंह मेरे पिता थे. उनके अलावा मेरे बड़े पिता जी हरदेव सिंह, चाचा परशुराम सिंह, शिवप्रसाद सिंह, शिवनारायण सिंह और सुदर्शन सिंह कुल पांच लोग आजादी की उस जंग में महत्वपूर्ण किरदार निभाए थे. लेकिन, आज के परिवेश में सेनानियों के परिजनों की कोई पूछ नहीं है. यह देख बड़ा अजीब लगता है. फिर भी मुझे गर्व है कि मै उनके खून का हिस्सा हूं.

Posted By: Radheshyam Kushwaha

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