पटना. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को शराब मामले में सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार शराबबंदी एवं आबकारी अधिनियम के तहत आने वाले मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत के अवसरंचना स्थापित करने में सात साल की देरी पर सोमवार को नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा है कि जब तक बुनियादी ढांचा नहीं बन जाता, तब तक के लिए सभी आरोपितों को जमानत क्यों न दे दी जाए?. शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि क्यों नहीं सरकार अदालतों के लिए अपनी इमारतें खाली कर देती.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह शराबबंदी अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए सभी पहलुओं पर विचार करेगी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि साल 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून को लागू किया गया. लेकिन कई साल का समय बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार ने विशेष अदालतों के गठन के लिए अबतक जमीन का आवंटन तक नहीं करा सकी है. बिहार में शराबबंदी कानून के कारण अदालतों पर पड़ रहे बोझ का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि शराबबंदी कानून के तहत 3.78 लाख से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं.
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अभी तक केवल 4,000 से अधिक का ही निस्तारण किया गया है, जो एक बड़ी समस्या है. न्यायालय ने कहा कि यही समस्या है. आपने न्यायापलिका की अवसंरचना और समाज पर पड़ने वाले असर को देखे बिना कानून पारित कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा है कि आप क्यों नहीं समझौते को प्रोत्साहित करते. शीर्ष अदालत वर्ष 2016 में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है. पीठ ने कहा कि जहां तक शराब के सेवन के लिए जुर्माना लगाने का प्रावधान है, यह ठीक है, लेकिन इसका संबंध कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्तों को सजा देने की शक्ति से है.