मिथिलेश, पटना: बिहार चुनाव २०२० शुरू होने के ठीक पहले लोजपा के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरूवार देर शाम निधन हो गया. इस असमय निधन के बाद शोक का तांता लगा हुआ है. रामविलास पासवान का राजनीतिक जीवन बेहद दिलचस्प तरीके से शुरू हुआ. घर से डीएसपी बनने निकले युवा रामविलास ने राजनीति की राह पकड़ ली थी और सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उन्हें 1977 में हाजीपुर से उम्मीदवार बनवाया था. गुरुवार आठ अक्तूबर को उनकी पुण्यतिथि थी, इसी दिन पासवान का भी निधन हो गया.
1989 के आम चुनाव में दिल्ली के हरियाणा भवन में टिकट को लेकर चर्चा चल रही थी. उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनसे थोड़े नाराज चल रह थे. चुनाव अभियान समिति की बैठक में रघुनाथ झा ने बिना उनका नाम लिये का कि रामसुंदर दास हमारे दल के वरिष्ठ नेता हैं, उन्हें पटना के करीब किसी सीट से चुनाव लड़ाया जाना चाहिये. उनके लिए हाजीपुर की सीट ठीक रहेगी. रामसुंदर दास चुपचाप सभीर बात सुन रहे थे. रघुनाथ झा के प्रस्ताव का गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने विरोध किया.
उनका कहना था कि पासवान ही वहां से उम्मीदवार हों. बात यही तय हुई. पचास सीटों पर नाम तय हो गये, बाकी के चार सीटों के लिए अगले दिन फिर बैठक शुरू हुई. बैठक आरंभ होते ही रघुनाथ झा ने कहा हाजीपुर सीट की री -ओपनिंग होगी. इस पर हिमांशु ने कहा री-ओपनिंग हाेगी तो बगहा सीट से जो बिहार की पहली सीट है.
Also Read: Ram Vilas Paswan: घर से निकले डीएसपी बनने लेकिन विधायक बन कर लौटे थे रामविलास पासवान, जानें पिता ने क्यों दिए थे पांच सौ रूपए…
उन्होंने प्रस्ताव दिया कि यदि रामसुंदर दास को लड़ाना है तो रोसड़ा की सीट से उम्मीदवार बनाया जाये, मैं जीताने की गारंटी लेता हूं. गजेंद्र प्रसाद हिमांशु के विरोध से रामसुंदर दास का नाम का प्रस्ताव हाजीपुर से वापस हो गया और रामविलास के नाम तय हो गये.
इस बैठक में रामपूजन पटेल भी थे. अगले दिन बाद जब पासवान इन नेताओं से मिले तो उनके आंखों में आंसू थे, वो जोर-जोर से रोने लगे. उन्होंने कहा कि हिमांशु नहीं होते तो टिकट नहीं मिल पाता.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya