पटना. सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद बिहार के कई जिलों में परिवहन कार्यालयों ने बड़ी संख्या में बीएस-4 वाहनों का रजिस्ट्रेशन कर दिया. सिर्फ पांच जिलों की जांच में ही नियमों के विपरीत 3609 बीएस-4 वाहनों के रजिस्ट्रेशन का मामला उजागर हुआ है. मामला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट गंभीर है. राज्य परिवहन आयुक्त सीमा त्रिपाठी के आदेश पर विभाग ने इसकी जांच के लिए उच्चस्तरीय टीम गठित की है. परिवहन विभाग के ओएसडी अरुणा कुमारी के नेतृत्व में टीम ने इसकी जांच भी शुरू कर दी है.
जांच टीम ने भोजपुर डीटीओ कार्यालय में 27 मार्च को पहुंच कर रिकॉर्ड खंगाला. यहां सबसे अधिक 845 वाहनों के रजिस्ट्रेशन हुए हैं. पटना जिले में यह संख्या 454, नालंदा में 642 और मुजफ्फरपुर में 763 है. इनके अलावा एक और जिला है, जहां डेट खत्म होने के बाद भी बीएस-4 वाहनों का रजिस्ट्रेशन कर दिया गया. इस तरह इन पांच जिलों में कुल मिलाकर 3609 वाहनों का रजिस्ट्रेशन का मामला सामने आया है. हालांकि, जांच कर रहे अधिकारी अभी कुछ भी बताने से इनकार कर रहे हैं.
गोपालगंज में बगैर रजिस्ट्रेशन के चल रहे चार हजार से अधिक वाहन
यहां के कुछ डीलरों ने छह हजार से अधिक बीएस-4 वाहनों को 2020 के जून-जुलाई तक बेचा. ग्राहकों को जब रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं मिला, तो उन्होंने हंगामा शुरू किया. इनमें से कुछ लोगों के वाहनों का एक साल के बाद अरुणाचल प्रदेश से रजिस्ट्रेशन करा दिया गया. इसके बाद भी चार हजार से अधिक बाइक बगैर रजिस्ट्रेशन के जिले की सड़कों पर चल रही हैं. गोपालगंज के डीएम डॉ नवल किशोर चौधरी ने बताया कि बीएस-4 वाहनों का रजिस्ट्रेशन बंद होने के बाद भी उन्हें बेचा गया. बाद में अरुणाचल प्रदेश में 16 सौ अधिक वाहनों का रजिस्ट्रेशन कैसे हुआ, इसकी जांच की जा रही है. जांच में जो दोषी होंगे, उनपर कार्रवाई तय है.
तीन सदस्यीय टीम अगले माह सौंपेगी रिपोर्ट
इस फर्जीवाड़ा की जांच को लेकर परिवहन विभाग ने ओएसडी सुधीर कुमार, अर्चना कुमारी और अरुणा कुमारी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच टीम बनायी है. यह टीम करोड़ों के फर्जीवाड़े की रिपोर्ट अगले माह तक विभाग को सौंपेगी. सूत्रों के मुताबिक अभी पटना, जमुई, भोजपुर और मुजफ्फरपुर में जांच चल रही है.
पटना में लगभग 600 बीएस-4 गाड़ियों का गलत तरीके से रजिस्ट्रेशन किया गया. इसके अलावा उन बड़े शहरों में भी फर्जीवाड़ा हुआ है, जहां हर महीने गाड़ियों का बड़े पैमाने पर निबंधन होता है. सूत्रों के मुताबिक 2017- 18 में परिवहन विभाग डीलर प्वाइंट से भी रजिस्ट्रेशन कराता था. उस वक्त जो भी नंबर बच गये, उन बचे नंबरों को कुछ बीएस- 4 गाड़ियों और कुछ का निबंधन बीएस 3 गाड़ियों के लिए भी करा दिया गया. रजिस्ट्रेशन का कोई शुल्क विभाग को नहीं मिला, जिससे लगभग 3.60 करोड़ से अधिक का राजस्व नुकसान हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च, 2020 की मध्य रात्रि के बाद बीएस-4 गाड़ियों की बिक्री पर रोक लगा दी थी. रोक के बाद भी ऐसी बची गाड़ियों को बेच दिया गया और उन्हें पुरानी गाड़ियों का निबंधन नंबर दे दिया गया. एक साल बाद पुरानी गाड़ियों के मालिक जब प्रदूषण जांच और इंश्योरेंस कराने गये, तो उन्हें मालूम हुआ कि उनकी गाड़ियों का निबंधन नहीं है. इस मामले में परिवहन विभाग ने 19 सितंबर, 2020 को उपसचिव शैलेंद्र नाथ के नेतृत्व में चार सदस्यीय टीम बनायी. जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन डीटीओ अजय कुमार और एडीटीओ विकास कुमार सहित छह कर्मियों को दोषी माना, लेकिन इस मामले में डीटीओ और एडीटीओ को छोड़कर बाकी छह कर्मियों पर मामला दर्ज कराने का आदेश परिवहन विभाग ने दिया. इस मामले में बाद में एक पीआइएल भी दायर किया गया.
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परिवहन विभाग के सूत्रों के मुताबिक सभी रजिस्ट्रेशन बैक लॉक में जाकर किया गया था. बताया जाता है कि बैकलाॅक में निबंधन अधिकारियों की संलिप्तता के बिना नहीं हो सकता.
परिवहन विभाग के सचिव पंकज कुमार पाल ने बताया कि यह मामला राज्य परिवहन आयुक्त के स्तर से देखा जा रहा है. जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.