राजदेव पांडेय, पटना. मौसम में आये बदलाव के चलते बिहार में बारिश के पैटर्न में आमूल परिवर्तन हुआ है. पिछले पांच साल में भारी बारिश की संख्या में दो गुना तक इजाफा हो गया है. 2015 में प्रदेश के 38 जिलों में औसतन भारी बारिश के स्पैल की संख्या 200 के आसपास रहा करती थी. अगले पांच सालों वर्ष 2021 में इसकी संख्या 433 तक पहुंच गयी. वर्ष 2022 में सामान्य से 39 प्रतिशत बारिश कम के बाद भी भारी बारिश के स्पैल की संख्या 235 रही. बावजूद इसके भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी नहीं हो पायी.
मौसम के जानकार बताते हैं कि बिहार में भारी बारिश को सहेजने के लिए समुचित वेट लैंड (नम भूमि/ पानी की भूमि ) का अभाव है. पानी नदियों के जरिये बह जा रहा है. बारिश के बदले इस ट्रेंड का सीधा असर सतही जल की उपलब्धता पर पड़ा है. कृृृषि रोड मैप रिपोर्ट बताती है कि बिहार में 2001 में प्रति व्यक्ति सतही जल की उपलब्धता 1594 घन मीटर थी. 2017 में यह उपलब्धता घट कर 1213 घनमीटर रह गयी है. 2025 में 1006 घन मीटर और 2050 में 635 घन मीटर तक रह जाने की आशंका है.
फिलहाल बिहार में कुल सतही जल 132 बिलियन क्यूबिक मीटर है. यह अभी समुचित है, लेकिन वर्ष 2050 में बिहार को कुल सतही जल की अनुमानित उपलब्धता 145 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) होगी. तब हमें अधिक पानी की जरूरत होगी. इसकी पूर्ति के लिए हमारे पास विकल्प सीमित ही होंगे. जानकारी हो कि बिहार के जलाशयों की कुल जल संग्रह क्षमता एक बीसीएम से भी कम है. विशेषज्ञों का मत है कि आगामी दौर में मॉनसून सीजन की बारिश को नहीं सहेजा गया तो बिहार जबरदस्स्त जल संकट की देहरी पर आ खड़ा होगा. हिमालय की तलहटी वाले इलाके में भारी बारिश की मात्रा वहां बरसे कुल पानी में 75 प्रतिशत तक है. दक्षिणी बिहार में बारिश वाले दिनों की संख्या में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है.
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वर्ष – विभिन्न जिलों में भारी बारिश के कुल स्पैल की संख्या
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2015- 204
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2016-294
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2017-253
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2018-184
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2019- 278
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2020-343
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2021-433
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2022-235
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आइएमडी पटना के क्षेत्रीय निदेशक विवेक सिन्हा ने बताया कि हैवी रैन की संख्या अच्छा-खासा बढ़ी है. भारी बारिश को भूजल और सतही जल के रूप में सहेजने में प्राकृतिक बाधाएं है. बहुत कम समय में ज्यादा मात्रा में बारिश बह कर निकल जाती है. वह भू जल में बहुत कम बदल पाती है. बारिश के पैटर्न को देखते हुए जल संरक्षण की दिशा में काम करने की जरूरत है.