वेद प्रकाश शस्त्री ने बताया कि पितृपक्ष काल में प्रतिदिन महालय श्राद्ध करना चाहिए. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर यमलोक से धरती पर अपने वंशजों के घर रहने आते हैं. इस काल में एक दिन श्राद्ध करने पर पितर वर्षभर तृप्त रहते हैं. शास्त्र में यह भी कहा गया है कि पितृपक्ष में अपने सब पितरों के लिए श्राद्ध करने से उनकी वासना, इच्छा शांत होती है और आगे जाने के लिए ऊर्जा मिलती है.
पितरों के लिए श्राद्ध नहीं करने पर उनकी अतृप्त इच्छाओं के रहने से परिवारवालों को कष्ट हो सकता है. श्राद्ध से पितरों का रक्षण होता है, उनको आगे की गति मिलती है और अपना जीवन भी सहज होता है. पितृपक्ष में पितरों का महालय श्राद्ध करने से वे वर्षभर तृप्त रहते हैं.
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष की अवधि में पितर के देहांत की तिथि के अनुसार, श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान कर्म किया जाता है. लेकिन पितृपक्ष के दौरान भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
इस वर्ष भरणी श्राद्ध कर्म 2 अक्टूबर को चतुर्थी श्रद्धा के साथ किया जाएगा. पंचांग के अनुसार, भरणी नक्षत्र सुबह से शाम 06 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. इस दौरान तर्पण अथवा श्राद्ध कर्म को श्रेष्ठ माना जाता है. भरणी श्राद्ध करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है. यह श्राद्ध प्रत्येक पितृपक्ष में करें.
नवमी श्राद्ध को मातृ श्रद्ध के नाम से भी जाना जाता है. इस साल नवमी श्राद्ध सात अक्टूबर के दिन किया जाएगा. इस तिथि पर परिवार में मातृ पितर अर्थात मां, दादी, नानी को समर्पित पिंडदान व श्राद्ध कर्म किया जाता है. इस दिन श्राद्ध कर्म करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है.
पंचांग के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या इस वर्ष 14 अक्टूबर को है. इस विशेष दिन पर जो लोग अपने पितरों के निधन की तिथि नहीं जानते हैं, वह इस दिन श्राद्ध कर्म, पिंडदान व तर्पण इत्यादि कर सकते हैं. सर्व पितृ अमावस्या के दिन स्नान-दान को भी विशेष महत्व दिया गया है.