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PHOTOS: बच्चों का बनें हमसफर, हर कदम पर साथ चल रहे गार्जियन दूसरों के लिए भी बन रहे प्रेरणास्रोत

नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो. लेकिन पंख दिये हैं, तो व्याकुल उड़ान में विघ्न न डालो. कवि शिवमंगल सिंह सुमन की इन पंक्तियों से बच्चों की इच्छा को समझा जा सकता है. हर अभिभावक को बच्चों की इच्छा को समझने की कोशिश करनी चाहिए. उनकी उड़ान में विघ्न न डाल कर हमसफर बनाना चाहिए.

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बेटियों के गिटार-पेंटिंग का शौक कर रहे पूरा

जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम), कन्हैया लाल सिंह : पहले की अपेक्षा अब अभिभावकों की सोच में भी सकारात्मक बदलाव आया है. अभिभावक अपनी इच्छा बच्चों पर नहीं थोप रहे. बच्चों की रुचि में ही उनका भविष्य देख रहे हैं और इसके लिए प्रयत्न भी कर रहे हैं. बच्चों को अपने मन की करने की आजादी देने के साथ उनका हर स्तर पर खुद भी निगरानी रख रहे हैं. ऐसे अभिभावकों को उनके बच्चे भी निराश न कर अपनी सफलता की नित नयी कहानी गढ़ रहे हैं. बच्चों के हर कदम पर साथ-साथ चल रहे अभिभावक दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहे हैं.

बच्चों के लिए निकालें समय : बोंथा गोपाल राव, नामदा बस्ती

जमशेदपुर के नामदा बस्ती निवासी बोंथा गोपाल राव बिजनेसमैन हैं. अपने व्यस्त लाइफ से वे अपनी बिटिया के लिए समय जरूर निकलते हैं. उनकी बिटिया बोंथा निशिता और बोंथा निमिषा संगीत समाज टेल्को में कथक सीखती हैं. सब काम छोड़कर पिता उन्हें डांस क्लास छोड़ने जाते हैं. वे बताते हैं कि उनके इतने से सपोर्ट से दोनों बिटिया दिनभर खुश रहती हैं. इसलिए हर अभिभावक को अपने बच्चे के लिए समय जरूर निकालना चाहिए. इतना ही नहीं, कथक सीखने के दौरान बिटिया को जब लगा कि गिटार और पेंटिंग सीखनी है, तो इसके लिए भी पिता आगे आये. आज दोनों घर पर गिटार और पेंटिंग भी सीख रही हैं. निशिता और निमिषा को स्कूल और जिला स्तर की कई प्रतियोगिता में अवॉर्ड मिल चुका है. उनका सपना बड़े मंच पर प्रस्तुति देने का है. जिसके लिए वह जीतोड़ मेहनत कर रही है. जिसमें उनके माता-पिता दोनों का सपोर्ट रहता है. गोपाल बताते हैं कि किसी कारणवश वे बिटिया को डांस क्लास नहीं छोड़ सके, तो पत्नी बोंथा कालेश्वरी छोड़ने जाती है. वह बताती हैं कि बचपन से बिटिया को डांस में रुचि देखा. वे लोग भरतनाट्यम सिखाना चाहते थे, लेकिन समय पर गुरु नहीं मिलने से कथक क्लास शुरू करवा दिया. वह बताती हैं कि माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को समय दे. उनकी रुचि और हॉबी के बारे में जाने. जब व्यक्ति अपने शौक को पूरा करता है, तो तनाव कम हो जाता है. इसका बहुत बड़ा लाभ यह भी है.

ऐसा कर बनें सच्चे अभिभावक :

  • बच्चों की इच्छा का सम्मान करें.

  • बच्चों पर अपनी इच्छा नहीं थोपें.

  • बच्चों को अपना दोस्त बनाएं.

  • हर बच्चा यूनिक होता है, इसलिए दूसरे से कभी तुलना नहीं करें.

  • छोटी-छोटी जिम्मेदारी दें.

  • आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.

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मां की मदद से तबला वादन में हासिल की स्कॉलरशिप

बागुननगर की पायल सेन बेटे देवारुण की दोस्त हैं. देवारुण हर सुख-दुख अपनी मां से साझा करते हैं. बेटे ने तबला सीखने की इच्छा जाहिर की. मां ने एक मिनट भी देर नहीं की. इसी का नतीजा है कि देवारुण पांच साल की उम्र से तबला सीखने लगा. मां बगल में बैठती है और बेटा रियाज करता है. पायल बताती हैं कि सुबह स्कूल जाने से पहले थोड़ी देर और रात्रि में वह रियाज करता है. अपनी इच्छा बेटे पर नहीं थोपी. तबला प्लेइंग के लिए इसी साल उसे भारत सरकार की तरफ से सीसीआरटी (सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेस एंड ट्रेनिंग) स्कॉलरशिप मिली है. देवारुण अमिताभ सेन से तबला सीख रहा है. वर्तमान में विद्या भारती चिन्मया विद्यालय में क्लास आठ का छात्र है.

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बेटे के क्रिकेट खेलने के शौक में नहीं बना अड़चन

कहते हैं कि पालने में ही बच्चे के पांव दिख जाते हैं. सोनारी निवासी तारकेश्वर सिंह ने बेटे मनीषी की रुचि को बचपन में ही भांप लिया था. तभी तो चार साल की उम्र में ही स्कूल के बदले क्रिकेट एकेडमी में भेजना शुरू कर दिया. इसका नतीजा हुआ कि आज मनीषी रणजी ट्रॉफी खेल रहे हैं. तारकेश्वर बताते हैं कि मनीषी अंडर 19 में भारत के लिए खेल चुके हैं. इसके अलावा उन्हें अंडर 14, अंडर 16 में भी देखने का अवसर मिला. तारकेश्वर बताते हैं कि वे बेटे के शौक के आगे कभी अड़चन नहीं आने दिया. मनीषी में क्रिकेट को लेकर गजब की दीवानगी है. जिसे उन्होंने मरने नहीं दिया. वर्तमान में मनीषी को-ऑपरेटिव कॉलेज में बीए पार्ट वन में है. उसकी स्कूलिंग डीएवी बिष्टुपुर से हुई.

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बच्चों के अनुकूल हो घर का वातावरण

विजया गार्डन निवासी एकता मिश्रा बारीडीह हाईस्कूल में शिक्षिका हैं. वह बताती हैं कि अभिभावक को चाहिए कि वह घर का वातावरण बच्चों के अनुकूल बनाएं, क्योंकि वातावरण का बहुत असर पड़ता है. आप बच्चों को हर सुख सुविधा दे देंगे और घर में लड़ाई-झगड़ा होता रहेगा, तो बच्चे आगे नहीं बढ़ सकेंगे. वह यह भी कहती हैं कि घर में माता-पिता नहीं रहे, बच्चे को अकेला रहना पड़े, यह स्थिति भी अच्छी नहीं है. उनके घर में सास-ससुर से बिटिया अयति मिश्रा को हमेशा मानसिक सपोर्ट मिला. दादाजी डॉ मुरलीधर मिश्रा से उन्हें पाठ्यपुस्तक से बाहर देश-दुनिया की जानकारी मिली. देश-दुनिया में इन दिनों क्या चल रहा है, इस पर दादाजी से वाद-विवाद होता रहता था. इसका असर यह हुआ कि अयति अच्छी वक्ता बन गयी. ‘युवा सांसद’ में उसे पुरस्कार भी मिला. पिता पिनाकपाणि मिश्रा टाटा स्टील में कार्यरत हैं. नौकरी के बाद उनका समय बिटिया के लिए ही होता था. उन्होंने अयति को इंग्लिश पढ़ाया. जिससे उनका कॉन्फिडेंस बढ़ा. वह ओलिंपियाड, स्पेल बी जैसी प्रतियोगिता में भाग ले सकी. इसी साल सितंबर में वह सिंह कॉलेज ऑफ लंदन में इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंस में मास्टर्स में दाखिला ले रही है. उसकी स्कूलिंग हिल टॉप टेल्को से हुई. दादी आशालता मिश्रा उसकी सबसे अच्छी दोस्त है.

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बेटियों को पढ़ाने के साथ सिखा रहे कथक नृत्य

नामदा बस्ती निवासी देवव्रतो पाल कहते हैं कि अभिभावकों का बच्चों के प्रति नजरिया बदल गया है. हर अभिभावक बच्चे को आजादी देना चाहता है, देता भी है. नामदा बस्ती में ही उनकी गल्ले की दुकान है. उनकी दो बेटियां दिशा पॉल (क्लास दस) और दीप्सा पॉल (क्लास छह) वेली व्यू टेल्को में पढ़ती हैं. बेटियों पर उन्होंने कभी किसी तरह का दबाव नहीं डाला. वे बताते हैं कि बच्चे की जो इच्छा होती है, उसके साथ कंप्रोमाइज नहीं करते. उनकी दोनों बेटियों को नृत्य का शौक है. रुचि देखकर उन्होंने दोनों को डांस क्लास में डाला है.

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बेटी की केवल रुचि देखी

सोनारी निवासी सोमूज्योति बीट टाटा स्टील में कार्यरत हैं. वह बताते हैं कि अच्छा अभिभावक वही है, जो बच्चों के साथ खुला रहे. बच्चों को समझे. आज के अभिभावकों में बच्चों के प्रति नजरिया बदला है. बताते हैं कि उन्होंने अपनी बिटिया की हमेशा रुचि देखी. बेटी आयुर्धा घर की दीवारों, किसी भी कागज पर ड्राइंग करती रहती थी. इस प्रतिभा को देखकर उन्होंने उसे ड्राइंग क्लास में डाला. आज ड्राइंग में वह बढ़िया कर रही है. आयुर्धा अभी कॉन्वेंट स्कूल में क्लास दो में पढ़ रही है.

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क्या कहते हैं एक्सपर्ट

बच्चों के पोटेंशियल को खोजें : शिवानंद

ओशो धारा के आचार्य शिवानंद का कहना है कि अभिभावक अपने पाल्य के प्रति बंधुत्वपूर्ण व्यवहार रखें. बच्चे जब दोस्त बन जायेंगे, तो वह हर बात आपसे साझा करेंगे. इससे बच्चों को समझने में आपको दिक्कत नहीं होगी. बच्चों के अंदर के पोटेंशियल को खोजें. उसे निखरने दें. हर अभिभावक को फिल्म ‘तारे जमीं पर’ से सिखाना चाहिए. हमेशा बच्चों के विचार का सम्मान करें.

विकल्प दें, पर संकल्प बच्चों का हो : चंद्रेश्वर खां

मोटिवेशनल स्पीकर चंद्रेश्वर खां का कहना है कि सफल अभिभावक वही हैं, जो बच्चों की आकांक्षाओं और इच्छाओं को जानने की कोशश करें. विकल्प की चर्चा जरूर करें, लेकिन अपनी इच्छा बच्चों पर नहीं थोपें. अभिभावक विकल्प दे सकते हैं, लेकिन संकल्प बच्चे का ही होगा. अभिभावक अपनी उम्र में जो करना चाहते थे वह नहीं कर पाये, तो कई बार उसे बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं. अपनी इच्छाएं बच्चों पर कभी नहीं थोपनी चाहिए.

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