जितिया व्रत नहाय खाय से शुरू होकर सप्तमी, अष्टमी और नवमी को समापन किया जाता है. 5 अक्टूबर को नहाए खाए और 6 अक्टूबर को सुबह से महिलाएं निर्जला जितिया व्रत रखेंगी. 7 अक्टूबर को व्रत का समापन कर पारण करेंगे.
कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो पहली बार जितिया का निर्जला व्रत रखेंगी. उन्हें यह कठिन व्रत अधिक कठिन लग सकता है. ऐसे में स्वस्थ रहते हुए आप बिना किसी परेशानी में पड़े उपवास कर सकती हैं. आप जितिया पर्व से पहले सरगही में नारियल का पानी, केला, छेना रसगुल्ला, दही गुड़ खाकर अगले दिन की भूख-प्यास पर नियंत्रण कर सकते हैं. व्रत खोलते वक्त खट्टे फलों के सेवन से बचें, ऐसा नहीं करने से उलटी हो सकती है.व्रत खोलने से पहले चाय या कॉफी का सेवन ना करें, ऐसे में एसिडिटी हो सकती है.
इस व्रत में महिलाओं को एक दिन पहले से तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांसाहार का सेवन नहीं करना होता है. कहीं – कहीं नहाय खाए के दिन मछली खाने की भी परंपरा है. जो महिलाएं जितिया व्रत रखती हैं, वें एक दिन पहले कांदा की सब्जी, नौनी का साग ,मड़ुआ की रोटी खाती है . इसके बाद अष्टमी तिथि को उपवास करती हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत बिहार, उत्तर प्रदेश , बंगाल और झारखंड राज्य में मुख्य रूप से रखा जाता है. इस व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखकर संतान की सलामती की कामना करती हैं. महिलाएं जिउतिया भी गुथवाती हैं . मध्यम और उच्च वर्ग की आर्थिक रूप से संपन्न अधिकतर महिलाएं सोने अथवा चांदी की जिउतिया बनवाती हैं . पूजन सामग्रियों के साथ अनरसा, पेड़ाकड़ी, गोलवा साग, मडुआ का आटा, कुशी केराव, झिंगी इस व्रत से जुड़े अहम सामान हैं
संतान की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए किए जाने वाले जितिया व्रत वाले दिन में जिउतिया वाली लॉकेट बहुत ज्यादा महत्व रखती है. इस दिन महिलाएं लाल या पीले रंग की धागा अपने गले में धारण करती हैं जिसमें एक धागा साधारण तरीके का होता है. इसमें तीन जगह गांठे लगी रहती हैं. इसकी गांठे सामान्य होती है. वहीं कई महिलाएं अपने सामर्थ्य अनुसार सोने के लॉकेट में भी जिउतिया बनवा कर धारण करती हैं.
इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन, गाय के गोबर से चील-सियारिन की पूजा का विधान है. जीवित्पुत्रिका व्रत में खड़े अक्षत(चावल), पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, पूजा की सुपारी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, बांस के पत्ते, सरसों का तेल, खली, गाय का गोबर पूजा में जरूरी है.
मान्यता के अनुसार जितिया व्रत बीच में नहीं छोड़ना चाहिए. एक बार उपवास रखने पर हर वर्ष व्रत रखना अनिवार्य होता है. जीवित्पुत्रिका व्रत में निर्जला उपवास होता है, इसलिए जल की एक बूंद भी ग्रहण न करें.इस दौरान मन को शांत रखना चाहिए और किसी से भी लड़ाई-झगड़ा नहीं करनी चाहिए. व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए.
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