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विक्रमशिला विश्वविद्यालय में ऐसे होती थी तंत्रयान की पढ़ाई, खिलजी की गलती से हुआ जमींदोज

Vikramshila University: 'बख्तियार खिलजी ने हमला बोला और विक्रमशिला को जमींदोज कर दिया', विक्रमशिला विवि के विध्वंस का जब भी कारण पूछा जाता है तो यह बयान पढ़ने और सुनने को मिलता है. लेकिन इसके पीछे का असली कारण शायद कुछ और है. आइए जानते आई इतिहासकारों का क्या कहना है.

Vikramshila University : विक्रमशिला विश्वविद्यालय, बिहार के भागलपुर में स्थित वह प्राचीन अवशेष है, जो हमारी गौरव गाथा को बताता है. मगर एक सवाल हमेशा से कायम है कि नालंदा से ज्यादा विशाल और विद्वानों से भरे विक्रमशिला विश्वविद्यालय को वह ख्याति क्यों नहीं मिल पाई, जो नालंदा विश्वविद्यालय को मिली. वज्रयान और तंत्रयान के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध विक्रमशिला के इतिहास को कहीं-न-कहीं दबा दिया गया. नालंदा के विध्वंस के बाद उसे दोबारा खड़ा करने की कोशिश की गई लेकिन विक्रमशिला अब केवल इतिहास के पन्नों में और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में रह गया है. किताबों और जानकारों से बातचीत के आधार पर इस रिपोर्ट में हम विक्रमशिला के इतिहास के उन पन्नों को पलटने की हम कोशिश करेंगे जिसका जिक्र शायद ही कहीं होता है.

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पतन का कारण

‘बख्तियार खिलजी ने हमला बोला और विक्रमशिला को जमींदोज कर दिया’, विक्रमशिला विवि के विध्वंस का जब भी कारण पूछा जाता है तो यह बयान पढ़ने और सुनने को मिलता है. लेकिन, क्या विक्रमशिला विश्वविद्यालय को एक बार में तोड़ दिया गया? इस सवाल पर अपनी राय रखते हुए इतिहासकार और बिहार के पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक शिव शंकर सिंह पारिजात बताते हैं कि विक्रमशिला का पतन उसके विध्वंस से बहुत पहले शुरू हो गया था. चूंकि, विक्रमशिला में अन्य विषयों के अलावा तंत्र-मंत्र की पढ़ाई अधिक होती थी, इसलिए उस वक्त के कुछ शासक भी इस विश्वविद्यालय से नाराज थे. तंत्रयान की पढ़ाई के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते थे और जिन विधाओं का इस्तेमाल होता था वह कुछ हिंदू शासकों को बिल्कुल भी रास नहीं आता था. इस वजह से उन लोगों ने इस विवि के उत्थान के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया और इसका पतन शुरू हुआ. शिव शंकर सिंह पारिजात ने यह भी बताया कि नालंदा के विध्वंस के बाद जब खिलजी की सेना की एक टुकड़ी भागलपुर की तरफ से आ रही थी, तब उन्होंने एक विशाल इमारत देखी जो थोड़ी-बहुत नालंदा जैसी दिखती थी. इसी वजह से विक्रमशिला को भी तोड़ दिया गया. शिव शंकर सिंह पारिजात ने कहा कि कई जानकारों का कहना है कि विक्रमशिला को इरादतन खिलजी ने नष्ट नहीं किया था बल्कि, उनकी टुकड़ी के द्वारा इसे अंजाम दिया गया था.

”’नालंदा के विध्वंस के बाद खिलजी की सेना की एक टुकड़ी भागलपुर की तरफ से आ रही थी, तब उन्होंने एक विशाल इमारत देखी जो थोड़ी-बहुत नालंदा जैसी दिखती थी. इसी वजह से विक्रमशिला को भी तोड़ दिया गया.” – शिव शंकर सिंह पारिजात, इतिहासकार

खिलजी ने तोड़ा विक्रमशिला तो क्यों दोबारा खड़ा नहीं किया गया?

इतिहासकार शिव शंकर सिंह पारिजात ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए बताया कि खिलजी के इस विध्वंस के बाद विक्रमशिला विश्वविद्यालय को दोबारा खड़ा ना करना यह साफ तौर पर बताता है कि वहां के शासकों की विक्रमशिला को लेकर क्या सोच थी. उन्होंने कहा कि इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि आक्रमणकारियों के द्वारा किसी इमारत को गिराया गया हो तो उसे फिर खड़ा किया गया, वैसे में दुनियाभर में प्रसिद्ध विश्वविद्यालय को फिर एक बार खड़ा करने का प्रयास क्यों नहीं किया गया? उन्होंने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय को दोबारा खड़ा करने की कोशिश हुई लेकिन विक्रमशिला आज भी क्यों वीरान है? वहां जाने के लिए रास्ते बेहतर क्यों नहीं हैं? नालंदा जैसी ख्याति विक्रमशिला विश्वविद्यालय को क्यों नहीं मिल पाई? उन्होंने बताया कि नालंदा में कई चीनी विद्वान आते थे, वहीं विक्रमशिला में तिब्बत के लोग अधिक आते थे. दोनों जगह बौद्ध धर्म के लोग ही अधिक थे लेकिन एक जगह तर्कशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई होती थी, जबकि दूसरी जगह वज्रयान और तंत्रयान की, यह दोनों विश्वविद्यालय में बड़ा फर्क था.

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विक्रमशिला विश्वविद्यालय में कौन कराता था तंत्रयान की पढ़ाई?

चूंकि, विक्रमशिला विश्वविद्यालय में कुछ खास विषयों की ही पढ़ाई होती थी तो उसमें नामांकन की प्रक्रिया भी कठिन थी. द्वारपंडितों से तर्क में जीतने के बाद बच्चे विक्रमशिला में पढ़ाई के लिए नामांकित होते थे. तंत्र-मंत्र की पढ़ाई यहां पर सबसे ज्यादा खास थी. विक्रमशिला में इसे पढ़ाने के लिए कुल 12 तांत्रिक शिक्षक थे.

  • जननपद
  • दीपांकरभद्र
  • लंकाजयभद्र (विक्रमशिला के तंत्राचार्य)
  • श्रीधर (विक्रमशिला में आमंत्रित)
  • भावभद्र
  • भव्यकीर्ति
  • लीलावज्र
  • दुर्जयचंद्र
  • समयवज्र
  • तथागटरक्षिता
  • बोधिभद्र
  • कमलरक्षिता
Vikramshila Univeristy
The university of vikramshila- radhakrishna chaudhary

ऐसा कहा जाता है कि कमलरक्षिता के बाद छह द्वारपंडित आए थे और उनके बाद तंत्र के कई आचार्य एक-एक कर आए और यहां उन्होंने पढ़ाया और शोध किया.

Vikramshila University : कैसे होता था नामांकन?

प्रोफेसर राधाकृष्ण चौधरी द्वारा लिखित पुस्तक ‘द यूनिवर्सिटी ऑफ विक्रमशिला’ में इस बात का जिक्र है कि नालंदा विश्वविद्यालय के मुकाबले यह विश्वविद्यालय ज्यादा प्रसिद्ध था और उसका स्टैंडर्ड ज्यादा हाई था. वहां के सेंट्रल हॉल को हाउस ऑफ साइंस ‘विज्ञान का घर’ कहा जाता था और हरेक कॉलेज एक द्वारपंडित के अधीन आता था. इस विश्वविद्यालय के छह अलग-अलग कॉलेज थे और सभी शाखा में अलग-अलग विषय की पढ़ाई होती थी. हर शाखा (कॉलेज) के लिए एक द्वारपंडित को जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वहां आने वाले बच्चे उन द्वारपंडितों से संबंधित विषय पर तर्क करते है और उसमें जो उत्तीर्ण होते थे उन्हें ही नामांकन मिलता था. पुस्तक के अनुसार, इन छह द्वारों पर इन्हें जिम्मेदारी दी गई थी.

  • प्रजनाकर्माती – दक्षिण द्वार
  • रत्नकारासांती – पूर्व द्वार
  • वागीश्वराकीर्ति – पश्चिम द्वार
  • भट्टारका नरोपंत – उत्तर द्वार
  • रत्नवज्र – पहला केंद्रीय द्वार
  • जननश्रीमित्र – दूसरा केंद्रीय द्वार

अगर आज होता विक्रमशिला विवि तो क्या होता?

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के विध्वंस का कारण, वहां की शिक्षा पद्धति और नामांकन की प्रक्रिया तो आपने पढ़ ली लेकिन सवाल यह भी खड़ा होता है कि आज अगर विक्रमशिला विश्वविद्यालय होता तो क्या होता. इस सवाल का जवाब देते हुए इतिहासकार राजेश कुमार सिंह ने बताया कि आज विक्रमशिला होता तो भारत की स्थिति अलग होती. नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला भारत के धरोहर है. अन्य देशों का भारत के प्रति रुख बदलता. चूंकि, बौद्ध धर्म के लोग विक्रमशिला विश्वविद्यालय में जाते थे इसलिए चीन के साथ भी भारत का संबंध कुछ और हो सकता था.

”आज विक्रमशिला होता तो भारत की स्थिति अलग होती. नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला भारत के धरोहर है. अन्य देशों का भारत के प्रति रुख बदलता.” – राजेश कुमार सिंह, इतिहासकार

‘अर्थव्यवस्था पर गहरी छाप छोड़ता’

वहीं, शिव शंकर सिंह पारिजात ने कहा कि भारत में आज वज्रयान और तंत्रयान की पढ़ाई बड़े पैमाने पर होती. उन्होंने साफ कहा कि वर्तमान के तांत्रिकों और उस वक्त के तंत्रयान में काफी अंतर था. आज के समय में तंत्र-मंत्र के नाम पर फ्रॉड भी होता है लेकिन, वह एक साधना थी. उन्होंने कहा कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय न केवल बिहार के लिए बल्कि, पूरे भारत देश के लिए बड़ी उपलब्धि थी. आज अगर विक्रमशिला विश्वविद्यालय होता तो बिहार में दुनियाभर के लोग पढ़ने आते है और यह बिहार की अर्थव्यवस्था पर गहरी छाप छोड़ता.

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