Independence Day 2024 : भारत अपनी आजादी की 78वीं वर्षगांठ मना रहा है, इस मौके पर नमन उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को जिनकी वजह से हम आजाद मुल्क के निवासी बन पाए हैं. भारत का स्वाधीनता आंदोलन कई हजार लोगों के छोटे-बड़े योगदानों का परिणाम है, इसलिए किसी की भी भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है. ऐसी ही एक स्वतंत्रता की सिपाही थी सरस्वती देवी, जिनका नाम झारखंड के आंदोलनकारियों में शुमार है. सरस्वती देवी झारखंड के हजारीबाग जिले से गिरफ्तार होने वाली पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं.
हजारीबाग की रहने वाली हैं सरस्वती देवी
आज जब हम एक बार फिर अपने इन नेताओं को याद कर रहे हैं, तो हमें यह जानना जरूरी है कि किस तरह ब्रिटिश काल में उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी. सरस्वती देवी हजारीबाग के बाडम बाजार इलाके की रहने वाली थीं. उनका जन्म पांच फरवरी 1901 में हुआ था. उनके पिता का नाम विष्णुदयाल लाल सिन्हा था. उनकी माता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था. उनका पालन-पोषण उनकी मामी और चाची ने किया था. उनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में हजारीबाग के भैया बैजनाथ सहाय के पुत्र भैया केदारनाथ सहाय के साथ हुई थी.
पर्दा प्रथा का किया था विरोध
सरस्वती देवी काफी पढ़ी-लिखी महिला थी और उन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध किया था. उनके इस विरोध का समाज के कई लोगों ने विरोध किया था. उनके साथ दुर्व्यहार भी किया गया था. बाद में उन्होंने नारी उत्पीड़न के विरुद्ध अभियान चलाया. उन्होंने हजारीबाग के सतघरवा स्थित कुम्हारटोली में आश्रम का निर्माण करवा था, जिसमें पीड़ित परिवार के लोग रहते थे. हरिजन आंदोलन में भी सरस्वती देवी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
अंग्रेजों केे खिलाफ मुखर आवाज बनीं
असहयोग आंदोलन में भी सरस्वती देवी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास किया. जब वे एक सभा में भाषण दे रही थीं तो अंग्रेज शासकों ने उनपर लाठी चार्ज करवा दिया था. उनके सिर पर गंभीर चोट भी आई थी. बावजूद इसके सरस्वती देवी ने हजारीबाग और भागलपुर में आंदोलन को जोरों से आगे बढ़ाया. बताया जाता है कि 1925 में महात्मा गांधी हजारीबाग आए थे, जिसमें सरस्वती देवी की भूमिका सराहनीय थी. 1930 में उन्हें नमक कानून का विरोध करने पर अंग्रेजों ने गिरफ्तार भी किया था.